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बढ़ रहा है पुरुष बांझपन, लेकिन कलंक और सामाजिक चुप्पी के कारण छिपा हुआ है

-इंडियन फर्टिलिटी सोसायटी, लखनऊ ऑब्स एंड गाइनी सोसाइटी और अजंता होप सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में सीएमई का आयोजन

सेहत टाइम्स

लखनऊ। वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. गीता खन्ना ने चेतावनी दी है कि पुरुष बांझपन विश्व में तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन कलंक और सामाजिक चुप्पी के कारण यह छिपा रह जाता है—जिससे उपचार में देरी होती है और परिणाम अच्छे नहीं आते हैं।

इंटरनेशनल होप सीएमई 2025 में बोलते हुए डॉ. गीता ने कहा कि बांझपन अब केवल महिलाओं की समस्या नहीं है। देश में हर छह में से एक दंपति निःसंतानता से जूझ रहा है और लगभग आधे मामलों में पुरुष कारक जिम्मेदार हैं, फिर भी पुरुष जाँच कराने से हिचकते हैं और समस्या पर्दे के पीछे छिपी रह जाती है।

उन्होंने जीवनशैली संबंधी विकारों—मोटापा, धूम्रपान, शराब, तनाव, देर से विवाह—तथा चिकित्सीय कारणों जैसे पीसीओएस, फाइब्रॉइड, एंडोमीट्रियोसिस, बंद ट्यूब और घटती शुक्राणु गुणवत्ता को मुख्य कारण बताया। उन्होंने कहा कि लखनऊ में अचानक आईवीएफ केंद्रों की संख्या 60–65 तक पहुँच जाना बांझपन की बढ़ती महामारी को दर्शाता है, और शहर अब आईवीएफ हब के रूप में उभर रहा है।

डॉ. खन्ना ने जोर देकर कहा कि कलंक और जागरूकता की कमी के कारण महिलाओं पर अनुचित दोषारोपण होता है। उन्होंने बताया कि करीब 78% दंपति मानसिक तनाव से गुजरते हैं और चौंकाने वाली बात है कि 60% महिलाएँ पहले ओझा–गुनियों या faith healers के पास जाती हैं, डॉक्टरों के पास नहीं। इसका नतीजा यह होता है कि कीमती साल और संसाधन नष्ट हो जाते हैं।

उन्होंने कड़े नियमन, रोगी परामर्श और नैतिक प्रैक्टिस की मांग करते हुए कहा कि बांझपन एक बीमारी है, कलंक नहीं। जब तक पुरुष समय पर जाँच के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक दंपतियों को चुप्पी में पीड़ा झेलनी पड़ेगी। आईवीएफ एक आशा देने वाली तकनीक है—हमें इसका जिम्मेदारी से उपयोग करना होगा।

होप सीएमई 2025, जिसका विषय था “बदलता परिदृश्य: बांझपन के उपचार – 2025 की नई प्रवृत्तियाँ”, की मेजबानी डॉ. गीता खन्ना ने की। इसका संयुक्त आयोजन इंडियन फर्टिलिटी सोसायटी (IFS), LOGS और अजंता होप सोसायटी द्वारा होटल क्लार्क्स में किया गया। कार्यक्रम के रक्षा मंत्री व लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह के प्रतिनिधि के रूप में रिटायर्ड आईएएस दिवाकर त्रिपाठी उपस्थित रहे जबकि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आईएफएस के अध्यक्ष विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित कर्नल डॉ पंकज तलवार थे।

सीएमई में भारत और विदेश से आए आईवीएफ विशेषज्ञों—डॉ. सोनिया मलिक, डॉ. के.डी. नायर, डॉ. पूनम नायर, डॉ. कुलदीप जैन और डॉ. यूसुफ अल्हाऊ (यूएई)—ने भाग लिया। इसमें एआरटी में प्रथम तिमाही रक्तस्राव, आईवीएफ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रेजिस्टेंट पीसीओएस, मोटापा और प्रजनन क्षमता, पुरुष स्वास्थ्य, परामर्श, प्रिसीजन आईवीएफ प्रोटोकॉल, एम्ब्रायोलॉजी और अल्ट्रासाउंड में नवाचार जैसे विषयों पर सत्र हुए। साथ ही एआरटी और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के लिए नवीनतम दिशानिर्देशों के समावेश पर उच्च-स्तरीय पैनल चर्चा आयोजित की गई, जिसने चिकित्सकों को व्यावहारिक सुझाव प्रदान किए।

समापन पर डॉ. खन्ना ने कहा कि बांझपन के उपचार का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। समय पर निदान, नैतिक प्रैक्टिस, परामर्श और उन्नत तकनीकों का उपयोग वास्तव में उन दंपतियों के परिणामों को बदल सकता है जो निःसंतानता से जूझ रहे हैं।

लड़कों का 30 वर्ष, लड़कियों का 25 वर्ष तक हो जाना चाहिये विवाह

विशेषज्ञों ने पत्रकारों के साथ वार्ता में कहा कि 38 वर्ष में अपने अंडे प्रिजर्व कराने आ रही हैं, जांच में पता चलता है कि प्रिजर्व करने लायक अंडे बन ही नहीं रहे हैं… अब भी लैपटॉप, मोबाइल से नुकसान हो रहा है… लेट मैरिज, करियर के चलते संतानोत्पत्ति को टालते रहते हैं… छह-छह माह में पति-प​त्नी मिल रहे हैं, जबकि माह में एक बार अंडा फर्टाइल होता है, ऐसे में गर्भ ठहरने में दिक्कत तो आयेगी ही… पीसीओडी बीमारी किशोरावस्था से लेकर मीनोपॉज तक असर डालती है… एक्सरसाइज खत्म… खाना भी ऑनलाइन मंगाना जिससे खाना बनाने की मेहनत भी बंद, यहां तक कि खाना परोसना भी अपने हाथ से नहीं करना… किसी जमाने में लोग भुखमरी से मरते थे, अब मोटापे से मर रहे हैं। …थोड़ी दूर भी चलना अवॉइड करते हैं… पैकेज्ड फूड नुकसानदायक है। प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करें, परिवार मिलकर जब खाना खाता है, तो तनाव बंट जाता है… माता-पिता को बच्चों का दोस्त बनकर उनको समझाना चाहिये, उनसे पढ़ाई और कमाई की बात न करके उसकी दिक्कतों के बारे में भी पूछना चाहिये। इसके साथ ही स्कूल सबसे अच्छी जगह है जहां बच्चों को इसकी जानकारी देनी चाहिये। लड़की की उम्र 25 तक तथा लड़के की उम्र 30 तक होते-होते विवाह हो जाना चाहिये।

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