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सीरम क्रिएटिनिन घटाकर व ईजीएफआर बढ़ाकर डायलिसिस-ट्रांसप्लांट से दूर रखा गुर्दा रोगियों को

-होम्योपैथिक दवाओं से इलाज के तीन और मॉडल केसेस का प्रतिष्ठित जर्नल ‘एडवांसमेंट इन होम्योपैथिक रिसर्च’ में प्रकाशन

सेहत टाइम्स

लखनऊ। क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के मरीजों को डायलिसिस और गुर्दा प्रत्यारोपण से वर्षों तक दूर रखने में सफलता हासिल करने वाले लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता और उनकी टीम का शोध और सफलता का सफर लगातार जारी है। रीनल फेल्योर के होम्योपैथिक ट्रीटमेंट से सफल उपचार के रोगियों के बारे में फिजिशियंस को अपडेट करने के उद्देश्य से बेस्ट रेस्पॉन्डिंग केसेस की शृंखला का प्रकाशन प्रतिष्ठित जर्नल ‘एडवांसमेंट इन होम्योपैथिक रिसर्च’ में किया जा रहा है। इस सीरीज के तहत चौथे भाग का प्रकाशन इस जर्नल के वॉल्यूम 9 संख्या 2 मई 2024 से जुलाई 2024 के अंक में किया गया है।

एक विशेष मुलाकात में यह जानकारी देते हुए डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि इसके पूर्व एडवांसमेंट इन होम्योपैथिक रिसर्च के मई 2023 से जुलाई 2023 के अंक, अगस्त 2023 से अक्टूबर तथा 2023 नवंबर 2023 से जनवरी 2024 के अंक में तीन-तीन केसेस का प्रकाशन किया जा चुका है। अब मई 2024 से जुलाई 2024 के अंक में तीन और केसेस का प्रकाशन किया गया है।

डॉ गिरीश गुप्ता

उन्होंने बताया कि इन केसेस में पहले केस में 58 वर्षीय मधुमेह पुरुष रोगी का है जिसे 40 वर्षों से तम्बाकू खाने की आदत थी। दूसरा केस 52 वर्षीया महिला का है जो हाइपरटेंशन के साथ ही कमजोरी और वजन घटने की शिकायत लेकर क्लीनिक पहुंची थीं। तीसरा केस 71 वर्षीय पुरुष जिन्हें 10 वर्षों से हाइपरटेंशन की शिकायत थी इन्हें भी तम्बाकू खाने की आदत थी। उन्होंने बताया कि इन तीनों केसेस में रोगियों के सीरम क्रिएटिनिन serum (blood) creatinine स्तर और ईजीएफआर eGFR (estimated glomerular filtration rate) को उचित सीमा के भीतर बनाए रखकर उनका सफल प्रबंधन करने, आगे और गिरावट को रोकने और काफी समय तक उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में सफलता हासिल हुई है।

सफल शोध

आपको बता दें कि जीसीसीएचआर में अब तक हुई रिसर्च बताती है कि होम्योपैथिक इलाज से क्रॉनिक किडनी डिजीज के रोगियों को पांच-पांच साल तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट से दूर रखने में सफलता मिली है, यहाँ तक कि एक मरीज को 15 वर्षों तक ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ी। इस रिसर्च का प्रकाशन नेशनल जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी में वर्ष 2015 वॉल्‍यूम 17, संख्‍या 6 के 189वें अंक में हो चुका है। इस रिसर्च में इलाज से पूर्व मरीज के रोग की स्थिति का आकलन उसकी सीरम यूरिया, सीरम क्रिएटिनिन और ईजीएफआर की रिपोर्ट को आधार मानते हुए किया गया। इन मरीजों की किडनी का साइज देखने के लिए अल्ट्रासाउंड भी कराया गया। जिन 160 मरीजों पर शोध किया गया इनमें किसी भी रोगी की डायलिसिस नहीं हो रही थी। अगर आयु की बात करें तो इसमें 109 रोगी 31 वर्ष से 60 वर्ष की आयु के थे, जबकि 30 वर्ष की आयु तक के 24 तथा 61 वर्ष की आयु से ऊपर वाले 27 मरीज थे। इनमें 151 मरीजों का इलाज पांच साल से कम तथा 9 मरीजों का फॉलोअप पांच वर्ष से ज्‍यादा अधिकतम 15 वर्ष तक किया गया है। सभी मरीज किडनी फेल्‍योर की पहली से लेकर पांचवीं (प्राइमरी से एडवांस) स्‍टेज तक के थे, इनमें कई मरीज अपनी वर्तमान स्‍टेज से कम वाली स्‍टेज में वापस भी आ गये।

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