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कोविड के कारण होने वाली घबराहट, कोविड से भी बड़ी महामारी !   

-कोरोना से ग्रस्‍त मरीजों से दस गुना ज्‍यादा लोग इसकी दहशत के शिकार  

-जीसीसीएचआर के डॉ गौरांग गुप्‍ता से सेहत टाइम्‍स की खास बातचीत

डॉ गौरांग गुप्‍ता

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। पूरी दुनिया को हिला देने वाली बीमा‍री कोविड-19 ने न सिर्फ शरीर को बीमार किया बल्कि व्‍यक्ति की मन:स्थिति को भी बुरी तरह झकझोरा है। हालात ये हैं कि कोविड के बाद विशेषकर पिछले वर्ष मार्च-अप्रैल 2021 में आयी दूसरी लहर के बाद से अब सवा साल का समय बीतने के बाद भी अनेक लोग एंग्‍जाइटी यानी घबराहट के शिकार हैं। इनकी घबराहट की वजह सिर्फ और सिर्फ कोविड और उससे उत्पन्‍न स्थिति की भयावहता को लेकर उनके मन में उठने वाले विचार हैं।

गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के कन्‍सल्‍टेंट डॉ गौरांग गुप्‍ता ने एक विशेष बातचीत में कहा कि रोज ही लगभग चार-पांच इस तरह के मरीज उनके पास आ रहे हैं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि कोविड के कारण उत्‍पन्‍न हुई इस समस्‍या से बड़ी संख्‍या में लोग त्रस्‍त हैं। डॉ गौरांग ने बताया कि मोटे तौर पर ऐसा कहा जा सकता है कि घबराहट की इस बीमारी के मरीजों की संख्‍या कोविड के बाद दो से तीन गुना बढ़ गयी है लेकिन अच्‍छी बात यह है कि उनकी समस्‍या का हल निकल रहा है और वे ठीक हो रहे हैं।

वैश्विक स्‍तर पर डेटा कलेक्‍ट किये जाने की जरूरत

डॉ गौरांग कहते हैं कि वास्‍तव में अगर देखा जाये तो कोविड के कारण  होने वाली घबराहट के मरीजों की संख्‍या कोविड के मरीजों से की संख्‍या से कहीं ज्‍यादा है, क्‍योंकि कोविड एक को हुआ लेकिन उसकी दहशत का असर दूसरे अन्‍य उन दस लोगों को भी हुआ जिन्‍हें कोविड नहीं हुआ, यानी मोटे अनुमान के आधार पर कहा जाये तो कोविड के कारण घबराहट के मरीजों की संख्‍या कोविड के मरीजों की संख्‍या से दस गुना ज्‍यादा हुई।  यानी कहा जा सकता है कि कोविड से पैदा हुई घबराहट कोविड से भी बड़ी महामारी बन गयी है, लेकिन चूंकि वैश्विक स्‍तर पर इसका कोई डेटा कलेक्‍ट करने की पहल नहीं की गयी है, इसलिए ऐसे लोगों की कुल संख्‍या सामने नहीं आयी है। डॉ गौरांग कहते हैं कि इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि चूंकि कोविड से लोगों की बड़ी संख्‍या में मौत भी हुई हैं इसलिए सबका ध्‍यान कोविड को महामारी के रूप में देखने पर ज्‍यादा लगा है और चूंकि कोविड के चलते होने वाली घबराहट से मौत का खतरा नहीं है, इसलिए इस पर किसी का ध्‍यान नहीं गया, जबकि यह समस्‍या अपने आप में काफी गंभीर है। वे कहते हैं कि ये ही वे वजह हैं कि इसकी गंभीरता को अब तक महसूस नहीं किया जा सका है।  

घबराहट वाले ऐसे मरीज किस प्रकार के लक्षण या समस्‍या लेकर आते हैं, यह पूछने पर डॉ गौरांग बताते हैं कि इन लोगों को उलझन की शिकायत, अचानक से परेशान होने लगना, दिल की धड़‍कन तेज हो जाना, पसीना छूटना, सांस तेजी से चलना जैसी शिकायत होती है। इसके अतिरिक्‍त ऐसे कुछ मरीजों में आत्‍महत्‍या की प्रकृति तक देखी गयी है, मरीजों को डर लगता है कि जैसे अभी कुछ हो जायेगा। कुछ मरीजों को बार-बार हाथ धोने की आदत पड़ गयी है, क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि कहीं हाथ में वायरस न आ गया हो, लोगों के बीच में न जाना, भीड़ में न जाना, अलग-अलग रहना, अपने को आईसोलेट करने के लक्षण देखे गये हैं। वे बताते हैं कि लगातार आईसोलेट होना भी अपने आप में दिक्‍कत पैदा करता है क्‍योंकि इससे लोग एकाकीपन का शिकार हो जाते हैं।

नकारात्‍मक विचारों के पुल बनाकर होते हैं परेशान

डॉ गौरांग बताते हैं कि घबराहट के जो मरीज आ रहे हैं उनमें देखा गया है कि ये मरीज बेचैनी पैदा करने वाले, दहशत पैदा करने वाले विचारों का एक पुल बना लेते हैं, चूंकि ये विचार नकारात्‍मक होते हैं इसलिए उन्‍हें डराते रहते हैं, जबकि इन विचारों का असलियत तो कोई वास्‍ता नहीं होता है। डॉ गौरांग बताते हैं कि इनकी सोच और निराशा इतनी तक हावी हो जाती है कि ये सोचते हैं कि मुझे कुछ हो गया तो क्‍या होगा, मैं अपनी वसीयत बनवा लूं… मेरे बाद घर कैसे चलेगा…बच्‍चों को कौन देखेगा… उनकी पढ़ाई कैसे होगी। यही नहीं, कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कोविड के वैक्‍सीनेशन को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं उन्‍हें लगता है कि अगर लगवा लिया तो कोई साइड इफेक्‍ट न हो जाये और अगर नहीं लगवाता हूं तो कहीं कोविड न हो जाये। इसी उधेड़-बुन में वे बीमार होते जाते हैं।

डॉ गौरांग ने कहा कि यहां मैं यह साफ करना चाहता हूं कि हाथ धोना खराब बात नहीं है, बल्कि सफाई के लिए ऐसा करना आवश्‍यक है, इसी प्रकार संक्रमण काल, जो कि अभी पूरी तरह समाप्‍त नहीं हुआ है, में आवश्‍यक दूरी बनाये रखना आदि बातें सही तो हैं लेकिन जब ये आदतें बीमारी में बदल जायें या फि‍र दहशत पैदा करती रहें तो चिंता की बात है।

काउंसि‍लिंग और दवा दोनों की भूमिका कारगर

वे बताते हैं कि ऐसे मरीजों की हिस्‍ट्री जानकर उनकी प्रकृति के अनुसार दवा का चुनाव किया जाता है, साथ ही उनकी काउंसिलिंग भी की जाती है। दवा इनके विचारों को नियंत्रित करने का कार्य करती है, जबकि काउंसिलिंग से उन्‍हें समझाया जाता है कि किस प्रकार उन्‍हें सावधान रहना है, डरना नहीं है, उन्‍होंने कहा कि जिस प्रकार से एक समय ऐसा था कि लोग एड्स को लेकर बहुत ज्‍यादा घबराते थे, फि‍र धीरे-धीरे उनकी समझ में आता गया कि इससे डरने की नहीं, बल्कि सावधान रहने की जरूरत है और आज आप देख रहे हैं कि एड्स के प्रति लोगों में पहले वाला अनावश्‍यक भय नहीं है। इस प्रकार दवा और काउंसिलिंग के साथ इलाज होने के परिणामस्‍वरूप धीरे-धीरे वे स्‍वस्‍थ हो जाते हैं।  

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