अल्ट्रासाउंड की प्रारम्भिक जांच में किडनी कैंसर पकड़ा जाना संभव
लखनऊ। किडनी के कैंसर की प्रारम्भिक जांच में अल्ट्रासाउंड से जांच बहुत महत्वपूर्ण है बशर्ते अल्ट्रासाउंड करने वाला व्यक्ति विशेषज्ञ हो लेकिन यह अफसोस की बात है कि अल्ट्रासाउंड करने वाले 90 प्रतिशत लोग गैरविशेषज्ञ हैं। ऐसे में किडनी में ट्यूमर की जांच करने में वे कितना सफल रह सकते हैं, यह सोचना मुश्किल नहीं है।
यह बात संजय गांधी पीजीआई के डॉ नीरज रस्तोगी ने कही। उन्होंने कहा कि दरअसल मशीन अल्ट्रासाउंड करती है और अंदर के अंगों और उसमें असामान्य स्थितियों के बारे में स्क्रीन पर दिखाती है लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि उसे बारीकी से समझा जाये। इसके लिए ही रेडियोलॉजी में विशेषज्ञ की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि कई केंद्रों पर तो रिपोर्ट जारी करते समय स्कैन सिग्नेचर का प्रयोग होता है जो कि गलत है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। मूल रूप से किये हुए दस्तखत का अर्थ ही यही है कि उस रिपोर्ट को विशेषज्ञ द्वारा खुद मशीन पर देखा गया है। उन्होंने बताया कि ऐसे में पूरी संभावना रहती है कि एक ही व्यक्ति के स्कैन सिग्नेचर का इस्तेमाल कई-कई केंद्रों पर किया जा सके।
35 फीसदी किडनी रोगियों के ऑपरेशन के बाद दूसरी जगह फैल जाता है कैंसर
किडनी कैंसर से ग्रस्त रोगियों के ऑपरेशन के कुछ समय बाद करीब 35 प्रतिशत रोगियों में कैंसर दूसरे अंगों जैसे लिवर, फेफड़े, हड्डियों और मस्तिष्क में पहुंच जाता है।
यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई के डॉ नीरज रस्तोगी ने देते हुए बताया कि इसका इलाज दो तरह की थैरेपी से होता है। उन्होंने बताया कि पहली है टीकेआई इसमें मॉलीक्यूल लेवल पर इलाज किया जाता है। इसके अलावा दूसरी है आईओ थैरेपी यानी इम्यून ऑन्कोलॉजिकल थैरेपी, इसमें लैब में ट्यूमर को ग्रो करके देख कर इलाज के लिए दवायें तय की जाती हैं।