-आईएमए में स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एंड सीएमई में डॉ शशांक निगम ने दिया व्याख्यान
सेहत टाइम्स
लखनऊ। ब्रेस्ट कैंसर होने पर ब्रेस्ट को बचाते हुए उसका यदि आंशिक हिस्सा निकाला गया है अथवा पूरा ब्रेस्ट निकाला गया हो, दोनों ही स्थितियों में ब्रेस्ट के पुनर्निर्माण में सिलिकॉन या कोई और मैटेरियल के प्रयोग से ज्यादा अच्छा उसी महिला के टिश्यू का प्रयोग करना होता है।
यह बात यहां इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एंड सीएमई कार्यक्रम में अजंता हॉस्पिटल के कंसल्टेंट ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ शशांक निगम ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि ब्रेस्ट का लॉस होना भावनात्मक और शारीरिक दोनों परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है, इसलिए निकाले गए ब्रेस्ट को पूर्व की भांति आकार देना एक प्रकार से अनिवार्य व्यवस्था है। क्योंकि यदि इसे पूर्व की भांति आकार न दिया जाये तो महिला को समाज में बाहर निकलने में जहां एक हीनभावना आ जाती है, वहीं बाहरी और अंतःवस्त्र पहनने जैसी व्यावहारिक दिक्कतें भी होती हैं। वहीं एक तरफ का ब्रेस्ट होने से शारीरिक दिक्कतें भी होती हैं।
उन्होंने चेस्ट वाल परफोरेटर फ्लैप (सीडब्ल्यूपीएफ) विधि से ऑपरेशन के बारे में बताया कि इस विधि में छाती के आसपास (स्तन के नीचे) से त्वचा और वसा लेकर उससे ब्रेस्ट का पुनर्निर्माण किया जाता है। उन्होंने कहा कि मरीज की त्वचा से ही ब्रेस्ट बनने से उसका अहसास सिलिकॉन जैसे दूसरे मैटेरियल से बनाये गए ब्रेस्ट के मुकाबले ज्यादा संतुष्टि प्रदान करने वाला होता है।
इस मौके पर उन्होंने जिन महिलाओं की सर्जरी कर उनके ब्रेस्ट का पुनर्निर्माण किया है, के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राजधानी लखनऊ की बात करें तो यहां ब्रेस्ट के पुनर्निर्माण को लेकर जानकारी लेने वाली महिलाओं की संख्या अभी बहुत कम है। इसका अर्थ यह है कि इस विषय में अभी बहुत जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। बहुत से लोगों की धारणा होती है कि यह विधि बहुत खर्चीली है, जबकि ऐसा नहीं है।