-World Kidney day (13 मार्च) के मौके पर वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता से विशेष वार्ता
-डब्ल्यूएचओ से निर्धारित इस वर्ष की थीम है “क्या आपकी किडनी ठीक है? समय रहते पता लगाएं, किडनी के स्वास्थ्य की रक्षा करें”
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किडनी हमारे शरीर का अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है, यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के शरीर में दो किडनी होती हैं, लेकिन देखने में यही आता है कि एक किडनी जब खराब होती है तो दूसरी किडनी स्वत: काम करती रहती है, और दुर्भाग्य से जब दूसरी किडनी भी खराब होने लगती है तो इसके लक्षण प्रकट होते हैं, इसके बाद ही व्यक्ति का किडनी फंक्शन टेस्ट (केएफटी) से किडनी के खराब होने की स्टेज का पता लगाया जाता है। आज 13 मार्च को विश्व किडनी दिवस World Kidney day है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित इस दिवस की इस वर्ष 2025 के लिए थीम है “क्या आपकी किडनी ठीक है? समय रहते पता लगाएं, किडनी के स्वास्थ्य की रक्षा करें”।
इस बार की थीम को केन्द्र में रखकर ‘सेहत टाइम्स’ ने राजधानी लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता, जिन्होंने होम्योपैथी से इलाज करते हुए क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के अनेक मरीजों की लम्बे समय तक बिना डायलिसिस सिर्फ दवाओं के जरिये किडनी बचाने में सफलता हासिल की है, से वार्ता की। डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि आदर्श स्थिति तो यही है कि हम अपने खानपान, रहन-सहन को व्यवस्थित रखते हुए किडनी को सदैव सुरक्षित रखें। डॉ गुप्ता ने बताया कि किडनी रोग के कारणों की बात करें तो हाई ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर के अलावा सबसे बड़ा कारण अपने मन से अंग्रेजी दवाओं विशेष कर दर्द निवारक दवाओं का सेवन करना है। उन्होंने बताया कि किडनी रोगियों के लिए होम्योपैथी में ऐसी दवाएं मौजूद हैं जिनसे मरीजों को न सिर्फ डायलिसिस बल्कि लम्बे समय तक किडनी ट्रांसप्लांट से भी बचाया जाना संभव है, उन्होंने बताया कि उनके सेंटर जीसीसीएचआर में अब तक की स्टडी बताती है कि होम्योपैथिक इलाज से 1 से 15 वर्षों तक मरीज को ट्रांसप्लांट से दूर रखने में सफलता मिल चुकी है।
उन्होंने बताया कि इस सम्बन्ध में दस वर्ष पूर्व 2015 में रिसर्च पेपर भी छप चुका है। इस रिसर्च का प्रकाशन नेशनल जर्नल ऑफ होम्योपैथी में वर्ष 2015 वॉल्यूम 17, संख्या 6 के 189वें अंक में हो चुका है। इस रिसर्च के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गुप्ता ने बताया कि मरीज के रोग की स्थिति का आकलन सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच को आधार मानते हुए किया गया। डॉ गुप्ता ने बताया कि यह शोध पूरी तरह से डायग्नोज किये गये 160 मरीजों पर किया गया, इनमें किसी भी मरीज की डायलिसिस नहीं हो रही थी। सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच के साथ ही इन मरीजों के किडनी का साइज देखने के लिए अल्ट्रासाउंड भी कराया गया। इन मरीजों में सर्वाधिक 109 मरीज 31 से 60 वर्ष के बीच की आयु के थे, जबकि 30 वर्ष की आयु तक के 24 और 61 वर्ष की से ऊपर की आयु के 27 मरीज थे। इनमें 151 मरीजों का इलाज पांच साल से कम तथा 9 मरीजों का फॉलोअप पांच वर्ष से ज्यादा अधिकतम 15 वर्ष तक किया गया है।
उन्होंने बताया कि होलिस्टिक अप्रोच के साथ किडनी के मरीजों के लिए दवा का चुनाव किया गया तथा साथ ही जरूरत के अनुसार हाईपरटेंशन, डायबिटीज और यूरीन के लिए मदर टिंक्चर भी दिया गया। साथ ही एलोपैथिक दवाओं को भी लेने से रोका नहीं गया।


डॉ गुप्ता ने बताया कि समय-समय पर इन मरीजों की सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच कराते हुए मॉनीटरिंग की गयी। रिसर्च के परिणाम की बात करें तो इन 160 मरीजों में 52 मरीजों को लाभ हुआ, जबकि 43 मरीजों की स्थिति जस की तस बनी रही लेकिन खराब भी नहीं हुई, जबकि 65 मरीज ऐसे थे जिन्हें होम्योपैथिक दवाओं से कोई लाभ नहीं मिला।
डॉ गुप्ता ने एक महत्वपूर्ण जानकारी देेते हुए बताया कि किडनी फेल्योर की पहली से लेकर पांचवीं (प्राइमरी से एडवांस) स्टेज तक इन मरीजों में कई मरीज अपनी वर्तमान स्टेज से कम वाली स्टेज में वापस भी आ गये।
क्यों बेहतर है होम्योपैथी
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि आधुनिक पैथी कही जाने वाली ऐलोपैथी में भी सीकेडी का इलाज संभव नहीं है, सिर्फ डायलिसिस और ट्रांसप्लांट ही एक विकल्प है, जिसमें भारी-भरकम खर्चा होता है, ऐसे में अगर होम्योपैथिक के सस्ते इलाज से मरीज को डायलिसिस और ट्रांसप्लांट से लम्बे समय तक दूर रखा जा सकता है तो निश्चित रूप से यह एक अच्छा विकल्प कहा जा सकता है।
