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डीजीएमई की दो टूक, जिसे अदालत जाना हो जाये, काउंसलिंग मैं अपने मन से ही कराऊंगा

NEET की द्वितीय काउंसलिंग के बाद बची सीटों पर पीएमएस के डॉक्टरों को वेटेज देते हुए स्टेट रैंक से कराने का नियम मानने को तैयार नहीं

लखनऊ. प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग ने उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ. केके गुप्ता पर मनमानी करने का आरोप लगाया है. पीएमएस के महामंत्री ने आरोप लगाया है कि बार-बार डीजीएमई नियमविरुद्ध कार्य करते हैं जिसके विरोध में कोर्ट जाने के बाद जब कोर्ट से आदेश होता है तब उसी कार्य को करते हैं. यह रवैय्या बरकरार है, ऐसे में बार-बार प्रत्येक वर्ष प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सा अधिकारियों को न्यायालय की शरण में जाना पडता है जिसमें व्यर्थ ही समय एवं संसाधनों की हानि होती है। इस बार भी नीट की दूसरी काउंसलिंग होने के बाद बची सीटों को लेकर ऐसा ही है, डॉ. सिंह का कहना है कि इन सीटों पर स्टेट रैंक के हिसाब से पीएमएस चिकित्सकों को वेटेज देते हुए सीटों का आवंटन होता है लेकिन डॉ. गुप्ता का कहना है कि काउंसलिंग वह आल इंडिया रैंक के हिसाब से ही करायेंगे, जिसको कोर्ट जाना हो जाये. दूसरी ओर इसके विरोध में बुधवार को अभ्यर्थियों ने काउंसलिंग स्थल केजीएमयू स्थित कलाम सेंटर पर पोस्टर दिखाते हुए प्रदर्शन भी किया. इन पोस्टरों में डीजीएमई को बर्खास्त कर सीबीआई जांच कराने तक की मांग की है.

 

महामंत्री डॉ. अमित सिंह ने कहा है कि प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक स्वयं ही जन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में बाधक बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि  चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक एवं उनके अधीनस्थ अधिकारियों का रवैया निरंतर प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के अधिकारियों के विरुद्ध बना हुआ हैं. ज्ञातव्य है कि, उत्तर प्रदेश में सरकारी चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिए बड़ी संख्या में विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता है, परंतु विशेषज्ञ चिकित्सक विपरीत कार्य परिस्थितियों तथा बेहद कम तनख्वाह के चलते संवर्ग में योगदान देने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, ऐसे में संवर्ग के चिकित्सकों को ही विशेषज्ञ चिकित्सा शिक्षा देकर विशेषज्ञों की कमी को पूरा किया जा सकता है। केन्द्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देने हेतु चिकित्सकों को प्रेरित करने तथा इन क्षेत्रों में विशेषज्ञ चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन परिवर्तन कर सुदूर दुर्गम एवं ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएं दे रहे एमबीबीएस डाक्टरों को पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु 10 प्रतिशत, 20 प्रतिशत, तथा 30 प्रतिशत का अंक लाभ देने का नियम बनाया हुआ है जिसका उद्देश्य यह है कि एम0बी0बी0एस0 चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के लिए प्रोत्साहित हों तथा इन क्षेत्रों में विशेषज्ञों की कमी को पूरा किया जा सके।

 

उन्होंने कहा कि परन्तु विगत अनेक वर्षों से चिकित्सा सेवा महानिदेशालय चिकित्सा शिक्षा किसी ना किसी प्रकार से संसद द्वारा पारित तथा एमसीआई द्वारा अधिसूचित इन नियमों की मूल भावना के विपरीत कार्य कर रहा है जिस कारण प्रत्येक वर्ष प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सा अधिकारियों को न्यायालय की शरण में जाना पडता है जिसमें व्यर्थ ही समय एवं संसाधनों की हानि होती है।

 

वर्ष 2017 में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक द्वारा मनमाने तरीके से उत्तर प्रदेश के बाहर की मेडिकल कालेज से एम0बी0बी0एस0 कर प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में सेवारत चिकित्सा अधिकारियों को नीट पी0जी0 परीक्षा में अहर्ता अंक देने से इंकार कर दिया गया था जिस के उपरांत अभ्यर्थी कोर्ट की शरण में गए तथा कोर्ट ने अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी भी की। इस वर्ष पुनः प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सा अधिकारियों को सर्वप्रथम 10 प्रतिशत, तथा 20 प्रतिशत अंकलाभ देने से इनकार किया गया जिस के उपरान्त कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद यह अंकलाभ दिया गया। इसी वर्ष प्रवेश में कोई अधिकतम आयु सीमा ना होने के बाद भी संवर्ग के कुछ अधिकारियों को अधिकतम आयु सीमा का मनमाना नियम बनाकर प्रवेश लेने से रोका गया। पुनः कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ऐसे अधिकारियों को अधिकतम आयु सीमा का मनमाना नियम बनाकर प्रवेश लेने से रोका गया। पुनः कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ऐसे अधिकारियों को प्रवेश दिया गया।

 

डॉ. अमित ने बताया कि नवीनतम मामला यह है कि नीट पी0जी0 परीक्षा नियमावली में स्पष्ट उल्लेख होता हैं कि परीक्षा के उपरांत द्वितीय काउंसलिंग के बाद शेष बची सभी सीटें स्टेट कोटे में आ जाती हैं तथा उनकी काउंसलिंग प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्साधिकारियों को अंकलाभ देते हुए स्टेट रैंकिंग के अनुसार की जानी चाहिए।

 

स्वास्थ्य शिक्षा महानिदेशालय के मनमाने तरीके से इस सीटों के लिए काउंसलिंग आल इंडिया रैंक के आधार पर कराई जबकि ऐसा करने से पूर्व प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संघ के उपाध्यक्ष डा0 विकासेन्दु अग्रवाल ने चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक से वार्ता कर उन्हें अवगत कराया था कि सेकंड काउंसलिंग के उपरांत शेष बची सीटों पर स्टेट रैंकिंग के अनुसार कांउसलिंग कराने का स्पष्ट नियम है जिसका उल्लंघन करने की स्थिति में चिकित्सा सेवा संवर्ग के अधिकारी कोर्ट की शरण में जायेंगे जिससे प्रक्रिया बाधित होगी तथा अनावश्यक समय एवं संसाधनों की हानि होगी। परंतु चिकित्सा शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों ने संवर्ग के अधिकारियों को जवाब देते हुए कहा कि आप कोर्ट जाने के लिए स्वतंत्र हैं काउंसलिंग आल इंडिया मेरिट के अनुसार ही कराई जाएगी जबकि यह पूर्णता नियम विरुद्ध है। यहां यह बताना उचित होगा कि रैंकिंग के अनुसार काउंसलिंग कराने पर चिकित्सा सेवा संवर्ग के अनेक अधिकारियों को पीजी में प्रवेश मिलता यह सभी अधिकारी लिखित रूप से हलफनामा देते हैं पीजी कोर्स बुक पूर्ण होने के उपरांत यह अधिकारी सरकारी अस्पतालों में न्यूनतम 10 वर्षों तक सेवा अवश्य देंगे तथा ऐसा ना होने की स्थिति में इनसे एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना वसूला जा सकता है।

 

वर्तमान परिस्थितियों में जबकि प्रदेश के चिकित्सा सेवा विशेषज्ञों की गंभीर कमी से जूझ रही है तथा प्रदेश सरकार के भरसक प्रयासों के उपरांत भी विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सा अधिकारियों द्वारा नियमानुसार एवं नीट पी0जी0 प्रवेश परीक्षा में प्रतिभाग करने के उपरांत विशेषज्ञ शिक्षा प्राप्त कर विशेषज्ञों के रूप में उन्हें संवर्ग के सरकारी अस्पतालों में सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक वरदान है तथा मृतप्राय होती जा रही सरकारी चिकित्सा सेवाओं में पुनः सांस फूंकने का कार्य करेगा।

 

चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय द्वारा निरंतर नियम विरुद्ध कार्य करते हुए प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सा अधिकारियों को विशेषज्ञ चिकित्सा से वंचित रखने का प्रयास करना वास्तव में प्रदेश की जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है, साथ ही चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय का रवैया स्वास्थ्य सेवाओ को पटरी पर लाने और जनता को गुणवत्तापरक विशेषज्ञ चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने की प्रदेश सरकार के प्रयासों में पलीता लगा रहा हैं। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय के अधिकारी पूर्ण रूप से स्वेच्छाचारी रवैया अपनाते हुए कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं।

 

25 मई को उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा द्वितीय काउंसलिंग के उपरांत रिक्त बची सभी सीटों पर कराई गई काउंसलिंग को निरस्त करते हुए यह काउंसलिंग स्टेट रैंक्रिग के अनुसार कराए जाने की स्पष्ट निर्देश दिए हैं परंतु चिकित्सा शिक्षा निदेशालय इन निर्देशों को ताक पर रखकर निहित स्वार्थ वश निजी मेडिकल कॉलेज की सीटें भरने के कार्यों में लगा हुआ है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि, ऐसा अधिकारियों ने मांग की है के जन स्वास्थ्य नीति विरोधी तथा संवर्ग के अधिकारियों के विरुद्ध दुराग्रह रखने वाले चिकित्सा सेवा महानिदेशालय के अधिकारियों को ना केवल तत्काल प्रभाव से हटाया जाए बल्कि इस बात की भी जांच की जाए की यह अधिकारी किस कारण से निरंतर संवर्ग विरोधी रवैया अपनाते हुए संवर्ग के अधिकारियों को पी0जी0 कोर्सेज में प्रवेश लेने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं और सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञों की कमी को बनाए रखना चाहते है। अधिकारियों ने मांग की है कि, उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार सेकंड काउंसलिंग के उपरांत शेष बची सीटों पर संवर्ग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए तत्काल पुनः काउंसलिंग कराई जाए तथा इसके बाद ही मॉपअप की कार्यवाही की जाये।

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