-माइक्रोबायोलॉजिस्ट और प्रयोगशाला कर्मियों के लिए आयोजित की गयी तीन दिवसीय नेशनल हैंड्स-ऑन वर्कशॉप
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU), लखनऊ के सूक्ष्मजीवविज्ञान विभाग द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टायफॉइड के प्रयोगशाला निदान पर आधारित तीन दिवसीय राष्ट्रीय हैंड्स-ऑन कार्यशाला का आयोजन 28 से 30 जुलाई तक किया गया।
यह जानकारी देते हुए माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ शीतल वर्मा ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्घाटन 28 जुलाई को प्रो. विमला वेंकटेश, विभागाध्यक्ष एवं कार्यशाला की अध्यक्ष, के नेतृत्व में हुआ। आयोजन सचिव के रूप में डॉ. शीतल वर्मा और डॉ. प्रशांत गुप्ता ने इस कार्यक्रम का सफल संचालन किया। इस अवसर पर WHO इंडिया की नेशनल प्रोफेशनल ऑफिसर (NPO), VPD लैबोरेटरी नेटवर्क, डॉ. दीपा शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। उन्होंने उद्घाटन भाषण में भारत में टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों (VPDs) के लिए प्रयोगशाला क्षमताओं को सशक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।
कुछ क्षेत्रों में फिर से उभर रही है डिप्थीरिया
डॉ शीतल ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य देशभर के माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स और प्रयोगशाला कर्मियों को डिप्थीरिया, काली खांसी, टायफॉयड के सटीक, समयबद्ध और मानकीकृत निदान के लिए अद्यतन जानकारी और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना था। उन्होंने बताया कि डिप्थीरिया कुछ क्षेत्रों में फिर से उभर रही है, जिसमें कल्चर और टॉक्सीजेनेसिटी टेस्टिंग की आवश्यकता होती है, इसी प्रकार पर्टुसिस (काली खांसी) में किशोरों और वयस्कों में इसके लक्षण अस्पष्ट हो सकते हैं, जिससे निदान में कठिनाई आती है, जबकि टायफॉइड जो एक पुरानी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है, जिसे अब मल्टी-ड्रग रेज़िस्टेंट सैल्मोनेला टायफी के बढ़ते मामलों ने और जटिल बना दिया है।

डॉ शीतल ने बताया कि प्रतिभागियों को कई तकनीकों में गहन व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया, इनमें ऑटोमेटेड ब्लड कल्चर सिस्टम, थ्रोट स्वैब कल्चर और रोगजनक की पहचान, पीसीआर तकनीक, MALDI-TOF मास स्पेक्ट्रोमेट्री द्वारा सूक्ष्मजीव की पहचान, सैल्मोनेला सिरोटाइपिंग, प्रतिजैविक संवेदनशीलता परीक्षण (AST)
WHO मानकों पर आधारित बायोसेफ्टी और गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रियाएं शामिल थीं।
इस राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला में भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें AIIMS भोपाल, AIIMS पटना, AIIMS रायपुर, JIPMER पुडुचेरी, PGIMER चंडीगढ़, CMC वेल्लोर, कोलकाता स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, SMS मेडिकल कॉलेज, जयपुर एवं कई राज्य स्तरीय और जिला प्रयोगशालाएं शामिल रहीं।
अपने संबोधन में डॉ. दीपा शर्मा ने भारत में Universal Immunization Programme (UIP) के अंतर्गत WHO द्वारा चलाए जा रहे VPD निगरानी और प्रयोगशाला नेटवर्क को मजबूत करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा कि प्रयोगशाला से प्राप्त साक्ष्य महामारी प्रतिक्रिया, वैक्सीन नीति निर्धारण और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) नियंत्रण के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
प्रो. विमला वेंकटेश ने कहा कि KGMU का सूक्ष्मजीवविज्ञान विभाग राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोगशाला क्षमता निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और WHO के साथ मिलकर जन स्वास्थ्य अनुसंधान एवं निदान के क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि यह कार्यशाला KGMU की शैक्षिक उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता और रोग उन्मूलन एवं महामारी तैयारी में इसकी सक्रिय भागीदारी का प्रमाण है।

