बच्चों के उत्पीड़न पर लोहिया संस्थान में आयोजित सीएमई में निदेशक ने कहा, बढ़ रहे हैं ऐसे मामले
रिटायर्ड जज ने कहा कि जांच अधिकारी ऐसा व्यवहार करें कि बच्चा सहज होकर सबकुछ बताये
लखनऊ। अपराध में पकड़े जाने वाले बच्चों से जुड़े जांच अधिकारियों को बच्चों से पूछताछ के समय उनकी मानसिक स्थिति का ध्यान रखना चाहिये। जांच अधिकारी उन बच्चों से ऐसा व्यवहार करें जैसे वह अपने बच्चे से कर रहे हों जिससे कि वह सहज होकर सारी बात बता सके।
यह बात सेवानिवृत्त जिला जज विजय वर्मा ने राम मनोहर लोहिया संस्थान में फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सीकोलॉजी विभाग द्वारा ‘बच्चों में विषाक्त पदार्थ का सेवन, उनकी पहचान, यौन दुर्व्यवहार, विभिन्न तरह की चोटें और उनकी पहचान’ विषय पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में कहीं। उन्होंने बच्चों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के कानूनी पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार से अपराध सिद्ध होने के बाद बच्चों को जब सजा दी जाये तो यह देखा लेना चाहिये कि बच्चा स्वयं बाल उत्पीड़न का शिकार तो नहीं हुआ है?
सीएमई के मुख्य अतिथि लोहिया संस्थान के निदेशक प्रो एके त्रिपाठी ने अपने अपने सम्बोधन में बच्चों के उत्पीड़न जैसे विषय पर सीएमई के आयोजन के लिए फॉरेंसिंक मेडिसिन एंड टॉक्सीकोलॉजी विभाग की हेड डॉ रिचा चौधरी को बधाई देते हुए कहा कि आजकल बच्चों के साथ उत्पीड़न के मामले जो बढ़ रहे हैं उनमें बहुत बड़ा कारण माता-पिता द्वारा बच्चे पर ध्यान न देना है। माता-पिता के पास बच्चों की देखरेख के लिए समय नहीं होता है, नौकरों के सहारे बच्चों को छोड़ना उनकी मजबूरी होती है।
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लोहिया संस्थान के रेडियो डायग्नोसिस विभाग के डॉ समरेन्द्र नारायन ने बाल शोषण को रेडियो ग्राफिक के माध्यम से पहचानने के बारे में जानकारी दी। इसमें उन्होंने बताया कि यदि किसी शरीर के किसी अंग पर बार-बार प्रहार का निशान दिखे तो इसका अर्थ है कि हो सकता है वह निशान बच्चे के उत्पीड़न किये जाने की वजह से हो। सीएमई के संचालन में आयोजन सचिव डॉ रिचा चौधरी के साथ ही डॉ प्रदीप यादव,, डॉ संजय पटेल, डॉ कृतिक, डॉ रिषभ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।