-शरीर और स्वास्थ्य आपका है, इसे बचाने की पहली जिम्मेदारी भी आपकी है
-फिर खराब होते सेहत के हालातों पर ‘सेहत टाइम्स’ का दृष्टिकोण

धर्मेन्द्र सक्सेना
कोविड-19 का ग्राफ फिर से सिर उठा रहा है। लगातार मामले सामने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश, जहां कोविड अस्पतालों को वापस पुरानी स्थिति में लाने की तैयारियां शुरू हो गयी थीं, ओपीडी नॉर्मल तरीके से शुरू हो गयी थी, इन सभी स्थानों पर फिर से पुरानी व्यवस्था लौटने लग चुकी है। ऐसा ही कुछ हाल शेष दिनचर्या का भी था, अर्थव्यवस्था की रेलगाड़ी ने धीरे-धीरे स्पीड पकड़नी शुरू की थी, कि फिर से चेन खींच कर गाड़ी रोकने जैसी स्थिति बनने लगी है।
ऐसा क्यों हो रहा है, इसके पीछे के कारण क्या हैं, इसमें बहुत ज्यादा घुस कर सोचने की जरूरत नहीं है, जो सीधी बात सोचने की आवश्यकता है वह यह है कि हम अपना फर्ज कितनी ईमानदारी से निभा रहे हैं। फर्ज से आशय है कि एक साल पूर्व जो बातें हमें सिखायी गयी थीं, हम उसका पालन कितना कर रहे हैं। इसका सीधा सा जवाब है कि हम पालन नहीं कर रहे हैं, चूंकि संक्रमण समाप्त नहीं हुआ था, हमने लापरवाही शुरू कर दी थी, नतीजा तो यह होना ही था। बाजार हो या रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड हों या कार्यालय, हाईवे की सड़कें हों या फिर मोहल्ले की गली, कहने का तात्पर्य है कोई भी सार्वजनिक स्थान हो, कमोवेश नजारा वही हो चुका है कि ज्यादातर लोग सावधानियां नहीं बरत रहे हैं।
जब केस आने की संख्या कम हो गयी थी, तब मोटे तौर पर यह समझ लीजिये कि इक्का-दुक्का लोग ही मास्क लगाने का पालन कर रहे थे, इधर एक पखवाड़े के अंदर जब केस बढ़ने लगे हैं तो मास्क लगाने वालों की संख्या थोड़ी और बढ़ गयी है, लेकिन अब भी अधिकतर लोग मास्क का प्रयोग नहीं कर रहे हैं, जबकि कुछ लोगों के लिए मास्क सिर्फ लटकाने से ज्यादा की वस्तु नहीं है, उसका उपयोग नहीं, मात्र दिखावा कर रहे हैं।
इसी प्रकार सोशल डिस्टेंसिंग की बात करें तो इस नियम की भी धज्जियां जम कर उड़ रही हैं, बड़े प्रतिष्ठानों से लेकर छोटी दुकानों तक, कहीं भी इसका पालन नहीं हो रहा है, इसके अलावा हाथों को समय-समय पर सेनीटाइज करने की बात करें तो यह तो बहुत दूर की बात है, हालांकि जो लोग इन तीनों बातों का, इनमें से दो बातों का या एक बात का ध्यान रख रहे हैं, यहां बात उनकी नहीं हो रही है, उन्हें तो इस बात के लिए सेल्यूट है, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। चूंकि यह संक्रामक रोग है, इसलिए इसका असर दूसरे व्यक्ति पर भी पड़ता है, ऐसे में जिम्मेदारी भी सभी को निभानी होगी।
हमारी एक बहुत बुरी आदत है कि हर खराब बात का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की कोशिश करते हैं, अपनी सहूलियत का हल भी हम दूसरों के ऊपर छोड़ने की आदत पाले हुए हैं। कोरोना संक्रमण की बात करें तो हम सरकार और दूसरों पर जिम्मेदारी डालने में एक मिनट भी नहीं लगाते हैं, लेकिन अपने गिरहबान में देखने की जरूरत नहीं समझते हैं कि हम अपना फर्ज कितना निभा रहे हैं। हम इससे बचाव के कितने नियम मान रहे हैं। अफसोस तो यह होता है कि इस संक्रमण की चपेट में आने पर स्वास्थ्य का नुकसान जब अपना ही होता है, उसके बावजूद सुरक्षा की जिम्मेदारी दूसरों पर डाल देते हैं। एक प्रैक्टिकल बात सोचिये कि वैज्ञानिकों ने अपना फर्ज निभाते हुए संक्रमण से बचने के नियम बता दिये, वैक्सीन बना दी, चिकित्सकों, सरकार और दूसरे तंत्रों ने लोगों को समझा दिया, एक बार नहीं बार-बार समझाया, लगातार समझाया और अब भी समझा रहे हैं, अब इसे मानना तो व्यक्ति के ऊपर ही निर्भर करता है, सरकार हों या चिकित्सक या कोई भी तंत्र वह अपने हाथों से लोगों के मुंह पर मास्क तो लगा नहीं देगा।
अब आते हैं इससे पड़ने वाले आर्थिक असर पर, अगर यह संक्रमण तेजी से बढ़ता रहा तो अंतत: क्या होगा, फिर से वही लॉकडाउन, लॉकडाउन का मतलब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयासों पर सीधी चोट, कितने प्रतिशत लोग है जो बिना आमदनी के घर खर्च चलाने की स्थिति में हैं ? चाहे वह ठेला लगाकर जीविका चलाने वाला हो, या फिर रिक्शा चलाने वाला, दुकानदार हों, या प्राइवेट कम्पनी में काम करने वाला, सभी का कार्य एक-दूसरे से कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है, तो अगर लॉकडाउन की नौबत आती है, तो सोचिये क्या हाल होगा, पिछले लॉकडाउन की अगर बात करें तो क्या हुआ सरकार ने एक निश्चित आय सीमा में आने वाले लोगों की अनाज, नकदी से कुछ मदद की, यह अलग बहस का विषय है कि इससे फर्क कितना पड़ा, लेकिन न से हां की स्थिति तो हुई, लेकिन जो इस पात्रता की श्रेणी में नहीं आते हैं, जिन्हें कुछ भी नहीं मिला उनका क्या हाल हुआ होगा ?
जो लोग इसे सरकार या दूसरे लोगों की जिम्मेदारी मानते हुए अपने प्रयास से बचना चाहते हैं उन्हें इस कड़वे सच को भी समझ लेना चाहिये कि इस महामारी के चलते लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान होता है तो इसका सीधा असर उस परिवार के लोगों पर पड़ता है, दूसरों पर नहीं, सरकार के अभिलेखों के लिए बीमारी या मौत सिर्फ एक आंकड़ा है, जो कि रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज हो जाता है।
कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि पार्टी, धर्म, जाति, अमीर, गरीब किसी भी कैटेगरी में हों, लेकिन मानव तो सभी हैं, और वायरस मानव की श्रेणी देखकर अटैक नहीं करता है, उसे तो सिर्फ वह शरीर दिखता है, फिर वह किसी का भी हो, इसलिए समझदारी इसी में है कि इस कोरोना महामारी से बचने, वैक्सीन के जरिये इससे निपटने के लिए किये जा रहे प्रयास रूपी महायज्ञ में प्रोटोकॉल को मानकर अपने-अपने फर्ज की आहूति सभी लोग अवश्य डालें, इसी में सभी का भला है, स्वास्थ्य रहेगा तभी आगे के कार्य भी होंगे, स्वास्थ्य ही नहीं रहेगा तो आगे की प्लानिंग को कैसे क्रियान्वित करेंगे…
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