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डॉक्टरों-नर्सों के साथ ही माता-पिता के लिए शिशु पालन मॉड्यूल विकसित

-डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर/फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर पर आधारित यूपी की प्रथम प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। डेवलपमेंट सपोर्टिव केयर/फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर पर आधारित उत्तर प्रदेश का पहला ”प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण” की दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारम्भ 18 नवंबर को यहां डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान संस्थान के निदेशक प्रो0 सी0एम0 सिंह के नेतृत्व एवं कार्यशाला के मुख्य अतिथि पार्थसारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण एवं चिकित्सा शिक्षा के द्वारा किया गया। साथ ही डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर/फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर का मॉड्यूल का विमोचन किया गया। यह कार्यशाला दिनांक 19 नवम्बर को समाप्त होगी।

कार्यशाला का आयोजन प्रो0 दीप्ति अग्रवाल, विभागाध्यक्ष, बाल रोग विभाग, डॉ0 आरएमएलआईएमएस और डॉ अशोक कुमार गुप्ता, सहायक आचार्य, बाल रोग विभाग केजीएमयू के द्वारा किया गया। इस दौरान संस्थान के डीन डॉ0 प्रद्ययुमन सिंह, अन्य संकाय सदस्य भी उपस्थित रहे। डॉ पिंकी जोवेल, मिशन निदेशक, एनएचएम और डॉ रतन पाल सिंह सुमन, महानिदेशक परिवार कल्याण, उ0प्र0 सरकार, कार्यशाला के विशिष्ट अतिथि रहे। यह कार्यशाला मुख्यतः मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों के बालरोग विशेषज्ञों के लिए आयोजित की गयी है। कार्यशाला के संसाधन संकाय डॉ (प्रोफेसर) एसएन सिंह, डॉ दीप्ति अग्रवाल, डॉ शालिनी त्रिपाठी और डॉ अशोक कुमार गुप्ता हैं। डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर का मॉड्यूल उ0प्र0 सरकार के निर्देशानुसार लोहिया संस्थान के बाल रोग विभाग, यूनिसेफ और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संयुक्त प्रयास से विकसित किया गया है।

इस अवसर पर संस्थान के निदेशक, प्रो0 सीएम सिंह ने कार्यशाला आयोजक समिति को बधाई दी और इस बात पर प्रकाश डाला कि उक्त मॉड्यूल की सफलता तभी संभव है जब सभी संवर्ग एक जुट होकर ईमानदारी से इसका अनुपालन करेंगे।

कार्यशाला के मुख्य अतिथि पार्थसारथी सेन शर्मा ने अपने सम्बोधन में इस बात पर विशेषकर बल दिया कि इस मॉड्यूल की सफलता तभी संभव है जब नर्सिग संवर्ग का भी पूर्णतः योगदान हो, क्योंकि वह चिकित्सक एवं अभिभावकों के बीच पुल की भॉति काम करती है जिनका काम बच्चों की सेवा एवं ध्यान रखना होता है।

डॉ0 अशोक कुमार गुप्ता ने नवजात शिशुओं में संरक्षित नींद के महत्व के बारे में जानकारी दी। उन्होनें बताया कि शिशुओं में आरामदायक नींद को बढ़ावा देने के लिए कम रोशनी और कम शोर के स्तर को बनाए रखने की आवश्यकता है, त्वचा से त्वचा का संपर्क सुरक्षित नींद को बढ़ावा देता है साथ ही यह भी समझाया कि अपने बच्चे के साथ सोने के समय को अभिभावकों को एक शांत अवधि के रूप में देखने के लिए कोे प्रोत्साहित करें।

डॉ शालिनी त्रिपाठी ने बताया नवजात शिशु में दर्द और तनाव के संकेतों को पहचानना महत्वपूर्ण है। नवजात शिशुओं में भूख के समय हाथ से मुंह दबाना नवजात का स्व-नियामक व्यवहार है। शिशु के अकेले आरामदायक होने पर कंबल लपेटना, उंगली और पैर दबाना नवजात का स्व-नियामक व्यवहार है, जिसे समझना आवश्यक है।

डॉ दीप्ति अग्रवाल ने शिशुओं के दैनिक जीवन की गतिविधियों पर जानकारी देते हुये छोटी परन्तु महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा की, जिसमें उनके द्वारा बताया गया कि शिशु की नाभि पर किसी प्रकार के तेल या पर्दाथ का प्रयोग न करें, उसे सूखा रखें, काजल न लगाएं। बच्चे को ऊनी कपड़ों के नीचे सूती कपड़ों की एक परत पहनाएं। मालिश के स्थान पर हल्के हाथों से तेल लगाएं।

डॉ. एस.एन.सिंह ने नवजात शिशु के स्वास्थ्य के लिए माता-पिता के अतिरिक्त परिवार की भागीदारी कितनी महत्वपूर्ण है के बारे में बताया। कार्यशाला के प्रशिक्षण पैकेज में मॉड्यूल, फ्लिप बुक और पोस्टर शामिल है। मॉड्यूल का उपयोग डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाएगा। फ्लिप बुक का उपयोग माता-पिता परिचरों के प्रशिक्षण के लिए नर्स काउंसलर द्वारा किया जाएगा।

मॉड्यूल बीमार और छोटे नवजात शिशुओं के लिए फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर और डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। प्रशिक्षण इस मॉड्यूल पर आधारित है जो बीमार और छोटे नवजात शिशुओं की देखभाल की गुणवत्ता को मजबूत करने और नवजात अस्तित्व में सुधार करने के लिए काम करेगा।

फैमिली पार्टिसेपटरी केयर (एफपीसी) परिवार को उनके बीमार नवजात शिशु के प्रवेश से निर्वाहन तक, तथा निर्वाहन के बाद की देखभाल करने के लिए सशक्त बनाता है। विकासशील रूप से सहायक देखभाल (डीएससी) विकास को बढ़ावा देता है, और नवजात शिशु के विकासशील मस्तिष्क को बहुत आवश्यक उत्तेजना प्रदान करता है और बीमार शिशुओं के लिए संभावित रूप से फायदेमंद होता है। साक्ष्य आधारित विकासशील सहायक देखभाल, जिन मुख्य उपायों को शामिल करता है, उनमें संरक्षित नींद, दर्द और तनाव मूल्यांकन और प्रबंधनय दैनिक जीवन की विकासशील सहायक गतिविधियांय पारिवारिक भागीदारी देखभाल और एक उपचार वातावरण बनाना।

नवजात देखभाल और बेहतर उत्तरजीविता दर की गुणवत्ता में सुधार करने में एफपीसी एक महत्वपूर्ण अवधारणा के रूप में उभरा है। नवजात देखभाल इकाइयों से निकाले गए बीमार और छोटे बच्चों से पता चलता है कि 10 प्रतिशत बच्चों तक निर्वाहन के बाद जीवन के एक वर्ष तक जीवित नहीं रहते हैं, जबकि बच्चों को नर्सों और डॉक्टरों द्वारा अस्पताल में रहने के दौरान अच्छी तरह से देखभाल की जाती है, लेकिन उन्हें निर्वाहन के बाद प्रशिक्षित सेवा प्रदाता तक सीमित पहुंच है। माता-पिता को घर पर निर्वाहन के बाद अपने नवजात शिशुओं के लिए आवश्यक देखभाल के लिए कौशल की कमी होती है। यह मॉड्यूल नवजात शिशुओं की विकासशील रूप से सहायक देखभाल पर डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षित करने के लिए बनाया गया है और कैसे माता-पिता देखभाल करने वाले को अपने नवजात शिशुओं की देखभाल करने और नवजात देखभाल और अस्तित्व में सुधार करने के लिए सिखाया जा सकता है।

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