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प्यार से छुड़वायें तम्बाकू की लत, गुस्सा और नफरत से नहीं : प्रो यूएस पाल

-देर से हो पाती है फेफड़े के कैंसर की डायग्नोसिस : डॉ शैलेन्द्र यादव

-महिला प्रजनन अंगों के कैंसर के लिए गाइनीकोलॉजिस्ट ही बेहतर : डॉ निशा सिंह

-कैंसर पीडि़तों के लिए हेयर ट्रांसप्लांट नि:शुल्क : डॉ विवेक कुमार सक्सेना

-विश्व कैंसर दिवस पर आईएमए में आयोजित हुई संगोष्ठी

सेहत टाइम्स

लखनऊ। पुरुषों को होने वाले कैंसर की अगर बात करें तो सर्वाधिक होने वाला कैंसर है ओरल कैंसर यानी मुंह का कैंसर, जिसका एक बड़ा स्रोत तम्बाकू, सिगरेट है, आदर्श स्थिति यह है कि लोग इन चीजों का सेवन शुरू ही न करें लेकिन अगर कोई व्यक्ति इसका सेवन कर रहा है तो उसे इसे छोड़ने के लिए प्यार से ही काम लेना होगा, जबरदस्ती नहीं, इसमें हर वह व्यक्ति अपनी भूमिका निभा सकता है जिससे उस व्यक्ति का नजदीकी रिश्ता हो, जैसे पत्नी, मां, पिता, परिवार के अन्य सदस्य, मित्र, अध्यापक, ऑफिस में बॉस आदि।

यह महत्वपूर्ण बात विश्व कैंसर दिवस (4 फरवरी) के मौके पर इंडियन कैंसर सोसाइटी और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में यहां आईएमए भवन में आयोजित संगोष्ठी में केजीएमयू के ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग के प्रोफेसर, इंडियन कैंसर सोसाइटी के सचिव डॉ यूएस पाल ने अपन व्याख्यान में दी। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति आपको तम्बाकू-सिगरेट का सेवन करता दिखे तो यह जरूरी नहीे है कि वह बहुत शौक से इसका सेवन कर रहा है, ऐसा भी हो सकता है कि शौक अब उसकी मजबूरी बन चुका है, और वह चाह कर भी इसे छोड़ नहीं पा रहा है। इसी समय भूमिका होती है उस व्यक्ति को इसे छोड़ने के लिए समझाने वाले की। उसे वह व्यक्ति समझाये जिसकी बात वह मानता हो, फिर चाहें वह एक छोटा बच्चा ही हो। उसकी लत छुड़ाने में उसकी मदद करें न कि गुस्सा। प्यार से किया हुआ आग्रह उस व्यक्ति के लिए दवा का काम कर सकता है। कहने का आशय है कि इस बुराई के प्रति सभी को संवेदनशील होने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि इसके बाद द्वितीय बचाव यह है कि यदि किसी व्यक्ति को मुंह मेंं छाला है, या कोई और घाव है, और उसमें दर्द नहीं हो रहा है तो ऐसे में शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक से मिलना चाहिये। जिससे कैंसर होने की स्थिति में प्रारम्भिक स्टेज पर ही इलाज किया जा सके। उन्होंने कहा कि इसके लिए स्कूलों में स्क्रीनिंग कैम्प लगाये जाने की जरूरत है, ताकि कैंसर होने से पूर्व ही स्थिति को सम्भाला जा सके। उन्होंने कहा कि मेरा यह मानना है कि यदि एक व्यक्ति दो लोगाों की तम्बाकू छुड़ाने की जिम्मेदारी निभा ले तो यह बहुत बड़ा कदम साबित हो सकता है।

डॉ शैलेन्द्र यादव

देर से हो पाती है फेफड़े के कैंसर की डायग्नोसिस : डॉ शैलेन्द्र यादव

डा० शैलेद्र कुमार यादव ने लंग कैंसर पर बोलते हुए बताया कि फेफड़े के कैंसर में लक्षण देर से आते हैं। इसके साथ ही एक्सरे या सीटी स्कैन आदि के जरिये जो बदलाव दिखते हैं वे टीबी व अन्य बीमारियों में भी आते हैं, इसलिए भ्रम की स्थिति रहती है कि यह कैंसर है अथवा नहीं। उन्होंने बताया कि इसके लक्षणों में कफ आना, ब्लड आना, दर्द आदि के लक्षण भी देर से आते हैं और ये लक्षण टीबी में भी होते हैं इसीलिए बहुत से मरीजों का टीबी का इलाज शुरू हो जाता है। जिससे कैंसर को डायग्नोज होने में और भी ज्यादा समय लग जाता है।
उन्होंने बताया कि धूम्रपान, परोक्ष धूम्रपान, तम्बाकू खाने वाले, प्रदूषण से शिकार, अनुवांशिक वालों को खतरा ज्यादा रहता है। इससे बचने के लिए धूम्रपान न करें, कोई भी लक्षण दिखने पर चिकित्सक से सम्पर्क करें, फल, हरी सब्जियों का सेवन करें।

डॉ निशा सिंह

महिला प्रजनन अंगों के कैंसर के लिए गाइनीकोलॉजिस्ट ही बेहतर : डॉ निशा सिंह

महिलाओं को होने वाले सर्वाइकल कैंसर, यूट्राइन कैंसर और ओवेरियन कैंसर सहित प्रजनन अंगों के कैंसर के बारे में केजीएमयू की डॉ निशा सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि इन सभी कैंसर में सर्वाइकल कैंसर सबसे ज्यादा पाया जाता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि इससे बचाव होना ज्यादा आसान है। इसके लिए जहां वैक्सीन उपलब्ध है वहीं इसकी स्क्रीनिंग, यानी कैंसर होने की स्टेज से पूर्व की स्टेज को जाना जा सकता है, के लिए भी बहुत सारी प्रणालियां मौजूद हैं। इसके लिए जागरूकता बहुत जरूरी है।

उन्होंने बताया कि 9 से 14 वर्ष की आयु वाली लड़कियों को वैक्सीन लगाकर तथा 25 से 65 वर्ष की महिलाओं की रेगुलर स्क्रीनिंग से सर्वाइकल कैंसर होने से रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि किसी को सर्वाइकल कैंसर डायग्नोज हो गया हो और इसका पता शुरुआती स्टेज में लग जाये तो इलाज से यह ठीक हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक महत्वपूर्ण बात यह है कि य​दि किसी महिला को महिलाओं के अंगों वाले कैंसर के लक्षण दिखें तो इसके लिए वे गाइनीकोलॉजिस्ट के पास ही जायें क्योंकि इसका अच्छा इलाज वहीं उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि केजीएमयू में तो इसका अलग से विभाग बना हुआ है, जहां इसका इलाज किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि ओवरी में अगर सिस्ट मिल गयी तो यह आवश्यक नहीं है कि यह कैंसर ही हो, हर सिस्ट कैंसर नहीं होती है। किसमें सर्जरी करनी है, किसमें नहीं, यानी ट्रीटमेंट में कमी भी न हो और ज्यादा भी न हो, इसके बारे में गाइनीकोलॉजिस्ट बेहतर समझती हैं क्योंकि उसे पता होता है कि ओवरी का, गर्भाशय का क्या महत्व है और कहां तक इसे बचाया जा सकता है।

इससे पूर्व संगोष्ठी की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। आई०एम०ए० लखनऊ की अध्यक्ष डा० सरिता सिंह ने आये हुए लोगों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि कैंसर जैसी खतरनाक और जानलेवा बीमारी को डिटेक्ट करने व रोकने और इसकी रोकथाम करने और जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 4 फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे के रूप में मनाया जाता है। कैंसर के कारणों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि तंबाकू, शराब का सेवन करने एवं ज्यादा वजन होना, सब्जियों और फलों का सेवन कम करने के कारण कैंसर हो सकता है। डा० शैलेद्र कुमार यादव ने लंग कैंसर पर तथा डा० निशा सिंह ने स्त्री रोग कैंसर पर अपने विचार व्यक्त किये।

डॉ विवेक कुमार सक्सेना

कैंसर पीडि़तों के लिए हेयर ट्रांसप्लांट नि:शुल्क : डॉ विवेक कुमार सक्सेना

इस मौके पर प्लास्टिक सर्जन डॉ विवेक कुमार सक्सेना ने बताया कि उनके गोमती नगर लखनऊ स्थित दिवा क्लीनिक पर सभी कैंसर पीडित मरीजों, एसिड अटैक की पीडि़तों के लिए हेयर ट्रांसप्लांट एवं स्किन उपचार की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध है। ज्ञात हो कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान मरीजों के बाल उड़ जाते हैं तथा त्वचा के रंग पर भी असर पड़ता है।

इस मौके पर डा० राजेद्र प्रसाद और डा० विजय कुमार ने भी कैंसर के बारे में बताया। आईएमए लखनऊ के पूर्व अध्यक्ष डॉ राकेश सिंह ने कहा कि कैंसर जैसी बीमारी की रोकथाम करने के लिए और इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए बहुत सी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा विभिन्न कैम्प, रैली, लेक्चर और सेमिनार आदि चलाये जातें हैं। धन्यवाद ज्ञापित करने की जिम्मेदारी सचिव आई०एम०ए० लखनऊ ने निभायी। इस मौके पर आईएमए लखनऊ के पदाधिकारियों डॉ वीरेन्द्र कुमार, डॉ शाश्वत विद्याधर, डॉ अर्चिका गुप्ता, डॉ राजीव सक्सेना सहित लगभग 80-90 डॉक्टर आदि उपस्थित रहे।

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