लंदन की नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी और तमिलनाडु के त्यागराजार स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने की है रिसर्च
लखनऊ। अगर आप मोबाइल पर सेल्फी लेने के अत्यधिक शौक़ीन है तो यह खबर आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है. अगर आप दिन भर में तीन से ज्यादा सेल्फी लेने से अपने को रोक नहीं पाते हैं तो इसका मतलब है कि आप एक तरह के मेंटल डिस्ऑर्डर के शिकार हो रहे हैं, यह एक रिसर्च में यह पाया गया है. सेल्फी के प्रति इस दीवानगी को बीमारी बताते हुए इसे ‘सेल्फाइटिस’ नाम दिया गया है।
यह दावा लंदन की नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी और तमिलनाडु के त्यागराजार स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने अपनी रिसर्च में किया है। इनकी रिसर्च इंटरनेशनल जरनल ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड एडिक्शन में प्रकाशित हुई है। लंदन से आ रही खबरों के अनुसार नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के मार्क ग्रिफित ने दावा किया है कि सेल्फी के शौकीनों को जागरूक करने के लिए रिसर्च के दौरान सेल्फाइटिस बिहैवियर स्केल भी बनाया गया है। इस बिहैवियर स्केल को 200 लोगों के फोकस ग्रुप और 400 लोगों पर सर्वे के बाद बनाया गया है।
अपने देश भारत के लिए यह रिसर्च काफी महत्वपूर्ण रखती है क्योंकि भारत में ही सबसे ज्यादा फेस बुक यूज़र्स हैं और सेल्फी के चलते हुई मौतों का आंकड़ा भी सबसे ज्यादा भारत का ही है. कार्नेज मेलन यूनिवर्सिटी और इन्द्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार सेल्फी लेने के दौरान पूरी दुनिया में 127 मौतें हुई हैं, इनमें सबसे ज्यादा 76 मौतें भारत में हुई हैं. यह आंकड़े हमें यह चेतावनी देते हैं कि हमें कितनी सतर्कता के साथ ही जागरूकता की आवश्यकता है.
रिसर्च में पाया गया है कि किसी व्यक्ति में सेल्फाइटिस की स्थिति को नापने के लिए इसके लक्षणों को तीन भागों में बांटा गया है. इसमें पहला लक्षण यह है कि दिन में कम से कम तीन सेल्फी लेना लेकिन उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट न करना, दूसरा लक्षण होता है कि सेल्फी लेकर सोशल मीडिया में डालना शुरू कर दिया हो तथा तीसरा है हर समय अपनी सेल्फी मीडिया पर पोस्ट करने की कोशिश. रिसर्च में यह भी पाया गया है कि कुछ लोग दिन में अपनी 6 सेल्फी तक पोस्ट कर देते हैं.
साइड इफ़ेक्ट के बारे में रिसर्च में यह पाया गया कि सेल्फाइटिस के शिकार हुए लोगों में आत्मविश्वास की कमी मिली, साथ ही ऐसे लोगों में बार-बार मूड बदलने जैसे लक्षण भी दिखाई दिये जबकि कुछ लोग तो ऐसा व्यावहार करते हैं कि जैसे एक नशेड़ी करता है.
इस बारे में जब हमने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक रोग विशेषग्य प्रो.आदर्श त्रिपाठी से जब बात की तो उनका कहना था कि सेल्फी हो या इस तरह का कोई और शौक जब वह आपकी जिंदगी में आवश्यक कार्यों को प्रभावित करने लग जाये तो इसे बीमारी की श्रेणी में माना जाता है. उन्होंने इसे और स्पष्ट करते हुए बताया कि हम लोगों के पास भी इस तरह के केस आते हैं खासतौर से बच्चों के माता-पिता की यह शिकायत रहती है कि उनका बच्चा पढ़ाई पर ध्यान ही नहीं दी रहा है हर समय फ़ोन या सोशल मीडिया पर लगा रहता है. उन्होंने बताया कि इस तरह से पढ़ाई या कोई भी कार्य, जो आपके लिए महत्वपूर्ण हैं, में शौक जब बाधा बन जाये तो यह स्थिति बीमारी वाली कही जा सकती है.