-गाउट, रिह्यूमेटाइड और रिह्यूमेटिक आर्थराइटिस पर व्याख्यान प्रस्तुत किया डॉ गिरीश गुप्ता ने
-श्वाबे इंडिया ने आयोजित की डॉक्टर्स मीट, सरकारी और निजी क्षेत्र के डॉक्टरों का जमावड़ा
सेहत टाइम्स
लखनऊ। हाथ-पैर, जोड़ों के दर्द का बड़ा कारण आर्थराइटिस लाइलाज नहीं है, तीन तरह के आर्थराइटिस गाउट, रिह्यूमेटाइड और रिह्यूमेटिक आर्थराइटिस का होम्योपैथी में सफल इलाज है, इसके उपचार पर शोध पत्रों का प्रकाशन प्रतिष्ठित जर्नल में हो चुका है।
आर्थराइटिस पर रविवार को लखनऊ के पिकेडली होटल में अंतर्राष्ट्रीय दवा कम्पनी डॉ विलमार श्वाबे इंडिया ने डॉक्टर्स मीट का आयोजन किया। इसमें अपनी शोधों से देश-विदेश में अपना लोहा मनवाने वाले गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने एक विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस व्याख्यान में उन्होंने मरीज की डायग्नोसिस के लिए करायी गयीं पैथोलॉजिकल जांचों, रोगी के मनोदैहिक लक्षणों, सटीक दवा का चुनाव तथा ठीक होने के बाद पैथोलॉजिकल जांच रिपोर्ट के बारे में स्लाइड्स के जरिये विस्तार से जानकारी दी। डॉ गुप्ता ने बताया कि इस रिसर्च में मरीजों के ठीक होने का आधार सिर्फ मरीज का कथन ही नहीं बल्कि लैब की जांच रिपोर्ट भी मानी गयी।
कार्यक्रम के मुख्य स्पीकर डॉ गिरीश गुप्ता ने अपने सम्बोधन की शुरुआत में अपनी होम्योपैथिक शिक्षा के चौथे वर्ष में ही रिसर्च वर्क शुरू करने का इतिहास बताते हुए कहा कि केजीएमसी के नामचीन डॉक्टर द्वारा होम्योपैथी को प्लेसिबो, साइकोथैरेपी, ऐक्वा थैरेपी कहे जाने से आहत होकर उन्होंने इसकी वैज्ञानिकता प्रमाणित करने के लिए ही शोध कार्य करने का फैसला लिया था, साथ ही यह संकल्प लिया था कि अगर होम्योपैथी की वैज्ञानिकता साबित नहीं कर पाया तो होम्योपैथी को छोड़ दूंगा।
‘एवीडेंस बेस्ड होम्योपैथी इन वैरियस टाइप्स ऑफ आर्थराइटिस’ विषय पर अपने व्याख्यान में डॉ गुप्ता ने बताया कि आर्थराइटिस पर रिसर्च की प्रेरणा मुझे केजीएमसी के प्रोफेसर डॉ आरएमएल मेहरोत्रा से मिली, डॉ गुप्ता उस समय डॉ मेहरोत्रा के किसी रिश्तेदार का आर्थराइटिस का इलाज कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इसी सिलसिले में डॉ मेहरोत्रा ने उनसे (डॉ गुप्ता से) पूछा कि क्या आप आर्थराइटिस के इलाज में स्टेरॉयड या पेन किलर देते हैं तो मैंने जवाब दिया कि होम्योपैथिक में स्टेरॉयड, पेन किलर नहीं होते हैं, हम होम्योपैथिक दवाएं ही देते हैं। इस पर डॉ मेहरोत्रा ने उनसे कहा कि अगर ऐसा है तो इसे साबित करके दिखाइये वरना सिर्फ कहने से लोग कैसे मानेंगे। डॉ मेहरोत्रा ने कहा कि आपको यह साबित करना होगा कि दवा खाने के बाद पैथोलॉजी रिपोर्ट में परिणाम कम होते हैं या नहीं। डॉ गुप्ता ने बताया कि इसके बाद मैंने मरीजों के इलाज का रिकॉर्ड रखने के साथ ही मरीज के इलाज से पहले, इलाज के दौरान और इलाज के बाद की पैथोलॉजिकल जांचें कराना शुरू किया। डॉ गिरीश ने बताया कि जांचों में परिणाम ठीक आने के बाद डॉ मेहरोत्रा ने इससे संतुष्ट होकर मुझे बहुत बधाई और आशीर्वाद दिया। डॉ गुप्ता बोले कि इस प्रक्रिया के करने से मैं किसी के भी सामने साक्ष्य सहित रोग ठीक होने का दावा करने की स्थिति में हो गया।
आर्थराइटिस की तीनों प्रकाशित रिसर्च के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गिरीश ने बताया कि पहली प्रकार की आर्थराइटिस रिह्यूमेटाइड आर्थराइटिस एक ऑटो इम्यून डिजीज है, इसके रिसर्च पेपर के बारे में उन्होंने बताया कि इसमें आरए फैक्टर पॉजिटिव वाले 250 मरीजों की स्टडी की गयी। दवा देने के बाद इन 250 मरीजों में 98 मरीजों यानी 39.20 प्रतिशत में आरए फैक्टर नॉर्मल आ गया, 72 मरीजों (28.80 प्रतिशत) में यह कम हो गया, जबकि 62 मरीजों (24.80 प्रतिशत) में जस की तस स्थिति रही यानी आरए फैक्टर न तो बढ़ा न ही घटा जबकि 18 मरीज यानी 7.20 प्रतिशत में यह बढ़ गया। इस रिसर्च पेपर का प्रकाशन एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के फरवरी से अप्रैल 2014 के अंक में किया गया था।
दूसरी आर्थराइटिस रिह्यूमेटिक आर्थराइटिस के बारे में बताते हुए डॉ गुप्ता ने कहा कि यह स्टडी 106 मरीजों पर की गयी। इस शोध कार्य के बारे में बताया कि इसकी डायग्नोसिस के लिए मरीज की एएसओ लेवल की जांच करायी गयी थी, उपचार के बाद कुल 83 मरीजों पर रिस्पॉन्स अच्छा इनमें 63 लोगों में एएसओ लेवल निगेटिव हो गया जबकि 20 मरीजों मे इसका स्तर कम हुआ, 14 मरीजों में स्थिति वैसी ही रही जबकि 9 मरीजों में एएसओ का लेवल बढ़ा पाया गया। यह स्टडी भी एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के मई-जून 2010 के अंक में छपी है।
तीसरी आर्थराइटिस गाउट के प्रकाशित शोध के बारे में डॉ गुप्ता ने बताया कि यह एक मेटाबोलिज्म डिस्ऑर्डर है, इसमें यूरिक एसिड के हाई लेवल वाले 200 मरीजों पर स्टडी की गयी। उन्होंने बताया कि इन 200 मरीजों में मिले परिणामों में इलाज के बाद 70 प्रतिशत यानी 140 मरीजों में यूरिक एसिड का लेवल नॉर्मल हो गया, जबकि 36 मरीजों यानी 18 प्रतिशत मरीजों में लेवल न घटा न बढ़ा जबकि 13 मरीजों यानी 6.60 मरीजों में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ा पाया गया। इस स्टडी का प्रकाशन एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के फरवरी-अप्रैल 2011 के अंक में प्रकाशित हुआ था।
डॉ गुप्ता ने बताया कि सभी मरीजों के लिए दवा का चुनाव मरीज की हिस्ट्री लेकर उनके साइकोसोमेटिक यानी मनोदैहिक लक्षणों के आधार पर किया गया। डॉ गुप्ता ने कहा कि जैसा कि सभी चिकित्सक जानते हैं कि होम्योपैथिक में एक ही लक्षण के लिए कई-कई दवाएं उपलब्ध हैं, ऐसे में मरीज विशेष के लिए दवा का चुनाव सभी लक्षणों को देखते हुए किया जाना अत्यन्त चुनौतीपूर्ण होता है। उन्होंने बताया कि दवा के चुनाव में छोटे-छोटे लक्षणों पर ध्यान केंद्रित किया गया, मरीज की हिस्ट्री लेते समय इस छोटे-छोटे बिन्दुओं पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि आर्थराइटिस के मरीजों की हिस्ट्री लेने के दौरान यह पता चला कि इन मरीजों में जो बातें रोग का कारण बनीं उनमें मरीजों को विभिन्न प्रकार के स्वप्न आना, उनके परिवार में कोई खास घटना होना, उनकी इच्छाएं-आकांक्षाएं पूरा न होना, विभिन्न प्रकार के डर, उदासीनता, गुस्सा, चिड़चिड़ापन जैसे दर्जनों बातें थीं। उन्होंने कहा कि डॉ हैनिमैन का कहना भी था कि रोग की शुरुआत मस्तिष्क (सोच) से शुरू होती है और फिर वह शरीर में जाता है। डॉ गुप्ता ने बताया कि विशेषकर गर्भवती महिलाओं के लिए इसका होम्योपैथी से इलाज किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि गर्भावस्था में पेन किलर खाने की मनाही होती है।
इस मौके पर अनेक चिकित्सकों ने डॉ गुप्ता के समक्ष अपनी जिज्ञासाओं को रखा जिस पर डॉ गुप्ता ने जवाब देकर उन्हें संतुष्ट किया। डॉ गुप्ता ने उपस्थित चिकित्सकों से अपील की कि वे अपनी प्रैक्टिस के दौरान मरीजों के इलाज का रिकॉर्ड अवश्य रखें, यही रिकॉर्ड रोग को ठीक करने के आपके दावे पर मुहर लगायेगा। डॉ गुप्ता ने स्लाइड के माध्यम से अपने संस्थान जीसीसीएचआर के डाटा बैंक और डॉक्यूमेंटेशन के रखरखाव की फोटो दिखायी कि किस प्रकार मरीज का रिकॉर्ड रखा जाता है।
परेशानी से बचने के लिए रजिस्ट्रेशन करा लें चिकित्सक : डॉ चेतना त्रिपाठी
मुख्य अतिथि डॉ चेतना त्रिपाठी, चीफ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेंट, लखनऊ डिवीजन ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह देखा गया है कि चिकित्सक इलाज की रिकॉर्ड कीपिंग नहीं करते हैं, उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड कीपिंग बहुत जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांशत: देखा गया है कि चिकित्सकों ने अपनी क्लीनिक और मेडिकल स्टोरों का पंजीकरण नहीं कराया हुआ है। मेरी चिकित्सकों से अपील है कि जो चिकित्सक प्रैक्टिस कर रहे हैं और अगर उन्होंने अपने क्लीनिक, मेडिकल स्टोर का पंजीकरण डिस्ट्रिक्ट होम्योपैथिक ऑफसर के कार्यालय में नहीं कराया है, वे पंजीकरण करा लें क्योंकि निकट भविष्य में इस विषय में जांच कर कार्रवाई की जा सकती है।
समारोह के स्वागत सम्बोधन में श्वाबे इंडिया के सेंट्रल व वेस्ट-2 के जेडएसएम राजेश दीक्षित ने डॉ विल्मार श्वाबे द्वारा स्थापित की गयी डॉ विलमार श्वाबे कम्पनी का इतिहास बताते हुए कहा कि डॉ विल्मार ने जर्मनी में अपना पहला प्लांट लगाया था। उन्होंने कहा कि भारत में नोएडा में एशिया की सर्वाधिक आधुनिक लेबोरेटरी की स्थापना वर्ष 2020 में हुई थी, जिसका उद्घाटन केंद्रीय आयुष मंत्री द्वारा किया गया था। उन्होंने बताया कि कम्पनी के भारत में चार प्लांट नोएडा, बुलंदशहर, रोहतक, तमिलनाडु में हैं। कम्पनी नौ डिवीजन के साथ कार्य कर रही है।
उन्होंने बताया कि कम्पनी क्वालिटी कंट्रोल पर बहुत ध्यान रखती है तथा इसको लेकर कोई समझौता नहीं करती है, इसीलिए प्लान्टेशन से लेकर प्रोडक्ट्स पहुंचाने तक का काम श्वाबे कम्पनी स्वयं करती है। उन्होंने बताया कि क्लीनिकल ट्रायल के लिए कम्पनी की सीसीआरएच के साथ सम्बद्धता है। इसी प्रकार सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी कार्यक्रम के तहत 22 स्कूलों में स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रम चल रहा है। श्री दीक्षित ने बताया कि नयी पीढ़ी को प्रमोट करने के लिए प्रत्येक कॉलेज के प्रत्येक बैच के टॉप तीन विद्यार्थियों को 14,000, 10,000 और 8,000 राशि का सम्मान दिया जाता है और गोल्ड, सिल्वर, बॉन्ज मेडल के साथ उनके प्रथम सेटअप के लिए कम्पनी स्पॉन्सर करती है।
डॉ आर वालावन, हेड साइंटिफिक एंड मेडिकल अफेयर्स, श्वाबे इंडिया ने कम्पनी द्वारा किये जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए स्पीकर एवं अन्य अतिथियों का परिचय दिया। मुख्य स्पीकर डॉ गिरीश गुप्ता को स्टार स्पीकर बताते हुए उन्होंने कहा कि मैं डॉ गुप्ता के क्लीनीशियन, रिसर्चर होने के बारे में तो जानता था लेकिन वे होम्योपैथिक कॉलेज में टीचिंग भी कर चुके हैं, यह आज ही जान पाया हूं। उन्होंने डॉ गुप्ता को मोमेंटो से सम्मानित किया। कार्यक्रम में प्रैक्टिस के अपने अनुभव पर एक पैनल डिस्कशन भी आयोजित हुआ इसमें मॉडरेटर के रूप में डॉ गिरीश गुप्ता के अलावा चर्चा में डॉ आरएन कौशल, डॉ आरके सिंह, डॉ एसपी सिंह ने हिस्सा लिया।
इस मौके पर डॉ पूर्वा तिवारी, साइंटिफिक ऑफीसर, श्वाबे इंडिया ने स्पॉन्डिलाइटिस के लिए श्वाबे की दवा रक पेन और ऑलमव पर की गयी अपनी साइंटिफिक स्टडी के बारे में प्रस्तुतिकरण भी दिया। समारोह को विशिष्ट अतिथि डॉ विमला रावत, डिस्ट्रिक्ट होम्योपैथिक मेडिकल ऑफीसर, लखनऊ ने भी सम्बोधित किया। इस मौके पर उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के पूर्व संयुक्त सचिव अमरजीत मिश्रा, डॉ रेनू महेन्द्रा, डॉ दिलीप पाण्डेय सहित शहर के अनेक चिकित्सकों के साथ ही डॉ विलमार श्वाबे इंडिया की टीम भी मौजूद रही।