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12 मिनट, 12 घंटे और 12 दिनों में अलग-अलग लाभ साफ दिखेंगे तम्‍बाकू छोड़ने के

-विश्‍व तम्‍बाकू निषेध दिवस की पूर्व संध्‍या पर डॉ सूर्य कान्‍त ने बतायी महत्‍वपूर्ण बात

-युवाओं को नपुंसक बना रहा है धूम्रपान, कोरोना संक्रमण का भी ज्‍यादा है खतरा

डॉ. सूर्य कान्त

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। बीड़ी-सिगरेट व तम्बाकू छोड़ने के फायदे भी बहुत हैं। धूम्रपान बंद करने के 12 मिनट के भीतर उच्च हृदय गति और रक्तचाप में कमी आ सकती है। 12 घंटे बाद रक्त में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड सामान्य पर पहुंच जाएगा। यही नहीं दो से 12 हफ्ते में खून का प्रवाह और फेफड़ों की क्षमता बढ़ जायेगी।

यह महत्‍वपूर्ण जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष व स्टेट टोबैको कंट्रोल सेल के सदस्य डॉ. सूर्य कान्त ने विश्‍व तम्‍बाकू निषेध दिवस की पूर्व संध्‍या पर जारी अपने संदेश में दी। आईएमए-एमएस के वाइस चेयरमैन डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि तम्‍बाकू छोड़ने से जहां शरीर निरोगी रहता है वहीं घर-परिवार की जमा पूंजी इलाज पर न खर्च होकर घर-परिवार को बेहतर माहौल प्रदान करने के काम आती है। उन्‍होंने कहा कि कोरोना ने एक तरह से इस आपदा को कुछ मामलों में अवसर में भी बदलने का काम किया है। ऐसा ही कुछ शुभ संकेत एक्शन ऑन स्मोकिंग एंड हेल्प संस्था के सर्वे से मिलता है। संस्था की गणना के अनुसार कोविड-19 के एक साल के दौरान दुनिया में करीब 10 लाख लोगों ने धूम्रपान से तौबा कर लिया है। इसके अलावा करीब 5.50 लाख लोगों ने धूम्रपान छोड़ने की कोशिश की है और करीब 24 लाख लोगों में सिगरेट पीने की दर में पहले से कमी आई है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे- पिछले एक साल से लोग घरों में अपने बच्चों और बड़ों के साथ रह रहे हैं, ऐसे में उनके लिहाज व अदब के चलते भी धूम्रपान से तौबा कर लिया हो। जिस भी कारण से उन्होंने इस बुराई से निजात पायी हो, बस अब जरूरत है तो उसे हमेशा-हमेशा के लिए गांठ बांध लेने की और दोबारा उस बुराई की तरफ मुड़कर भी नहीं देखना है।

डॉ सूर्य कान्‍त का कहना है कि तम्बाकू व बीड़ी-सिगरेट पीने वालों को कोविड-19 का खतरा सबसे अधिक है क्योंकि इनके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि इम्यूनिटी इतनी कमजोर हो जाती है कि वह किसी भी वायरस का सामना नहीं कर पाती। इसके साथ ही हमारा युवा वर्ग जो आज महज दिखावे के चक्कर में सिगरेट के छल्ले उड़ाता है, उसको भी सतर्क हो जाने की जरूरत है क्योंकि यह कश उसको नपुंसक भी बनाता है। इसके अलावा टीबी, कैंसर, ब्रॉन्काइटिस, ब्लड प्रेशर, पेट, दिल-दिमाग के साथ ही कई अन्य बीमारियों को यह तम्बाकू उत्पाद खुला निमंत्रण देते हैं।

डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि कोरोना की चपेट में आकर अस्पतालों में भर्ती होने और जान गंवाने वालों में बड़ी तादाद उन लोगों की रही जो बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों का सेवन करते थे। ऐसे लोगों की इम्युनिटी कमजोर होने के साथ ही फेफड़े भी कमजोर हो चुके थे। इससे सांस लेने में उन्हें बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ा और ऑक्सीजन तक का सहारा लेना पड़ा।

उनका कहना है कि बीड़ी-सिगरेट पीने या अन्य किसी भी रूप में तम्बाकू का सेवन करने वालों को करीब 40 तरह के कैंसर और 25 अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की पूरी सम्भावना रहती है। इसमें मुंह व गले का कैंसर प्रमुख हैं। यही नहीं धूम्रपान करने वालों के फेफड़ों तक तो करीब 30 फीसद ही धुआं पहुंचता है बाकी बाहर निकलने वाला करीब 70 फीसद धुआं उन लोगों को प्रभावित करता है जो कि धूम्रपान करने वालों के आस-पास रहते हैं। यह धुआं (सेकंड स्मोकिंग) सेहत के लिए और भी खतरनाक होता है। डॉ. सूर्य कान्त का कहना है कि आज देश में हर साल तम्बाकू खाने व बीड़ी-सिगरेट पीने वाले करीब 12 लाख लोग यानि करीब तीन हजार लोग हर रोज काल के गाल में समा जाते हैं। सरकार इन आंकड़ों को कम करने के लिए प्रयासरत है। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए सार्वजनिक स्थलों और स्कूलों के आस-पास बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर रोक के लिए केंद्र सरकार वर्ष 2003 में सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) ले आई है, जिस पर सख्ती से अमल की जरूरत है, तभी स्थिति में सुधार आ सकता है। यह समस्या केवल भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या बन चुकी है। इसी को ध्यान में रखते हुए हर साल 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है, जिसके जरिये लोगों को तम्बाकू के खतरों के प्रति सचेत किया जाता है। इस बार तम्बाकू निषेध दिवस की थीम है- “तम्बाकू छोड़ने के लिए कटिबद्ध”।

डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि विज्ञापनों एवं फ़िल्मी दृश्यों को देखकर युवाओं को लगता है कि सिगरेट पीने से लड़कियां उनके प्रति आकर्षित होंगी या उनका स्टेटस प्रदर्शित होगा, उनकी यही गलत सोच उनको धूम्रपान के अंधेरे कुएं में धकेलती चली जाती है। ऐसे युवाओं को यह जानना जरूरी है कि इसके चक्कर में वह नपुंसकता का शिकार हो रहे हैं। रिसर्च बताते हैं कि धूम्रपान सीधे तौर पर शुक्राणुओं की संख्या को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके चलते नपुंसकता का शिकार बनने की सम्भावना बढ़ जाती है।

डब्ल्यूएचओ ने तम्बाकू नियंत्रण को लेकर यूपी के प्रयासों को सराहा

उत्तर प्रदेश सरकार के तम्बाकू नियंत्रण को लेकर किये गए प्रयासों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इस बार तम्बाकू निषेध दिवस पर सराहा है। यूपी स्टेट टोबैको कंट्रोल सेल द्वारा इस दिशा में किये जा रहे कार्यों में इससे और रफ़्तार आएगी। डॉ. सूर्य कान्त का कहना है कि केजीएमयू का रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग इसके लिए अलग से क्लिनिक संचालित करने के साथ ही तम्बाकू पर नियंत्रण को लेकर वर्ष 2012 से नोडल सेंटर के रूप में काम कर रहा है। इसके तहत विभिन्न विभागों और संस्थाओं के जो भी लोग तम्बाकू नियंत्रण के लिए कार्य कर रहे हैं, उन्हें प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके अलावा लखनऊ विश्वविद्यालय समेत विभिन्न स्कूल –कॉलेजों के नोडल अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के साथ ही इस मुद्दे को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है।