–संजय गांधी पीजीआई में वीआईपी कल्चर को लेकर संस्थान प्रशासन पर उठाये सवाल
-संस्थान के कर्मियों की उपेक्षा को लेकर एक दिन पूर्व नर्सों-कर्मचारियों ने भी जताया था रोष
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। कोरोना की दूसरी लहर में बढ़ते केसों के बीच जहां अस्पतालों की व्यवस्था चरमरा गयी है, वहीं अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले संजय गांधी पीजीआई में भी इस चरमराती व्यवस्था का असर पड़ा है। तेजी से बढ़ रहे संक्रमण का आलम यह है कि स्वास्थ्य कर्मी भी बड़ी संख्या में संक्रमित होने लगे हैं। चूंकि एसजीपीजीआई सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में है तो जाहिर है प्रदेश का टॉप क्लास के वीआईपी से लेकर लोअर क्लास के वीआईपी की नजर भी यहीं रहती है। नतीजा यह है कि मारामारी के इस दौर में आम लोगों की तो बात छोडि़ये जब संस्थान में अपनी सेवायें देने वाले कर्मियों को नजरअंदाज किया गया तो कर्मचारी बिफर गये। नर्सिंग एसोसिएशन का तो खुला आरोप था कि यहां वीआईपी को ट्रीटमेंट के लिए तुरंत हर चीज मुहैया रहती है जबकि जो कर्मचारी अपनी सेवाएं वहां दे रहा है, उसकी उपेक्षा की जा रही है।
स्थिति यहां तक बन गयी कि शुक्रवार को नर्सें, कर्मचारी आदि धरने पर बैठ गये। यही नहीं सोशल मीडिया पर संस्थान का कच्चा चिट्ठा खोलने वाली पोस्ट धड़ाधड़ वायरल होने लगीं। इन पोस्ट में जिम्मेदारों के नाम लेते हुए खुलकर आरोप लगाये थे। ये बातें मीडिया तक पहुंची तो चैनलों से लेकर अखबारों तक की सुर्खियां बनीं। इसी क्रम में शनिवार को यहां के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन भी संस्थान प्रशासन के खिलाफ खुलकर सामने आते हुए निदेशक को पत्र लिखकर मांग की है कि संस्थान में तत्काल “हेल्थ केअर वर्कर वैलनेस ऑफिसर” की नियुक्ति कर कोविड भर्ती को लेकर चल रही व्यवस्था को पारदर्शी बनायें, वीआईपी कल्चर पर लगाम कसें।
एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ आकाश माथुर तथा महासचिव डॉ अनिल गंगवार ने निदेशक को लिखे पत्र में कहा है कि विगत कुछ दिनों में संस्थान की छवि सिर्फ VIP मरीज़ों को उपचार उपलब्ध कराने वाले संस्थान के रूप में बन गयी है तथा सोशल मीडिया में सभी ओर इसी की चर्चा है। लिखा गया है कि यह संस्थान आज जिस ऊंचाई पर है उसमें देश की आर्थिक सीढ़ी के अंतिम पायदान पर खड़े उस व्यक्ति का भी उतना ही योगदान है जितना किसी और का। चाहे शोध कार्य हो या लंबी लाइन में लग कर धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इंतज़ार करना प्रदेश के सामान्य नागरिक ने हमेशा हमें पूर्ण सहयोग प्रदान किया है। मुश्किल के इस वक़्त में संस्थान उन मरीज़ों का हाथ नहीं छोड़ सकता, खास तौर पर रेसिडेंट डॉक्टर तो बिल्कुल भी नहीं। और फिर इस संस्थान की स्थापना का ध्येय भी तो अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक न्यूनतम दर पर श्रेष्ठतम स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना ही है।
नेताद्वय ने लिखा है कि हम इस “VIP कल्चर” की कड़ी भर्त्सना करते हैं तथा आपसे आग्रहः करते हैं कि संस्थान में व्याप्त इस “VIP कल्चर” पर लगाम कसें और कोविड भर्ती की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएं अन्यथा रेसिडेंट डॉक्टर्स आमजन के हितार्थ कड़े कदम उठाने को विवश होंगे। पत्र में कहा गया है कि संस्थान में लगातार स्वास्थ्यकर्मी कोविड संक्रमित हो रहे हैं तथा उनकी भर्ती तथा उपचार की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं है। पत्र में आग्रह पूर्वक कहा गया है कि तुरंत प्रभाव से “हेल्थ केअर वर्कर वैलनेस ऑफिसर” की नियुक्ति कर स्वास्थ्यकर्मियो के लिए उचित स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करें तथा RCH-2 में स्थित प्राइवेट वार्ड्स भी स्वास्थ्यकर्मियों के लिए तुरंत प्रभाव से खोले जाएं ताकि माकूल वातावरण में उन्हें उपचार सुलभ कराया जा सके।
पत्र में लिखा है कि स्वास्थ्यकर्मियों तथा उनके परिवारजन के लिए RCH-2 में कुछ पलंग आरक्षित रखे जाएं। जो स्वास्थ्यकर्मी स्वयं तथा अपने परिवार के स्वास्थ्य को लेकर आशंकित है, क्या उनसे संस्थान के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हो सेवा देने की अपेक्षा की जा सकती है, यह निश्चित ही संस्थान प्रशासन के लिए विचारणीय प्रश्न है।
एसोसिएशन ने रेजीडेंट डॉक्टरों की भी पीड़ा को बयां करते हुए कहा है कि नॉन-कोविड एरिया में भी किसी व्यक्ति के कोविड संक्रमित पाए जाने की स्थिति में रेसिडेंट डॉक्टर को उन्हें कोविड अस्पताल शिफ्ट कराने के लिए अत्यंत संघर्ष करना पड़ता है। प्रत्येक आईसीयू एवं वार्ड के प्रभारी चिकित्सक को व्यक्तिगत रूप से फोन लगा मिन्नतें करनी पड़ती हैं तथा अधिकतर यह प्रयास भी विफल रहते हैं। पत्र में कहा गया है कि हमने पूर्व में भी पत्र लिख निदेशक को इस बारे में सूचित किया था किंतु इस विषय पर भी निदेशक द्वारा कोई प्रतिक्रिया न मिलना चौंकाने वाला है। पत्र में आग्रह किया गया है कि नॉन कोविड एरिया से मरीज़ों की कोविड अस्पताल में भर्ती के लिए एक नोडल ऑफीसर को प्रभार दिया जाए।