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सारी प्‍लानिंग मिलकर करते हैं, तो गर्भ निरोधक का चुनाव मिलकर क्‍यों नहीं ?

जैल, पैच, रिंग जैसे नये-नये गर्भ निरोधकों के बारे में जानकारी दी डॉ अनीता सिंह ने
डॉ विनोद जैन ने कहा, 1300 बनाम 13 नसबंदी का अनुपात है महिला-पुरुषों में

लखनऊ। पति-प‍त्‍नी आपस में सारी बातें कर लेते हैं तो गर्भ निरोध के चुनाव पर चुप्‍पी क्‍यों। मैंने बहुत से जोड़ों को देखा है जिनसे जब गर्भ निरोधक के विषय में पूछो तो वे लोग बात करने में हिचकते है, शर्माते हैं। यह हिचक हमें दूर करनी होगी,, जब रिश्‍ते बनाने में दोनों की भूमिका है तो गर्भ निरोधक का चुनाव भी दोनों मिलकर करें। आजकल ऐसे गर्भ निरोधक आ गये हैं जिनका इस्‍तेमाल आसान है।

यह बात आज विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ पैरा मेडिकल साइसेंस द्वारा ‘गर्भ निरोध के आधुनिक साधन’ विषय पर व्याख्यान देते हुए केके इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग की निदेशक डॉ अनीता सिंह ने जनसंख्या नियंत्रण के बारे में पैरामेडिकल साइंसेस के विद्यार्थियों को जागरूक करते हुए विस्तार से जानकारी देते हुए कही। उन्‍होंने कहा कि एक समय था कि फि‍ल्‍मों में जब प्रणय दृश्‍य दिखाने होते थे तो दो फूलों को आपस में मिलाते हुए दिखाते थे लेकिन अब तो सब कुछ बच्‍चे तक फोन पर देख लेते हैं यानी जमाना कहां से कहां आ गया है और अभी तक पति-पत्‍नी इस विषय पर खुलकर बात नहीं कर पा रहे हैं, यह ठीक नहीं है। उन्‍होंने बताया कि जनसंख्या नियंत्रण करने में आज के समय में विभिन्न प्रकार की नवीन तकनीक उपलब्ध हैं और पति-पत्नी को आपसी संवाद से इनके बारे में सोचना होगा और इन्हें अपनाना होगा। उन्होंने बताया कि बाजार में ऐसे कई जैल, क्रीम एवं गोलियां उपलब्ध हैं, जिन्हें प्रयोग करने से जनसंख्या नियंत्रित की जा सकती है साथ ही इनका प्रयोग माहवारी के दौरान भी किया जा सकता है।

डॉ अनीता सिंह ने बताया कि परिवार नियोजन की विभिन्न विधियां जिनमें की स्थायी ( महिला नसबंदी एवं पुरूष नसबंदी) एवं अस्थायी विधियां (वैजाइनल रिंग, पैच, माला-डी, माला-एन, कॉपर-टी, मेल और फीमेल के लिए कंडोम, जैल, क्रीम ) सम्मिलित हैं,  के बारे में विवाहित युगलों को जागरूक करने की आवश्यकता पर जोर दिया साथ ही उन्होंने कहा कि यहां मैं यह बताना चाहूंगी कि ये जो भी साधन हैं उनमें सिर्फ कंडोम छोड़कर बाकी किसी भी विधि को अपनाने से गर्भ से बचाव तो हो जायेगा लेकिन संक्रमण से बचाव नहीं होगा।

 

डॉ अनीता ने कहा कि एक और बात देखने में आती है कि महिलायें इस विषय पर जब दूसरी महिला से बात करती हैं तो अगर उन्‍हें पता चला कि किसी महिला को किसी गर्भ निरोधक साधन से दिक्‍कत हुई थी तो वह महिला यह भावना अपने लिए भी बना लेती है कि फलां गर्भ निरोधक तो नुकसान करता है, जबकि ऐसा नहीं है। गर्भ निरोध के कुछ साधन जिनमें गोलियां, इंजेक्‍शन या कोई भी अन्‍य चीज जरूरी नहीं है कि एक को सूट न करे तो दूसरे को भी न करे। सबके शरीर का अलग-अलग हिसाब होता है।

 

डॉ अनीता ने कहा इसी प्रकार कुछ महिलाएं इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स का इस्तेमाल अक्सर कर लेती हैं जो कि गलत है क्योंकि इन गोलियों में होने वाले हारमोंस का ज्यादा इस्तेमाल नुकसानदायक है। इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स का इस्तेमाल इमरजेंसी में ही करना चाहिए, इमरजेंसी का मतलब जैसे गर्भनिरोधक गोली खाना भूल गयीं या कंडोम रैप्‍चर हो गया तो ऐसी स्थिति‍ में अगर आपको यह लगता है कि कहीं गर्भ ना ठहर जाए तो उस स्थिति में इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स का इस्तेमाल करना चाहिए।

 

इस मौके पर केजीएमयू के डीन पैरामेडिकल डॉ विनोद जैन ने कहा कि आज के समाज में हर क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरूषों की समान भागीदारी है तो परिवार नियोजन के क्षेत्र में भी पुरूषों एवं महिलाओं की बराबर की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि 1300 महिलाएं नसबंदी कराती हैं तो उसके ऐवज में मात्र 13 पुरुष कराते हैं, जबकि देखा जाए तो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की नसबंदी ज्यादा आसान है, इसमें पेट खोलने की जरूरत नहीं पड़ती है और इसे जरूरत पड़ने पर रिवर्स भी किया जा सकता है यानी जब बच्चा पैदा करने की इच्छा हो तो नसबंदी को समाप्त किया जा सकता है इसके विपरीत महिला की नसबंदी करने के लिए पेट को खोलना पड़ता है तथा नसबंदी हटाने की प्रक्रिया में भी ज्यादा दिक्कत है।

उन्होंने बताया कि पुरुष नसबंदी को लेकर समाज में व्याप्त अंधविश्वास एवं भ्रांतियों (जैसे कि, पुरुष नसबंदी के द्वारा पुरुषों में शारीरिक कमजोरी आना,  नसबंदी कराए हुए पुरूष को समाज में तुच्छता से देखना तथा नसबंदी कराने से पुरुषों का शारीरिक सम्बंध न बना पाना) को दूर कर समाज में इसके प्रति जागरूकता फैलाने की अपील की।

 

कार्यक्रम का सफल संचालन दुर्गा गिरि ने किया। इस कार्यक्रम में शालिनी गुप्ता, शिवानी श्रीवास्तव, बीनू दुबे, राघवेंद्र एवं विकास मिश्रा का विशेष योगदान रहा।