ब्लड कैंसर के क्षेत्र में नए शोधों के साथ अपने अनुभव को बांटने के लिए जुटे भारत के साथ ही यूरोपीय देशों के विशेषज्ञ भी
लखनऊ। ब्लड कैंसर कई प्रकार के होते हैं, इनमें कुछ का तो पूर्ण इलाज उपलब्ध हैं, कुछ का आंशिक रूप से इलाज किया जा सकता है और कुछ का इलाज अभी नहीं है। जिनका इलाज है, उनमें अधिकांश में कीमोथेरेपी दी जाती है। नये शोध कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट से बचाने के लिए या लाइलाज कैंसर के इलाज के लिए हो रहें हैं। फिलवक्त कीमोथेरेपी में दी जाने वाली हाई डोज एंटीबायोटिक दवाओं के साइड इफेक्ट से बचने के लिए इंजेक्शन आ चुके हैं। जो की टारगेटेड थेरेपी तकनीक के तहत शरीर में केवल कैंसर सेल को ही नष्ट करते हैं। अन्य अच्छे सेल्स सुरक्षित रहते हैं, जिसकी वजह से मरीज को शारीरिक दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है। यह जानकारी शुक्रवार को थर्ड आइएसएचबीटी-इएचए ट्यूटोरियल में केजीएमयू के प्रो.एके त्रिपाठी ने दी।
गोमती नगर स्थित निजी होटल में, इंडियन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी एडं ब्लड ट्रांस यूजन, यूरोपियन हेमेटोलॉजी सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित लिम्फोप्रोलाइफेरेटिव एवं प्लाज्मा सेल डिसआर्डर विषयक तीन दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन के लेक्चर की जानकारी देते हुए हेमेटोलॉजिस्ट प्रो.त्रिपाठी ने बताया कि लखनऊ में पहली बार ब्लड कैंसर पर विश्वस्तरीय कॉन्फ्रेंस हो रही है। उन्होंने बताया कि इस कॉन्फ्रेंस में यूरोप के 10 देशों के साथ ही भारत के 20 कैंसर विशेषज्ञ अपनी जानकारी दे रहे हैं।
उन्होंने बताया कि अभी तक जो कीमोथेरेपी की जा रही थी उससे नुकसान भी होता था। उन्होंने बताया कि वर्तमान कीमोथेरेपी, बतौर बम की तरह होती है। कीमो में दी जाने वाली हाई डोज की दवाओं के प्रभाव से मरीज के शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है क्योंकि कैंसर सेल के साथ ही शरीर को शक्तिशाली बनाने वाले अच्छे सेल भी मर जाते हैं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है। शोध द्वारा केवल कैंसर सेल को पहचाने वाली और उन्हें नष्ट करने वाली दवाएं (प्रोटीन)उपलब्ध हैं, ये दवाएं सर्जिकल स्ट्राइक की तरह काम करती हैं यानी कैंसर सेल्स को ही मारती हैं। इस शोध से मरीजों को राहत मिली है।
सीएमई का अधिकारिक उद्घाटन चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन ने किया। इस अवसर पर कुलपति समेत देश विदेश के विशेषज्ञ मौजूद रहें।
प्रो.त्रिपाठी ने बताया कि कैंसर के इलाज में मरीज के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, ताकि कैंसर सेल से शरीर अधिक समय तक लड़ सके। शीघ्र ही भारत में सुविधा उपलब्ध होने की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि कैंसर का कारक, कार-टी सेल को पहचान कर शरीर से बाहर निकालते हैं और सेलुलर थेरेपी से जीन कैंसर को मोडीफाइ करते हैं और दोबारा मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित कर देते हैं, जिसके बाद मोडीफाइ सेल, कैंसर सेल से लड़ते हैं और उनके दुष्प्रभाव को कम करते हैं
एंटीबाडीज से कायम रखते हैं रोग प्रतिरोधक क्षमता
पीजीआई चंडीगढ़ के प्रो.सुभाष वर्मा ने एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकिमिया (कैंसर) के इलाज में इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाये रखने के लिए मरीज में मोनो कोनल एंटीबाडीज देते हैं। ये एंटीबाडीज, कैंसर सेल और एंटीकैंसर सेल को ढूंढ़ कर दोनों को मिलाता है, जिसकी वजह से कैंसर सेल का प्रभाव कम हो जाता है जबकि अन्य अच्छे सेल शरीर में सुरक्षित रहते हैं। एंडी बाडीज से कैंसर सेल का निर्माण प्रक्रिया थम जाती है। दोनों सेल को मिलाने के बाद ये एंटीबाडी खुद नष्ट हो जाता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2000 के बाद से नई दवाओं एवं तकनीक की खोज की वजह से कैंसर रोगी दवाओं का सेवन कर 15-20 साल का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जबकि पूर्व में कुछ सालों में ही मृत्यु हो जाती थी।
आईब्रू टिनिप टेबलेट से मरते हैं कैंसर सेल
प्रो. वर्मा ने क्रोनिक लिम्फेट ल्यूकिमिया (सीएलएल) के इलाज में बताया कि यह कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है, लक्षण न प्रकट होने की वजह से लोगों को पता ही नहीं चलता है। अमूमन 50 साल उम्र के बाद पता चलता है उस समय इलाज (कीमोथेरेपी)अत्यंत कठिन हो जाता है। मगर अब आईब्रू टिनिप नाम की टेबलेट बाजार में आ चुकी है जो कि केवल कैंसर सेल को मारती है, फिलवक्त यह टेबलेट, बारा कैंसर सेल प्रकट होने पर दी जा रही है। शीघ्र ही भारत मे शोध कार्य पूर्ण होने के बाद प्रारंभिक चरण में उपयोग में लाई जायेगी।
कॉन्फ्रेंस के पहले दिन जिन विशेषज्ञों ने भाग लिया उनमें मुख्य रूप से इटली के डॉ रोबिन फोआ, डॉ सुभाष वर्मा, डॉ अंशुल गुप्ता, डॉ प्रद्युम्न सिंह, इजरायल के डॉ शाई इजरायली, इटली के Dr. Gianluca Gaidano, डॉ एमबी अग्रवाल, डॉ फराह जिजिना, पोलैंड के Dr.Tadeusz Ronak, डॉ सुमित गुजराल, डॉ राखी कार शामिल रहे।