20 से 60 फीसदी लोग दवा सेवन में मनमर्जी कर अपनी सेहत से करते हैं खिलवाड़
वर्ल्ड सीजोफ्रेनिया डे पर दिल्ली के लोहिया हॉस्पिटल में डॉ अलीम का प्रेजेन्टेशन
लखनऊ। चिकित्सक द्वारा दी गयी सलाह के अनुसार दवाओं को न खाना एक कॉमन बात है, यूस के जरनल में छपी एक रिसर्च में पाया गया है कि करीब 20 से 60 फीसदी लोग ऐसे हैं जो दवा को डॉक्टर के बताये डोज के अनुसार नहीं खाते हैं, जबकि उस रोग के न सिर्फ ठीक होने में बल्कि दवा के कारण होने वाली दिक्कतों को न होने देने में डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा खाने की अहम भूमिका है।
यह बात मनोचिकित्सक डॉ मोहम्मद अलीम सिद्दीकी ने नयी दिल्ली के डॉ राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन मेंटल हेल्थ पीजीआईएमईआर के तत्वावधान में वर्ल्ड सीजोफ्रेनिया डे पर आयोजित दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस में कही। 24 एवं 25 मई को आयोजित की गयी इस दूसरी नेशनल कॉन्फ्रेंस का विषय था ‘गेटवेज दूवर्ड्स रिकवरी।
कॉनफ्रेंस के दूसरे दिन आयोजित अपने व्याख्यान में डॉ अलीम ने कहा कि सीजोफ्रेनिया के मरीजों को चाहिये कि डॉक्टर की सलाह के अनुसार पूरा डोज खायें तभी उन्हें फायदा पता चलेगा। उन्होंने कहा कि देखा गया है कि शुरुआत में तो मरीज दो-चार दिन सही तरीके से दवा खा लेता है फिर अपने मन से दवा का डोज घटाना, बढ़ाना यहां तक कि बंद कर देता है। बस यहीं पर वह गलती कर देता है।
उन्होंने बताया कि रिसर्च में पाया गया तो दवा छोड़ने के जो मुख्य कारण सामने आये उनमें एक है कि मरीज का यह मानना कि अब तो हम ठीक हैं, अब दवा की क्या जरूरत है, या यह सोचना कि ज्यादा दवा खायी तो हम इसके आदी हो जायेंगे या फिर हमारी दवा पर निर्भरता हो जायेगी, जबकि असलिययत में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि मरीज को सिर्फ इतना सहयोग करना है कि वह चिकित्सक की सलाह के अनुसार दवा खाये, और यदि उसे दवा खाने के कारण किसी प्रकार की दिक्कत हो चिकित्सक को जरूर बताये कि इस दवा से मुझे यह दिक्कत हुई है।
डॉ अलीम ने बताया कि सही तो यह है कि अगर बिना डॉक्टर की सलाह के दवा खाते रहते हैं, या दवा छोड़ देते हैं तो इस स्थिति में दिक्कत होने की संभावना रहती है। उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि चिकित्सक के सम्पर्क में जब मरीज रहता है तो क्लीनिकली और जरूरत पड़ने पर खून की जांच कराकर चिकित्सक देखता रहता है कि मरीज के शरीर पर इस दवा का दुष्प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है ? और अगर ऐसा होता है तो चिकित्सक उस मरीज के अनुकूल दूसरी दवा देता है।
डॉ अलीम ने बताया कि यहां सबसे खास बात यह है कि मरीज को जागरूक करना बहुत जरूरी है, दवाओं को लेकर उसका भ्रम तोड़कर दवाओं की महत्ता समझाना बहुत आवश्यक है। अपने डॉक्टर खुद न बनें, मरीज तो सिर्फ उपचार करने में डॉक्टर की सलाह मानने का सहयोग करे, कैसे, कब, कितना, कितने समय तक उपचार करना है यह तय करने का काम डॉक्टर पर ही छोड़ दें।