-इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लाइज फेडरेशन (इप्सेफ) ने कहा कि बातचीत से बड़ी-बड़ी समस्याएं हल हो जाती हैं
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लाइज फेडरेशन (इप्सेफ) का मत है कि देश प्रदेश में चल रहे आंदोलनों को दमन करने के बजाए आपसी बातचीत के माध्यम से समाधान निकालना श्रेयस्कर होगा। प्राय: यह देखा जा रहा है कि देश प्रदेश के कर्मचारी संगठन अपनी मांगों को पूरा करने के लिए बातचीत करना चाहते हैं तो उनकी सुनवाई नहीं होती है और विवश होकर जब आंदोलन की नोटिस देते हैं या करते हैं तो उन पर एस्मा लगा दिया जाता है। एस्मा लगाकर कर्मचारियों, शिक्षकों, मजदूरों की पीड़ा को दबाया नहीं जा सकता है, एक दिन वह गुबार बनकर फटेगा।
इप्सेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी पी मिश्र एवं महामंत्री प्रेमचंद्र ने बताया कि इप्सेफ के द्वारा विगत दिनों प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए छोटे-छोटे आंदोलन करके आग्रह किया गया कि 4 साल में कर्मचारियों ने जान पर खेलकर अपनी सेवाएं देकर मरीजों को एवं उनके परिवार की रक्षा की, जिसकी तारीफ जनता द्वारा की गई। बहुत से अपनी जान भी गंवा दिए थे। परंतु खेद है कि सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित करने के बजाय उनकी समस्याओं का भी समाधान नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार जब आर्थिक संकट में थी तो कर्मचारियों ने 1 दिन का वेतन दिया और अब कर्मचारी आर्थिक संकट में है तो फ्रीज किये गए महंगाई भत्ते का भुगतान कर देना चाहिए। इसके अलावा रिक्त पदों पर नियमित भर्ती पदोन्नति या कैडर पुनर्गठन आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा के लिए नीति बनाने नियमित करने कैशलेस इलाज स्थानीय निकायों में ,राजकीय निगम ,स्वायत्तशासी संस्थाओं के कर्मचारियों को भी सातवें वेतन आयोग का लाभ एवं बोनस आदि मिलना चाहिए। तदर्थ शिक्षकों का विनियमितीकरण नहीं हो पाया है। वर्तमान हालात में पुरानी पेंशन की बहाली भी अत्यावश्यक है। क्योंकि सेवानिवृत्त के बाद उनकी रोटी का सहारा पेंशन ही होती है।
इप्सेफ का यह भी मत है कि पब्लिक सेक्टर को समाप्त करके निजीकरण को बढ़ावा देने से निजी संस्थाओं की मोनोपोली हो जाएगी। इससे मनमाने तरीके से कीमतें बढ़ेंगे। जिससे गरीब आदमी का जीना दूभर हो जाएगा। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र को सुदृढ़ करना जनहित में है।
सभी क्षेत्रों में निजी करण होने से सरकारी कर्मचारियों एवं उनका परिवार का भविष्य क्या होगा। क्या उनकी सेवाएं सुरक्षित रहेंगी। भविष्य में युवाओं की पीढ़ी को क्या नौकरी एवं वाजिब वेतन मिल पाएगा। लॉकडाउन में लाखों श्रमिकों की नौकरी चली गई थी और वे बेरोजगार हो गए।
इप्सेफ ने प्रधानमंत्री से पुनः आग्रह किया है कि इन मुद्दों पर विस्तृत बातचीत के लिए समय प्रदान करें जिससे कि समस्याओं का समाधान हो सके। अगर सुनवाई नहीं होगी तो इप्सेफ बड़ा आंदोलन करने को बाध्य होगा जिसका उत्तरदायित्व भारत सरकार का होगा।