-नियमित उपचार से इसे नियंत्रण में रखना सम्भव, वरना बढ़ सकती हैं दिक्कतें
-किशोर गठिया जागरूकता माह (जुलाई) के मौके पर हेल्थसिटी विस्तार के डॉ संदीप कपूर से वार्ता

सेहत टाइम्स
लखनऊ। किशोरों में होने वाली आर्थराइटिस (Juvenile Idiopathic Arthritis) 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाली एक प्रकार की गठिया है। इसके लक्षणों में जोड़ों में दर्द, सूजन, अकड़न, लालिमा, और गर्मी महसूस होना, सुबह के समय अकड़न बढ़ना, आंखों में सूजन शामिल हैं, यदि बच्चे में इस तरह के लक्षण लगातार बने रहें तो यह गठिया हो सकती है, ऐसे में बेहतर यह है कि किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ से मिलकर रोग की पुष्टि कर ली जाये और उसके अनुसार उपचार शुरू करना चाहिये। महत्वपूर्ण यह है कि इसे सिर्फ कंट्रोल किया जा सकता है, इससे बचने और इसका स्थायी इलाज न होने के कारण आगे के नुकसान बचाने के लिए उपचार अवश्य करते रहना चाहिये।
यह कहना है हेल्थसिटी विस्तार के को-फाउंडर, मैनेजिंग डाइरेक्टर व ऑर्थोपेडिक्स विभाग के सीनियर कन्सल्टेंट डॉ संदीप कपूर का। किशोरों में होने वाली आर्थराइटिस के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए जुलाई माह को किशोर गठिया जागरूकता माह घोषित किया गया है। इस विषय पर ‘सेहत टाइम्स’ ने डॉ संदीप कपूर ने बात की। उन्होंने बताया कि किशोरों में होने वाली गठिया का प्रकार जानने के लिए इसकी जांच ‘आर्थराइटिस प्रोफाइल’ करायी जाती है। उन्होंने बताया कि गठिया होने के ठोस कारण अभी सामने नहीं आये हैं, यह एक ऑटोइम्यून रोग है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से जोड़ों के ऊतकों पर हमला करती है। यह अनुवांशिक भी होती है।

उन्होंने बताया कि चूंकि अभी गठिया बीमारी का कारण अज्ञात है और कोई स्थायी इलाज नहीं है, इसलिए इसमें बहुत ज्यादा मेडिकल मैनेजमेंट नहीं होता है, सिर्फ लक्षणों के आधार पर दवा, जिसे Disease-Modifying Antirheumatic Drugs (DMARD) कहते हैं, से कंट्रोल में रखा जा सकता है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि इसके उपचार में लापरवाही नहीं करनी चाहिये अन्यथा लम्बे समय तक ऐसी स्थिति बनी रहने से जोड़ों में विकृति होने की आशंका रहती है।
डॉ कपूर बताते हैं कि किशोरों की गठिया में अगर एक से चार जोड़ों में दर्द सूजन है तो इसे ओलिगोआर्थराइटिस तथा पांच या पांच से ज्यादा जोड़ों के प्रभावित होने की स्थिति को पॉलीआर्थराइटिस कहा जाता है। इसके उपचार में दवाओं के साथ फीजियोथैरेपी की जाती है तथा रोग के बहुत ज्यादा बढ़ने पर स्टेरॉयड दी जाती है। उन्होंने बताया कि किशोरों में होने वाली गठिया हमेशा स्थायी नहीं होती है, यह आती-जाती रहती है।

