कोरोना संक्रमण काल से गुजरने के दौरान इससे सबक लेते हुए हमें आगे के जीवन में क्या-क्या सावधानियां बरतनी होंगी, अपनी जीवन शैली में क्या सुधार लाना होगा, इसे लेकर ‘सेहत टाइम्स‘ ने सेहत सुझाव देने की अपील करते हुए अपने प्रिय पाठकों से सुझाव मांगे थे। हमें खुशी है इस पर हमें सम्मानित पाठकों के विचार और सुझाव मिल रहे हैं, इसके लिए ‘सेहत टाइम्स‘ पाठकों का धन्यवाद अदा करता है।
वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण जिसको डब्ल्यू एच ओ ने महामारी घोषित किया है, शारीरिक अस्वस्थता के साथ-साथ समाज में तनाव एवं भय का भी वातावरण व्याप्त है। यह बीमारी देश, देशान्तर से परे सभी को प्रभावित कर रही है। जाति, धर्म से उपर उठ कर हम सभी को बीमारी से, इसके व्दारा होने वाली हानियों के साथ भ्रांतियों का भी सामना करने की आवश्यकता है। जो लोग बीमार नहीं हैं, किन्तु भयभीत हैं उनमें विश्वास जागृत करने की आवश्यकता है।
जिस व्यक्ति को कोरोना हो गया है वह अभियुक्त नहीं है, न ही अपराधी है, उसके परिवार जन भी अपराधी नहीं है इस विचार को सब तक पहुचानें का प्रयास करना चाहिए। कोरोना का कोई उपचार नहीं है परंतु इसका अर्थ मृत्यु नहीं है। आप अगर ध्यान दें तो बहुत लोग उपचार के बाद ठीक हो कर घर वापस आकर पुन:अपने कार्य पर लौट रहें हैं और अपने परिवार जनों के साथ निश्चित समय तक दूरी बना कर रहने के पश्चात साधारण दिनचर्या का पालन कर रहे हैं।
तनाव से बचने के लिए सकारात्मक कार्यक्रम ही देंखे। दिन भर कोरोना की बातें न करें। झूठी खबरों, क्रोध के अतिरेक से बचें। हमारे जन प्रतिनिधियों एंव स्वास्थ्य कर्मियों व्दारा दी गई जानकारियों का अनुपालन करें। अपने और अपनों को समझदारी भरे कदम जो रोज सुझाए जा रहें डव्लू एच ओ की वेबसाइट, भारत सरकार के निर्देशो से प्राप्त जानकारियों पर ही भरोसा करें।
लॉकडाउन की स्थिति में जब हम अपने परिवार जनों, मित्रों से नहीं मिल सकते तो फोन के माध्यम से बात करके वीडियो कॉल करके सबका संबल बनाए, विशेषकर वृद्ध जनों से हमेशा उनके अनुभव व आशीर्वाद प्राप्त करते रहें। इस प्रकार उनका संबल बना रहेगा और जिजिविषी भी जो कि सबसे किसी भी बीमारी से लड़ने का सबसे बडा हथियार होता है।
आप को, साथ कार्य करने वाले, आपके लिए कार्य करने वालों की भी जिम्मेदारी लेनी है, आजकल सबको कार्य की चिन्ता है, ऐसा न हो कि काम छूट जाए तब जीवन यापन कैसे होगा। हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि हम भरसक प्रयास करके उनकी जरूरतों को पूरा करें। आशा ही जीवन है, जान है तो जहान है। जान भी जहान भी, में जितना योगदान स्वयं को सुरक्षित एवं दूसरों को सुरक्षित रखते हुए कर सकें अवश्य करें।
हम सबको घरों में रहने का प्रयास हमारी पुलिस, स्वास्थ्य कर्ता अपने को जोखिम में डालकर कर रहे हैं। जरा विचार करें क्या वो अपने स्वार्थवश ऐसा कर रहें है नहीं, हम अपने घरों में ही सुरक्षित हैं हम जितनी जल्दी यह बात समझ लें, उतनी जल्दी हम पुन: सबके साथ खुल कर जीने लायक हो पाएंगे। मानसिक स्वास्थ्य एवं शांति के लिए संतुलित दिनचर्या, व्यायाम, योग का अभ्यास करें। तुलसी, हल्दी, गिलोय, दालचीनी, अदरक को अपने खान पान में बढ़ा दें। हर्बल चाय या काढ़े का सेवन करें।
सिगरेट और शराब का सेवन न करें। किसी भी दवा का सेवन बिना चिकित्सक की सलाह के न करें। तनाव रहित जीवन का पालन करें। मांसाहार से बचें। शुद्ध शाकाहारी भोजन का सेवन करें। बच्चों का विशेष ध्यान रखें, उनके व्यवहार में अगर बदलाव महसूस हो जैसे चुप हो जाना, डरना तो यथोचित सलाह लें। बच्चे अपनी भावनाओं को माता पिता परिवार जनों को बता कर सुरक्षित महसूस करते हैं अगर बच्चे दूर है तो तकनीक का उपयोग करके फोन, वीडियो कॉल के माध्यम से उनमें सुरक्षा एवं विश्वास जगाएं।
बड़े-बूढ़े जो कि कि अकेले हैं, अन्य बीमारयों से भी ग्रसित हैं, जैसे कि डिमेंशिया, उच्च रक्त चाप, हृदय रोग उनमें असुरक्षा की भावना के कारण चिड़चिड़ापन, भय की अधिकता हो सकती है। आवश्यकता है उन्हे भावनात्मक सहारे एवं विश्वास जागृत करने की, परिवार जनों एवं स्वास्थ्यकर्मियों का कर्तव्य बनता है कि वो यथोचित सहारा दें। यह समस्या इतनी शीघ्र समाप्त नहीं होने वाली है, मैराथन है इसलिए अंत तक हिम्मत और उर्जा समाप्त नहीं होनी चाहिए। काम के साथ यथोचित विश्राम एवं संतुलित आहार, खुद बचें, दूसरों को बचाएं ही आज का मूलमंत्र है।
-डॉ विभा सिंह, प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी, केजीएमयू, लखनऊ, उत्तर प्रदेश (भारत)