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महामारी का रूप ले चुका मोटापा भी पति-पत्नी को रोक रहा मम्मी-पापा बनने से

-अजंता होप सोसाइटी ऑफ ह्यूमैन रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च और इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में सीएमई का आयोजन

-“एआरटी और हाई रिस्क प्रेगनेंसी में अत्याधुनिक नवाचार” पर आयोजित सीएमई में लगभग 400 गाइनेकोलॉजिस्ट जुटे

सेहत टाइम्स

लखनऊ। महामारी की तरह बढ़ रहा मोटापा भी पति-पत्नी के माता-पिता बनने में बाधक हो रहा है। क्योंकि मोटापे के चलते हार्मोन्स में ऐसे बदलाव होते हैं जिससे पुरुषों के स्पर्म और महिलाओं के अंडे कमजोर पड़ जाते हैं, नतीजा संतानोत्पत्ति का सपना पूरा नहीं हो पाता है। मोटापे के अलावा प्रेगनेंसी को लेकर उचित जानकारी का अभाव, जॉब या किसी अन्य मजबूरी के चलते पति-पत्नी में दूरियां, यौन रोग भी संतानहीनता के कारणों में शामिल हैं।

यह जानकारी आज 29 सितम्बर को यहां होटल क्लार्क अवध में अजंता होप सोसाइटी ऑफ ह्यूमैन रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च और इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी की लखनऊ शाखा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में हुई चर्चा के बारे जानकारी देते हुए विशेषज्ञों ने दी। पत्रकार वार्ता में इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो केडी नायर, डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की प्रोफेसर व इंफर्टिलिटी यूनिट की नोडल ऑफीसर डॉ मालविका मिश्रा और सीएमई की आयोजक प्रतिष्ठित स्त्री रोग विशेषज्ञ और 28 वर्षों से आईवीएफ का अनुभव रखने वाली एक्सपर्ट डॉ. गीता खन्ना ने आज की सीएमई के बारे में जानकारी दी। डॉ गीता खन्ना ने बताया कि आईवीएफ के जरिये संतान पाने के इच्छुक दम्पतियों को यह समझना होगा कि आर्टिफिशियल रिप्रोडक्टिव तकनीक नॉर्मल प्रेगनेंसी की तरह नहीं होती है, इसमें ज्यादा देखभाल की जरूरत होतीे है, वरना संतान पाने के लिए की गयी आपकी कवायद बेमायने हो जाती है, साथ ही आपके द्वारा किया गया खर्च भी बेकार चला जाता है। उन्होंने कहा कि संतान न होने के पीछे मोटापा एक महामारी के रूप में सामने आ रही है, डॉ गीता ने बताया कि जॉब के चलते पति-पत्नी में न चाहकर भी दूरियां हो जाती हैं, उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे कि आईटी प्रोफेशनल्स में, सरहद पर तैनात जवानों में संतान न होने की दिक्कतें देखी गयी हैं। उन्होंने बताया कि एक बड़ा कारण यौन रोग होना भी पाया जा रहा है।

इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी (आईएफएस) के पूर्व अध्यक्ष डॉ केडी नायर ने बताया कि 15 से 20 प्रतिशत ऐसे मरीज होते हैं जिनमें इस विषय में बहुत कम जागरूकता देखी गयी है, उन्हें आईवीएफ तकनीक से प्रेगनेंसी का आधा-अधूरा ज्ञान होता है, यहां तक कि ऐसे भी मरीज होेते हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि गर्भ ठहरने के लिए कौन सा समय अनुकूल होता है, यह बहुत दुखद है कि उनमें इस तरह की जानकारियों का अभाव होने के कारण वे संतान सुख नहीं ले पा रहे होते हैं। डॉ नायर ने बताया कि इन सभी जानकारियों को लेकर आईएफएस ने एक 45 सूत्रीय इंटरनेशनल गाइडलाइंस तैयार की हैं, जिसे हम जारी करने जा रहे हैं, ये गाइडलाइंस इंटरनेशनल जर्नल में भी पब्लिश करायी जा रही हैं, जिससे दुनिया भर के आईवीएफ विशेषज्ञों को इसकी जानकारी हो सकेगी और वे अपने मरीजों को इस बारे में बता पायेंगे। एक सवाल के जवाब में डॉ नायर ने बताया कि आईवीएफ की सफलता के संबंध में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जानकारी से आंकड़े जुटाए जा रहे हैं, जिससे एक बड़ी तस्वीर सामने आ सकेगी।

लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की डॉ मालविका मिश्रा पिछले 20 वर्षों से इस फील्ड में काम कर रही है, उन्होंने कहा कि आईवीएफ पर बहुत काम हुआ है लेकिन अभी भी बहुत काम बाकी है, सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आईवीएफ प्रेगनेंसी को लोग एक बड़ा स्टिग्मा मानते हैं। यहां तक कि आईवीएफ तकनीक से प्रेगनेंसी के बाद पेशेंट यह अवॉइड करते हैं कि किसी को इस बात का पता चले। इसके बारे में बात नहीं करते हैं, यहां तक कि डिलीवरी तक ट्रीटमेंट लेना भी वह जरूरी नहीं समझते। उनका यह स्टिग्मा हटाने की जरूरत है, उनको यह समझाने की जरूरत है कि आईवीएफ तकनीक से प्रेगनेंसी नॉरमल प्रेगनेंसी की तरह नहीं है इसमें बहुत ध्यान रखने की जरूरत होती है वरना बेबी को नुकसान होने का डर रहता है, जब वह सही जगह पर सही तरीके से ट्रीटमेंट लेते रहते हैं तो एक सुरक्षित डिलीवरी हो सकती है। एक सवाल के जवाब में डॉ मालविका ने कहा कि हमें स्कूल या कॉलेज के स्तर पर यौन शिक्षा देने की आवश्यकता है। स्टिग्मा को लेकर पूछे गये एक सवाल के जवाब में डॉ गीता ने कहा कि दरअसल यह स्टिग्मा होने के पीछे सिर्फ मरीज की गलती नहीं है बल्कि पुराने समय से इस बात को एक अलग दृष्टि से देखा जाता है, यहां तक कि बहुत बार मरीज घरवालों से छिपाकर आईवीएफ तकनीक अपनाते हैं, और डिलीवरी के बाद वे यह रिक्वेस्ट करते हैं कि मेरे केस को अपनी फाइल से हटा दीजिए ताकि किसी को भविष्य में पता ना चले कि मैंने आईवीएफ ट्रीटमेंट लिया।

विशेषज्ञों ने बताया कि इस कार्यक्रम में देश भर के विशेषज्ञ एक साथ आए, जिन्होंने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट और गर्भावस्था देखभाल के परिणामों को और बेहतर बनाने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोण, प्रैक्टिकल दिशानिर्देश और अनुसंधान सफलताएं प्रस्तुत कीं।

सत्र के विषयों में रिप्रोडक्टिव चिकित्सा के महत्वपूर्ण पहलुओं की एक विस्तृत शृंखला को शामिल किया गया, जिसमें एक ओर नए लचीले डिम्बग्रंथि उत्तेजना प्रोटोकॉल, खराब प्रतिक्रियाकर्ताओं का प्रबंधन, आवर्ती आरोपण विफलता और मोटापे और शिथिल जीवन शैली का प्रजनन क्षमता पर प्रभाव और दूसरी ओर देर से विवाह, कार्यस्थल पर तनाव और उम्र के कारण अंडों की गुणवत्ता में गिरावट के समय अंडों को संरक्षित करना शामिल रहा। सीएमई में लचीले प्रोटोकॉल के बारे में जानकारी, जो सफलता दर को बढ़ाती और विफलताओं को कम करती है, दी गयी।

इस सीएमई का उद्घाटन केजीएमयू की कुलपति प्रोफेसर डॉ सोनिया नित्यानंद ने किया। आयोजन चेयरपर्सन डॉ अनिल खन्ना व डॉ गीता खन्ना ने प्रो सोनिया नित्यानंद को अंगवस्त्र से सम्मानित किया। सीएमई में भाग लेने वालों में प्रो केडी नायर, प्रो मीरा अग्निहोत्री, प्रो चंद्रावती, प्रो कुलदीप जैन, प्रो आभा मजूमदार, डॉ. जयेश और डॉ. सुरवीन घुमन व अन्य शामिल थे। इस सीएमई के आयोजन अध्यक्ष अजंता हॉस्पिटल के एमडी डॉ अनिल खन्ना ने आये हुए अ​तिथियों का आभार जताया।

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