-बाल यौन शोषण को लेकर ‘अनहियर्ड सॉबिंग’ विषय पर चर्चा
-एसजीपीजीआई की डॉ पियाली भट्टाचार्य ने बतायीं महत्वपूर्ण बातें
-घरों में ही होते हैं 70 से 80 प्रतिशत बाल यौन शोषण के केस
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। ‘मां आपने मुझे बाहर वालों से बचने के लिए तो आगाह किया था लेकिन घरवालों से भी बचना हैं, यह नहीं बताया था।‘ यह वह सवाल है जो 13 वर्ष की किशोरी अपनी मां से पूछ रही थी। दरअसल इस किशोरी इसके अपने घर में ही अपनों ने छला था, जिसका नतीजा यह हुआ कि गुड्डा-गुड़िया खेलने की उम्र में यह किशोरी गर्भवती हो गयी। यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, ऐसी न जाने कितनी घटनायें हैं जो सामने आ ही नहीं पाती हैं। 70 से 80 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण का शिकार घर में ही होते हैं।
यह महत्वपूर्ण जानकारी संजय गांधी पीजीआई की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पियाली भट्टाचार्य ने रविवार को यहां गोमती नगर स्थित भारतेन्दु नाट्य अकादमी में आयोजित अवध कॉन्क्लेव में आयोजित एक चर्चा के दौरान दी। चर्चा का विषय था ‘अनहर्ड सॉबिंग्स’ यानी न सुनायी देने वाला रोना। डॉ पियाली ने कहा कि बच्चों का अंतर्मन जब रोता है तो वह बाहर से नहीं दिखता उसकी पीड़ा वह बच्चा ही महसूस करता है। उन्होंने बताया कि बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण से उन्हें बचाने में सर्वाधिक महत्वूपूर्ण भूमिका बच्चे के माता-पिता निभा सकते हैं। विशेषकर लड़की है तो मां और लड़का है तो पिता। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक रूप से मां तो केयर गिवर है, लेकिन बाप को देखभाल करने के लिए अपनी भूमिका तैयार करने में मेहनत करनी पड़ती है।
उन्होंने बताया कि यौन शोषण का शिकार बच्चा जिस तरह की मानसिक अवस्था से गुजरता है वह उसकी पूरी जिंदगी को प्रभावित करता है, इसलिए आवश्यक है इसके प्रति युद्धस्तर पर जागरूक हुआ जाये। उन्होंने बताया कि कभी-कभी तो लम्बे समय तक यौन शोषण का का शिकार हुई बच्ची के मन में ऐसा सदमा बैठ जाता है कि बड़े होने पर भी सहमी रहती है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर तो ऐसे मामले सामने ही नहीं आ पाते हैं क्योंकि पहले तो डरे-सहमे हुए बच्चे ही नहीं बताते हैं, छिपाते हैं, फिर अगर किसी तरह मां को पता चला तो मां फिर शर्म और लोकलाज के भय से इसे उजागर नहीं करती है, और इसी चुप्पी का फायदा बच्चों के साथ यह अनैतिक कार्य करने वाले लोग उठाते हैं।
शक के दायरे में न आने वाले रिश्ते भी देते हैं धोखा
उन्होंने बताया कि देखा गया है कि घर में यौन शोषण करने वालों में वे रिश्ते भी शामिल हैं, जिन पर कोई जल्दी शक भी नहीं करता है, यही नहीं उम्र भी इसमें मायने नहीं रखती है। उन्होंने बताया कि यौन शोषण करने वाला बच्ची को पहले तैयार करता है इसके लिए पहले प्यार करना, चूमना करता है, फिर भरोसे में लेता है और फिर उसका यौन शोषण करता है। यही नहीं ऐसा करने वाले बच्चे को डरा कर भी रखते हैं वे जानते है कि बच्चा बतायेगा नहीं इसी का फायदा उठाते हैं। घर में होने वाला यौन शोषण बार-बार होता है, बच्चा हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है, उसे कन्फ्यूजन होता है कि वह क्या करे। कुछ केस में ऐसा भी देखा गया है कि पहले प्यार से मनाते हैं, फिर विश्वास जताकर मनाते हैं और अगर फिर भी नहीं माना तो उत्पीड़न कर बच्ची का यौन शोषण करते हैं।
इन परिस्थितियों में खुलते हैं बच्चों के यौन शोषण के मामले
डॉ पियाली ने बताया कि ऐसे मामले तब खुलते हैं जब बच्चों को कोई संक्रमण या अन्य शारीरिक दिक्कतें आती हैं। उन्होंने बताया कि 13 साल की बच्ची की प्रेगनेंसी का केस उनके पास पीजीआई में ही आया था। उन्होंने बताया कि कभी-कभी बच्चे में साइकोसोमेटिक लक्षण होते हैं यानी बच्चे का मानसिक कष्ट शारीरिक कष्ट के रूप में सामने आता है जैसे बार-बार पेट दर्द होना लेकिन पेट दर्द का कारण समझ में न आना, ऐसी हालत में जब माता-पिता बच्चे को दिखाने लाते हैं तो चिकित्सक समझते हैं कि ये साइकोसोमेटिक लक्षण हैं। इसके बाद चिकित्सक उस बच्चे से जब प्यार के साथ गहरायी से पूछता है तो ये सारी बातें सामने आती हैं। डॉ पियाली ने कहा कि वैसे भी बच्चे अपने साथ होने वाले यौन शोषण को किसी को भले ही न बताये लेकिन डॉक्टर को वह अपना दोस्त मानकर बता देता है बशर्ते डॉक्टर उसकी भावना को समझते हुए पूछताछ की कोशिश करे। उन्होंने बताया कि जेनाइटल फाइंडिंग में अगर सेक्सुअली ट्रांसमिशन बीमारियां आती हैं तो डॉक्टर को सस्पेक्ट करना पड़ता है, क्योंकि बिना सेक्स किये बच्चे के शरीर में आखिर यह बीमारियां कहां से आयीं। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि कानूनी दृष्टिकोण से डॉक्टर के लिए भी सभी बातें पूछना आसान नहीं होता है इसके लिए उसे बच्चे के घरवाले से सहमति लेनी पड़ती है।
लड़की को मां और लड़के को पिता खुलकर समझायें सभी अंगों के बारे में
उन्होंने बताया कि लड़कियों को समझाने की जिम्मेदारी मां की है, उसे बचपन से ही गुड टच और बैड टच को समझाना चाहिये कि एक-एक अंग के बारे में समझाना चाहिये। यौन अंगों के बारे में भी जानकारी देना चाहिये। उसे समझायें कि अपने बिकिनी एरिया को अकेले मां के अतिरिक्त किसी को भी न छूने दें। पेशाब करने में दर्द हो तो बताये, पैंटी में ब्लड आये तो बताये, किसी को देखकर डरे, सहम जाये तो ध्यान देना चाहिये। उन्होंने बताया कि आजकल तो स्कूलों में भी गुड टच-बैड टच बताया जाने लगा है। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार एक बार एक बच्ची पांच साल बाद जब स्कूल में यह जागरूकता करायी गयी तो घर आकर बच्ची ने बताया कि मुझे बचपन में ऐसे ही दादा (ममेरे भाई) ने टच किया था।
इसी प्रकार लड़कों के यौन शोषण के बारे में तो पता ही नहीं चलता है, क्योंकि लड़के सबसे ज्यादा शर्माते हैं, ऐसे में पिता और बेटे के बीच अच्छा रिलेशन होना चाहिये। पिता उसे बताये कि उम्र के साथ यौन अंगों में कैसा बदलाव आता है, उसे क्या करना चाहिये क्या नहीं, यही नहीं पोर्नोग्राफी से बच्चे बहुत बिगड़ते हैं तो इस बारे में अपनी तरफ से बच्चे को समझाना चाहिये कि असल जीवन में यह सत्य नहीं होता है। इन कलाकारों को तो पोर्नोग्राफी के लिए पैसे मिलते हैं।