-कोविड की तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए चुनाव आयोग व प्रधानमंत्री से की अपील
-कहा-फरवरी में होने वाले चुनाव को एक-दो माह के लिए टाल दिया जाये
सेहत टाइम्स
लखनऊ। कोरोना की संभावित तीसरी लहर के खतरे के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री और चुनाव आयुक्त से उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव-2022 टालने की अपील की है। कोर्ट का कहना है कि जान है तो जहान है। कोर्ट ने कहा है कि देश में कोरोना की तीसरी लहर के संभावित खतरे को देखते हुए फिलहाल चुनाव टाल दिए जाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीएम और चुनाव आयुक्त राज्य में चुनावी रैलियों और सभाओं पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाएं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन की दहशत और बढ़ते प्रभाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। हाईकोर्ट ने अपील की है कि यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए चुनावी रैलियों पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों से कहा जाए कि वह टीवी, न्यूज पेपर्स के माध्यम से ही चुनाव प्रचार करें।
कोर्ट ने यह आदेश उत्तर गिरोहबंद कानून के तहत आरोपी संजय यादव की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। आपको बता दें कि संजय यादव के खिलाफ इलाहाबाद के थाना कैंट इलाके में केस दर्ज है।
हाई कोर्ट ने कहा कि ग्राम पंचायत चुनाव और बंगाल विधानसभा चुनाव के समय बड़ी संख्य़ा में लोग संक्रमित हुए थे, जिसकी वजह से लोगों की मौत हो गई थी। उन्होंने कहा कि यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। चुनाव को देखते हुए सभी दल रैली, सभाएं करके लाखों की भीड़ जुटा रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे हालात में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन संभव ही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर इसे समय रहते नहीं रोका गया तो दूसरी लहर से ज्यादा भयावह स्थिति हो जाएगी। ऐसे हालात में कोर्ट ने चुनाव आयुक्त से अपील की कि चुनावी रैली, सभाओं में भीड़ जुटाने पर प्रतिबंध लगाया जाए। कोर्ट ने कहा है कि देश के प्रधानमंत्री ने भारत जैसी बड़ी जनसंख्या वाले देश में कोरोना का मुफ्त टीकाकरण अभियान चलाया है, यह तारीफे काबिल है। कोर्ट ने पीएम से अपील करते हुए कहा कि अगर संभव हो तो फरवरी में होने वाले चुनाव एक-दो महीने के लिए टाल दिए जाएं। कोर्ट ने साफ किया कि जीवन रहेगा तो चुनावी रैलियां, सभाएं आगे भी होती रहेगी। कोर्ट का कहना था कि जीवन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी दिया गया है।