-प्रतिष्ठित जर्नल्स में हो चुका है ठीक हुए केसेज का प्रकाशन
-‘जून-पुरुष स्वास्थ्य जागरूकता माह’ के मौके पर डॉ गिरीश गुप्ता से विशेष वार्ता
जून का महीना पुरुषों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को समर्पित किया गया है। इस महीनें में पुरुषों को उनके स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में जागरूक किया जाता है। इसके साथ ही उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में खुलकर बात करें। इस मौके पर हमने आजकल की लाइफ स्टाइल के मद्देनजर पैदा हो रही पुरुष बांझपन की समस्या के समाधान को लेकर इसके इलाज के बारे में बात की।

सेहत टाइम्स
लखनऊ। बांझपन एक ऐसी समस्या है जो पुरुषों और स्त्रियों दोनों में हो सकती है, पुरुषों में बांझपन का मुख्य कारण azoospermia है जिसमें स्पर्म यानी शुक्राणु नहीं बनते हैं दूसरा कारण होता है Oligospermia, इसमें शुक्राणु सामान्य से कम मात्रा में बनते हैं। शुक्राणु बनने की सामान्य मात्रा 60 मिलियन या इससे ज्यादा प्रति क्यूबिक मिलीमीटर होती है, अगर यह संख्या कम है तो बांझपन होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त एक और कारण होता है asthenospermia यानी ऐसी स्थिति जिसमें शुक्राणु तैर नहीं पाते हैं, उनमें गतिशीलता न होने के कारण महिला के अंडे तक पहुंचने में सक्षम नहीं होते हैं।
यह बात गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च जीसीसीएचआर के चीफ कन्सल्टेंट वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने ‘सेहत टाइम्स’ से एक विशेष वार्ता में कही। डॉ गिरीश ने बताया कि इन तीनों स्थितियों में जो पहली स्थिति azoospermia की है, इसे ठीक करना सम्भव नहीं है लेकिन बाकी जो कारण हैं Oligospermia और asthenospermia, इसमें होम्योपैथिक दवा की भूमिका कारगर है। उन्होंने बताया कि हमारे रिसर्च सेंटर पर ऐसे केस ठीक किये गये हैं, और इनका प्रकाशन प्रतिष्ठित जर्नल्स में किया जा चुका है।

डॉ गिरीश ने बताया कि Oligospermia यानी शुक्राणु की संख्या कम होने और asthenospermia यानी शुक्राणु की गतिशीलता में कमी होने की स्थितियों में होम्योपैथिक इलाज की कोई एक विशेष दवा नहीं है, इसमें भी होम्योपैथिक के सिद्धांत के अनुरूप इलाज रोग को नहीं बल्कि व्यक्ति को केंद्र में रखकर किया जाता है। रोगी के शारीरिक और मन:स्थिति के लक्षणों को देखकर दवा का चुनाव किया जाता है।
यह पूछने पर कि ऐसा होने के कारण क्या हैं इसके बारे में उन्होंने बताया कि इसके कारणों में हार्मोन्स में असंतुलत या अंडकोष में ट्यूमर या कोई दूसरी बीमारी, वैरिकोसील यानी खून की नलियों का गुच्छा बनना आदि शामिल है। उन्होंने बताया कि मन से जुड़े कारणों में जैसे मानसिक तनाव, चिंता, सदमा जैसी चीजें हार्मोन्स पर असर करती हैं, जो पिट्यूटरी ग्लैंड होती है, अगर उसके पुरुष हार्मोन्स, जो testosteron कहलाते हैं, गड़बड़ हो गये तो ऐसी दिक्कतें आने लगती हैं।
डॉ गिरीश ने बताया कि रेडियेशन का भी असर पड़ता है, बार-बार अंडकोष के आसपान के स्थानों का एक्सरे होने से भी बांझपन की समस्या हो सकती है, इसके अलावा एक बहुत ही कॉमन चीज है लैपटॉप, जैसा कि उसका नाम ही है लैप यानी जांघ पर रखकर लगातार काम करने से भी स्पर्म पर असर पड़ता है, चूंकि लैपटॉप तो आजकल लोगों की अनिवार्य आवश्यकता बनती जा रही है, ऐसे में कोशिश यह होनी चाहिये कि उसे जांघ पर न रखकर किसी मेज या स्टूल या किसी भी दूसरी स्थान पर रखकर कार्य किया जाये।
डॉ गिरीश ने बताया कि मेरा लोगों के लिए सुझाव है कि जीवन को तनावमुक्त बनायें, योग करें, इससे मानसिक और भौतिक संतुलन बना रहता है जिससे शरीर के सभी अंग ठीक से काम करते रहते हैं। इसके साथ ही मॉर्निग वाक, समुचित पोषणयुक्त आहार पर ध्यान दें, ये सभी चीजें बीमारी होने और बीमारी ठीक होने में अपनी भूमिका निभाती हैं।
