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प्रदूषण से गर्भवती को सर्वाधिक खतरा, जा सकती है गर्भस्थ शिशु की जान : डॉ सूर्यकान्त

-प्रदूषण को लेकर चिंता बातों में ही नहीं, व्यवहार में भी होनी जरूरी : डॉ गिरीश गुप्ता

-चिंतन एन्वायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप ने वायु प्रदूषण को लेकर आयोजित किया सेमिनार

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सूर्यकान्त ने कहा है कि वायु प्रदूषण का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव गर्भवती और बुजुर्गों पर पड़ता है। इसके कारण समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है, यहां तक कि गर्भस्थ शिशु की मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा नवजात सांस संबंधी बीमारियां, टीबी, अस्थमा, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों से ग्रसित हो सकता है। यानी प्रदूषण से जन्म लेने से पूर्व ही शिशु बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है।

प्रो सूर्यकान्त ने यह बात आज 30 नवम्बर को स्वास्थ्य विभाग, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) और इरम यूनानी चिकित्सा विद्यालय के सहयोग से स्वयंसेवी संस्था चिंतन एन्वायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप द्वारा “साफ हवा, सबकी दवा” विषय पर आयोजित सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में अपने सम्बोधन में कही।

डॉ. सूर्य कांत ने कहा कि हमारा जीवन सांसों पर टिका है। हम प्रतिदिन 500 लीटर ऑक्सीजन लेते हैं। व्यक्ति बिना भोजन के तीन सप्ताह और बिना पानी के तीन दिन जीवित रह सकता है लेकिन बिना सांस के वह सिर्फ तीन मिनट तक ही जीवित रह सकता है। वायु प्रदूषण के कारण फेफड़े प्रभावित होते हैं। पूरी दुनिया में 70 लाख लोगों की और देश में 17 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। वायु गुणवत्ता इंडेक्स (एक्यूआई) से वायु की गुणवत्ता का पता चलता है, एक्यूआई 50 तक रहता है तो यह ठीक माना जाता है, 51 से 100 तक भी चल सकता है, लेकिन इससे ऊपर इंडेक्स होने पर हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है।

उन्होंने बतया कि शरीर में वायु के साथ प्रदूषक तत्व जैसे मीथेन, कार्बन डाई आक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सल्फर डाई ऑक्साइड आदि नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिसके कारण अस्थमा सहित कई बीमारियाँ व अन्य शारीरिक समस्यायें जैसे आँखों में जलन, बदन में खुजली और बालों का झड़ना आदि दिक्कतें होती हैं। यही नहीं प्रदूषण के कारण डायबिटीज का भी खतरा है, क्योंकि जब हमारे फेफड़ों में प्रदूषित ऑक्सीजन जाती है, और यही ऑक्सीजन ब्लड के साथ मिलकर पैंक्रियाज तक भी पहुंचती है, जहां इंसुलिन का निर्माण होता है, जिससे इसमें बाधा उत्पन्न होती है, ज्ञात हो इंसुलिन ही ब्लड में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित रखती है।

वायु प्रदूषण का सर्वाधिक 57 फीसद कारण वाहनों निकलने वाले प्रदूषण तत्त्व और 20 फीसद तम्बाकू या तंबाकू उत्पादों के सेवन से निकलने वाला धुआं है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में पेड़ों का काटना, घरों में चूल्हे से निकलने वाला धुआं, कारखानों से निकलने वाला धुआं आदि है।

वायु प्रदूषण से बचाव के बारे में उन्होंने बताया कि अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, एलपीजी गैस का प्रयोग करें और तम्बाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन न करें। इसके साथ ही यह दृढ़ निश्चय करें कि जो भी गतिविधि या काम करेंगे उससे किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होगा। उन्होंने बच्चों का जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ जैसे मौकों पर वर्षगांठ की संख्या के बराबर संख्या में पेड़ लगाने का आह्वान किया।

प्रदूषण से बचाव के लिए एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान किया सीएमओ ने

मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए मुख्य चिकित्साधिकारी डा. एन.बी.सिंह ने कहा कि यह पहल बहुत अच्छी है। प्रदूषण चाहे वायु का हो या ध्वनि अथवा जल का, सेहत के लिए खराब है, उन्होंने इससे बचाव के लिए एकजुट होकर काम करने का आह्वान किया।

रोकने की पहल जरूरी

वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. गिरीश गुप्ता ने कहा कि वायु प्रदूषण वैश्विक समस्या है। इससे केवल बड़े शहर ही नहीं बल्कि छोटे शहर और गांव भी प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि आज प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, प्रदूषण के नुकसान सभी जानते हैं, लेकिन इसे रोकने की पहल करने वालों की संख्या उतनी नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं यह सेमिनार कराने वाली संस्था चिंतन को धन्यवाद देना चाहता हूं कि संस्था ने सेमिनार में मुझे आमंत्रित करके मुझे इस विषय में सोचने का अवसर दिया। उन्होंने कहा कि इसी का नतीजा है कि मैंनें नयी कार लेते समय इलेक्ट्रिक से चलने वाली कार खरीदने का फैसला यह सोचकर लिया कि प्रदूषण कम करने में मेरा भी योगदान होना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैंने पेट्रोल कार और इलेक्ट्रिक कार का पर्यावरण के दृष्टिकोण से अंतर महसूस भी किया। उन्होंने कहा कि यदि इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बड़ी मात्रा में होने लगे तो वायु प्रदूषण को रोकने में बहुत मदद मिलेगी। आज हर चीज प्रदूषित है, ओजोन लेयर के क्षरण के लिए क्लोरोफ्लोरो कार्बन बहुत बड़ा कारण हैं जो बड़ी मात्रा में एयर कंडीशन के द्वारा उत्पादित हो रही हैं। उन्होंने कहा ​कि गांव के कुएं का पानी आज भी ठीक है, जहां उसे सीधे कुएं से निकालकर प्रयोग किया जाता है जबकि शहर में पानी बिना ट्रीटमेंट के पीने लायक नहीं है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के अलावा जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण भी काफी है, इनके कारण बहुत सी बीमारियां पैदा होती हैं।

उन्होंने रेडियेशन से बचने में गाय के गोबर के महत्व को बताते हुए एक किस्सा साझा किया, उन्होंने बताया कि कुछ समय पूर्व वह रूस गये थे, मास्को में जब वह एक बहुत बड़ा म्यूजियम देखने पहुंचे तो वहां एक ऐसा कमरा देखा जिसके बाहर लिखा था कि यह कमरा रेडियेशन के प्रदूषण से मुक्त है, क्योंकि इसकी दीवारों को गाय के गोबर से पोता गया है। उन्होंने कहा कि गाय के गोबर का महत्व देखकर मैं आश्चर्यचकित था। उन्होंने कहा कि इन प्रदूषण के अलावा हमें दिमागी प्रदूषण से भी बचने की जरूरत है, इसे हम अपने विचारों और व्यवहार से ही बदल सकते हैं, आज छोटी-छोटी बातों को लेकर एक-दूसरे को अपशब्द कहना, ईर्ष्या-द्वेष रखना आम हो रहा है, जो कि ठीक नहीं है, उन्होंने कहा कि व्यक्ति की सोच का प्रभाव उसके शरीर पर भी पड़ता है, जिससे कई प्रकार के शारीरिक रोग हो जाते हैं, क्योंकि हम जब खुश होते हैं या दुखी होते हैं तो हमारे शरीर में अलग-अलग प्रकार के स्राव निकलते हैं, हमारे हार्मोंन्स पॉजिटिव और निगेटिव होने लगते हैं। निगे​टिव हार्मोन्स अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देते हैं, यहां तक कि शरीर के ​विभिन्न अंगों में गांठ भी बन जाती है। उन्होंने कहा कि इस थ्योरी को होम्योपैथी के अलावा आयुर्वेद, यूनानी में भी मानते हैं। उन्होंने बताया कि इसीलिए होम्योपैथी में हॉलिस्टिक एप्रोच यानी मरीज की मन:स्थिति का भी आकलन करने के बाद दवा का चुनाव किया जाता है।

यूनानी चिकित्सक डॉ. मोहम्मद अजहर ने कहा कि वर्तमान में वायु प्रदूषण एक चिंता का विषय है । चिंतन संस्था द्वारा विभिन्न विधाओं के चिकित्सकों को एक साथ लेकर वायु प्रदूषण से बचाव एवं इससे होने वाली समस्याओं के प्रबंधन एक बेहतर पहल है। उन्होंने वायु के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. मनदीप जायसवाल ने वायु प्रदूषण से होने वाली समस्याओं के आयुर्वेद विधा में प्रबंधन की बात की। उन्होंने संस्था का आह्वान किया कि अपने कार्यक्रम में इंजीनियर को भी शामिल करें जिससे कि वे टेक्नोलॉजी में बदलाव लाकर प्रदूषण को कम करने में अपना योगदान दे सकें।

चिंतन एन्वायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप की परियोजना निदेशक भारती चतुर्वेदी ने बताया कि संस्था जलवायु, परिवर्तन वायु प्रदूषण पर काम करती है। यह वायु प्रदूषण को लेकर जनपद में शासन के साथ काम कर रही है ।
इस परियोजना का उद्देश्य बच्चों में प्रदूषण के कारण होने वाली शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं से सरकार, शिक्षकों, अभिभावकों विभिन्न विधाओं के चिकित्सकों के माध्यम से बचाना और जागरूक करना है।
इस मौके पर इरम कॉन्वेंट कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा वायु प्रदूषण पर बनाए गए पोस्टर्स की प्रदर्शनी भी लगाई गई और उन्हें पुरस्कृत भी किया गया।
इस मौके पर आईएमए के सदस्य और वरिष्ठ चिकित्सक, केजीएमयू व इरम यूनानी चिकित्सा विद्यालय के मेडिकल के छात्र-छात्राएं, रोटरी क्लब के सदस्य तथा चिंतन एन्वावायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप की परियोजना निदेशक अदिति जोशी, चिंतन संस्था की लखनऊ की कोऑर्डिनेटर डॉ भव्या सहित पूरी टीम मौजूद थी।

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