-वर्ल्ड ऑटिज़्म अवेयरनेस डे के मौके पर क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट सावनी गुप्ता ने कहा, उपचार में समय का विशेष महत्व
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। यदि बच्चा आंख मिलाकर बात नहीं करता है, उससे कुछ पूछा जाये तो उस पर ठीक से रेस्पॉन्स नहीं करता है, अपनी ही दुनिया में खोया रहता है, एक ही बात या शारीरिक आदत को बार-बार दोहराता रहता है, अपनी बात को आप तक ठीक से नहीं रखता है तो इसे यह सोचकर अनदेखा न करें कि हो सकता है देर से सीख ले, इस बारे में प्रैक्टिशनर्स साइकोलोजिस्ट या अपने फैमिली डॉक्टर से अवश्य मिल कर बच्चे को दिखा लें, क्योंकि हो सकता है कि आपका बच्चा ऑटिज़्म नाम की न्यूरोलॉजिकल बीमारी से ग्रस्त हो। अगर ऐसा है तो परेशान न हों, समय रहते इसका उपचार शुरू कर लेना उचित रहता है, क्योंकि एक बार ब्रेन पूरी तरह से विकसित होने के बाद इसका उपचार किये जाने के अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाते हैं।
यह कहना है अलीगंज स्थित सेंटर फॉर मेन्टल हेल्थ फैदर्स FEATHERS की संस्थापक क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट सावनी गुप्ता का। वर्ल्ड ऑटिज़्म अवेयरनेस डे के मौके पर सेहत टाइम्स ने ऑटिज़्म को लेकर सावनी गुप्ता से विशेष बातचीत की। उन्होंने बताया कि ऑटिज्म की डायग्नोसिस के लिए तीन बेसिक लक्षणों को देखा जाता है पहला है कि बच्चा सोशल इंटरेक्शन नहीं रखता है, सोशल इंटरेक्शन में उसे बहुत दिक्कत होती है जैसे कि बहुत भीड़ है लोग उससे मिल रहे हैं, उसे आलिंगन कर रहे हैं, तो उसे यह पसंद नहीं आता है, दूसरा लक्षण है कि बच्चा किसी के साथ लगातार संवाद नहीं बनाता है जैसे कि अगर आपने बोला हेलो व्हाट इस योर नेम तो वह पलट के अपना जवाब दे कि हेलो माय नेम इज सो एंड सो और तीसरा लक्षण यह है कि वह किसी भी मूवमेंट या आदत को बार बार दोहराता है जैसे हाथ हिलाना, बात दोहराना आदि।
सावनी कहती हैं कि ऐसे बच्चों को अपना एक स्पेसिफिक रूटीन पसंद आता है यदि आप उसे बदलने की कोशिश करते हैं तो वह बहुत आक्रामक हो जाते हैं, उनका कोई ऐसा एक खिलौना या दूसरा सामान होगा जिससे इनको ज्यादा ही लगाव होता है। ऐसे बच्चों के अंदर कोई ऐसी बहुत अच्छी क्वालिटी भी हो सकती है जिसको बस हमें आईडेंटिफाई करना होता है।
बेबी प्लान करते समय रखें इन बातों का ध्यान
सावनी कहती हैं कि बच्चे प्लान करते समय कपल को अपना एनवायरमेंट, मेडिकेशन वगैरह को बहुत ध्यान देना है अपना वेट, डायबिटीज, थायराइड आदि सब चीजों को बहुत ध्यान रखना है। गर्भावस्था के दौरान एक्स-रे, मेडिकेशंस, पेस्टिसाइड्स जैसी चीजों का ध्यान रखना है कि यह सब डॉक्टर्स की सलाह से ही करें, तनाव से दूर रहें, खानपान की आदतों पर ध्यान देना चाहिए।
एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस का है विशेष महत्व
सावनी कहती हैं कि ऑटिज्म के उपचार के लिए मुख्य रूप से एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (ABA) थेरैपी (बिहेवियर और मोडिफिकेशन थेरेपी) करायी जाती है। इसके अलावा कुछ पेसिफिक थैरेपीज रिक्वायर्ड होती हैं जो कि लंबे समय लगभग 5 वर्ष तक तो बहुत जरूरी होता है, जब तक बच्चा अच्छे से मैनेजमेंट नहीं सीख जाता है। इसमें ऑक्यूपेशनल थेरेपी की ज्यादा जरूरत होती है जिसमें बच्चा आंख मिलाना, एक जगह पर बैठना, अपने नाम को अंडरस्टैंड करना, फाइन मोटर और ग्रॉस मोटर एक्टिविटीज जैसे घुटनों के बल चलना, खड़े होकर चलना, दौड़ना और कूदना, उंगली और अंगूठे के जरिये कुछ उठाना, रेत में अपने पैरों की उंगलियां घुमाना आदि के बारे में सीखता है। इसके बाद आती है स्पीच थेरेपी, जिसमें बच्चों को बोलना, अपनी भावनाओं को व्यक्त करना, दूसरों की बातों को समझना आदि सिखाया जाता है। उन्होंने बताया कि अगर इमोशनल या इन्वायरमेंटल सम्बन्धी दिक्कतें होती हैं तो फिर प्ले थेरेपी या फिर पैरंट चाइल्ड इंटरेक्शन थेरेपी भी की जाती है। यह सामान्यतः तब की जाती है जब बच्चे अस्वाभाविक और आक्रामक व्यवहार करते हैं।
सावनी ने बताया कि वर्ल्ड ऑटिज़्म अवेयरनेस डे के मौके पर मेरी यही अपील है कि हम सभी की यह जिम्मेदारी है कि हम अपने भविष्य को बेहतर बनायें, आज का बच्चा भविष्य का युवा है, ऐसे में बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर रखना हम सबकी जिम्मेदारी के साथ ही यह हमारा कर्तव्य भी है। इस खास दिन मैं यह संदेश देना चाहती हूँ कि ऑटिज़्म के लक्षणों वाले बच्चों को जल्द से जल्द प्रैक्टिशनर्स साइकोलोजिस्ट को दिखाकर उनके द्वारा दी गयी सलाह के अनुसार थेरैपी का पूरा कोर्स करें, जी हां पूरा कोर्स, यकीन मानिये इसका लाभ यह होगा कि सिखाई गयी थेरैपी से उसके कार्य करने, उसके व्यवहार में लगभग वही परिलक्षित होगा जो दूसरे साधारण बच्चों में होता है।
सेहत टाइम्स की अपील
इस दिवस पर सेहत टाइम्स भी सभी से अपील करता है कि प्रत्येक बच्चा स्पेशल है, जरूरत है उसकी स्पेशलिटी को पहचानने की, उसे निखारने की। ऐसे में अगर आपकी नज़र में कोई ऑटिज़्म के लक्षणों वाला बच्चा दिखे तो बच्चे के माता-पिता को उसके उपचार के लिए प्रेरित करें, ताकि बच्चे के अंदर छिपी प्रतिभा को मिलें पंख, जिससे भरे वह ऊंची उड़ान।