-जरूरत से ज्यादा प्रोटीन पर प्रतिबंध से मरीज हो सकते हैं कुपोषण के शिकार
-“किडनी रोग में पोषण संबंधी हस्तक्षेप – स्वस्थ जीवन के लिए एक सुरक्षित हथियार” विषय पर सम्मेलन का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। सामान्य लोगों के लिए सेंधा नमक या लोना नमक खाना फायदेमंद हो सकता है लेकिन गुर्दा रोगियों, जिनकी सीरम क्रियेटिनाइन 1.5 से 2.0 से ऊपर है उन्हें सेंधा नमक या लोना नमक नहीं खाना चाहिये क्योंकि इससे इससे हाइपरकेलेमिया हो सकता है। हाइपरकेलेमिया से अचानक हृदयाघात हो सकता है। ऐसे रोगियों को साधारण नमक प्रतिदिन एक टेबल स्पून (5 ग्राम) से कम खाना चाहिये।
यह सलाह संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो नारायण प्रसाद ने विभाग द्वारा आयोजित “किडनी रोग में पोषण संबंधी हस्तक्षेप – स्वस्थ जीवन के लिए एक सुरक्षित हथियार” विषय पर एक सम्मेलन मेंं दी। यह सम्मेलन 23 और 24 दिसंबर को होटल सेंट्रम में आयोजित किया गया था। प्रो नारायण प्रसाद ने कहा कि कम नमक वाला आहार किडनी रोगों को बढ़ने से रोकने में महत्वपूर्ण है। यह रक्तचाप का भी अच्छा नियंत्रण करता है।
प्रो. नारायण प्रसाद ने क्रोनिक किडनी रोग के रोगियों में आहार और प्रोटीन प्रतिबंध और कुपोषण के बीच संतुलन बनाने के महत्व पर जोर दिया, उन्होंने कहा कि बहुत अधिक प्रतिबंध से कुपोषण हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक दिन में प्रोटीन 0.6 से 0.8 ग्राम/किलोग्राम के हिसाब से कम खाने पर शरीर में प्रोटीन की कमी हो सकती है। उन्होंने कहा कि और वर्तमान में गुर्दे के प्रत्यारोपण से पहले 60-70% मरीज कुपोषित होते हैं।
सम्मेलन का उद्देश्य आहार और पोषण पर पोषण विशेषज्ञों को पढ़ाना और जागरूक करना था। इसमें लगभग 300 से अधिक प्रतिनिधियों, आहार विशेषज्ञों और पोषण विशेषज्ञों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम उपचार करने वाले नेफ्रोलॉजिस्ट और आहार विशेषज्ञ के बीच बातचीत करने का अच्छा मंच था। एक खास बात बतायी गयी कि आहार निर्धारित करने वाले दो समूहों, चिकित्सकों और आहार विशेषज्ञों के बीच ज्ञान का बड़ा अंतर है।
नेफ्रोलॉजी प्रैक्टिस में औषधि के रूप में आहार की अवधारणा को इसी विषय पर अपने भाषण के दौरान इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के अध्यक्ष प्रोफेसर विवेकानंद झा द्वारा चर्चा में लाया गया था।
उद्घाटन समारोह के दौरान एसजीपीजीआई के निदेशक प्रोफेसर आरके धीमन, जो खुद एक हेपेटोलॉजिस्ट हैं, ने गुर्दे की विफलता और लिवर की विफलता वाले रोगियों में एक साथ आहार समायोजन की आवश्यकता के बारे में बताया। कब्ज हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी को कैसे बढ़ा सकता है? सीकेडी के रोगियों के आहार में फाइबर, संपूर्ण आहार के रूप में विटामिन और खनिजों के महत्व पर भी चर्चा की गई।
नेफ्रोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर और बैठक के आयोजन सचिव डॉ. मानस रंजन बेहरा ने बताया कि आहार को सीमित करते समय ऊर्जा के सेवन को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, जो पर्याप्त होना चाहिए।
चेन्नई के प्रोफेसर जॉर्जी अब्राहम ने इस बात पर जोर दिया कि सामान्य रूप से पोषित रोगियों की तुलना में प्रोटीन ऊर्जा बर्बाद करने वाले रोगियों की जल्दी मृत्यु हो जाती हैं।
अहमदाबाद से आए डॉ. अश्विन डाबी ने सीकेडी में कीटो डाइट के बारे में जोर दिया। यदि रोगी बहुत कम प्रोटीन आहार <0.5 ग्राम/किग्रा/दिन पर है तो केटोएनालॉग अनुपूरण किया जाना चाहिए।
किडनी फेल होने पर कार्डियोरेनल सिंड्रोम पर चर्चा की गई, नमक और पानी के जमा होने से कंजेस्टिव हार्ट फेलियर होता है। अन्य संशोधनों के अलावा, नमक और पानी का सेवन कम करके आहार संशोधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नेफ्रोलॉजी विभाग के अन्य संकाय सदस्यों प्रो. अनुपमा कौल, डॉ. डी.एस. भदौरिया, डॉ. मानस आर पटेल, डॉ. मोनिका याचा, डॉ. रवि एस. कुशवाहा, डाक्टर जेयाकुमार व डाक्टर हर्षिता शर्मा ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस सम्मेलन में अनेक चिकित्सक वैज्ञानिकों ने भी भाग लिया।
चर्चा के मुख्य बिंदु :
-सामान्य आबादी और सीकेडी आबादी में कुपोषण का प्रसार उच्च <50% है।
-सीकेडी के रोगियों को सेंधा नमक से परहेज करना चाहिए।
-सामान्य गुर्दे की कार्यप्रणाली वाले व्यक्तियों के लिए लोना नमक अच्छा विकल्प हो सकता है।
-प्रोटीन प्रतिबंध 0.6 से 0.8 ग्राम/किग्रा/दिन से कम नहीं होना चाहिए
-यदि कम प्रोटीन आहार की सलाह दी जाती है तो कुपोषण और ऊर्जा प्रतिबंध का ध्यान रखें। सीकेडी मरीज की डायलिसिस के समय प्रोटीन और ऊर्जा का सेवन बढ़ाया जाना चाहिए।