Saturday , November 23 2024

बच्‍चों को आपके टच की जरूरत है, स्‍क्रीन के टच की नहीं

बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम- भाग-1

अनुज कुमार पाण्‍डेय

हाल के वर्षों में बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है, चिंता की बात यह है कि माता-पिता या अभिभावकों को अपने बच्चे के भविष्य में होने वाले नुकसान के बारे में पता ही नहीं है। समस्या बढ़ जाने पर यही माता-पिता अपनी लाचारी दिखाते हुए …क्या करूं बच्चा मानता ही नहीं है… कहते नजर आते हैं। 18 वर्ष की उम्र तक के शिशु बच्चे और किशोरों के लिए पीडियाट्रिक सोसाइटी ऑफ इंडिया ने कुछ गाइडलाइंस भी जारी कर रखी हैं जो अभिभावकों को जागरूक और सतर्क रहने में मदद कर सकती हैं। प्रस्तुत है इस ज्वलंत समस्या के समाधान को दर्शाता किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेट्री विभाग में पीएचडी स्कॉलर अनुज कुमार पांडेय का लेख

मैं अपने एक रिश्तेदार के यहां एक प्रोग्राम में गया था, मैंने वहां पर चार साल के एक बच्चे अथर्व को देखा।  मैंने देखा कि अथर्व अपने पेरेंट्स के सेलफोन में खोया हुआ लगातार कुछ न कुछ ऑनलाइन देख रहा था। कुछ समय बाद जब अथर्व के पेरेंट्स उसे खाना खिलाने लगे तो वो बच्चा खाना खाने से मना करता रहा और पेरेंट्स के बार-बार कहने पर रोने लगा। बच्चे को रोता हुआ देखकर जब दूसरे लोगों ने उसके रोने का कारण पूछा तो पेरेंट्स ने बताया कि यूट्यूब पर एक विशेष चैनेल को देखते हुए ही ये खाना खाता है, काफी समय से ये फ़ोन देख रहा था तो फ़ोन की बैटरी ख़त्म होने की वजह से अब फ़ोन बंद हो गया है और ये उसी की ज़िद कर रहा है। फिलहाल किसी दूसरे ने उन्हें अपना फ़ोन दिया फिर वो बच्चा अपना पसंदीदा कार्टून देखते हुए खाना खाने लगा। मेरे घर में छह साल के अर्नव भी घर पर भोजन करते समय टीवी देखना बहुत पसंद करते हैं, अगर घर पर लम्बे समय के लिए इलेक्ट्रिसिटी चली जाये तो उनकी टीवी देखने की लत जाग उठती है, मोबाइल और टीवी से बहुत देर तक दूर रहने पर वो कहते हैं, कि इलेक्ट्रिसिटी कब आयेगी मैं ‘बोर’ हो रहा हूं। 

आखिर गलती चार साल के अथर्व की है या छह साल के अर्नव की, या उनका पालन-पोषण करने वाले उनके माता-पिता की? आधुनिक दौर में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस हमारी जिंदगी  में ऐसे घुल-मिल गए हैं कि शायद इनके बिना जीवन अधूरा है, फिर चाहे वे पेरेंट्स हों या बच्चे कोई इससे अछूता नहीं है। बच्चों को रोता देखने पर, खिलाते-पिलाते समय, व्यस्त रखने के लिए घर के बड़े लोग अकसर उनके हाथ में फोन थमा ही देते हैं या फिर उन्हे टीवी के सामने बैठा देते हैं। माता-पिता कई बार इस बात का भी ध्यान तक नहीं देते कि उनका  बच्चा क्या देख रहा है और कितनी देर से स्क्रीन के सामने बैठा है। बच्चा मोबाइल में बिजी है और घर वाले अपने काम में मस्त हैं। वैसे भी एकल परिवार और शहरी जीवन शैली में बच्चों की खेल-कूद, भाग-दौड़ कम होती जा रही है।

..जारी… क्लिक करें-बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम- भाग-2 ऐसा ही चलता रहा तो 2050 तक करीब आधे बच्‍चे हो जायेंगे मायोपिया के शिकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.