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महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप बचाता है अकाल मृत्‍यु से : ऊषा त्रिपाठी

-श्रावण माह में श्री शिव की स्‍तुति से भगवान शंकर को करें शीघ्र प्रसन्‍न

महामृत्युंजय मंत्र

ओम त्र्यम्‍बकंं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्‍धनान्, मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्

विश्व स्वास्थ्य संगठन से महामारी घोषित हो चुकी कोविड-19 बीमारी अपना प्रकोप दिखा रही है। सरकार सहित अन्य स्तरों पर बचने और चिकित्‍सा के उपाय किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी सहित पूरी सरकार ने मोटे तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, मास्क लगाने और बार-बार साबुन पानी से हाथ धोने की अपील सभी से कर रखी है। इसका पालन प्रत्येक व्यक्ति को करना भी चाहिए। इसके साथ ही आजकल चल रहे श्रावण के महीने में भगवान शिव की पूजा करके  इस महामारी के असर को बेअसर किया जा सकता है।

ऊषा त्रिपाठी https://www.pranichealingmiracles.com

योगिक मानसिक चिकित्‍सा सेवा समिति की संचालिका, समाज सेविका व प्राणिक हीलर ऊषा त्रिपाठी ने यह सलाह देते हुए कहा कि‍ सावन के महीने में लोग अधिक पूजा-पाठ करते हैं। कहते हैं कि भगवान शिव ही सृष्टि की रचना करते हैं तथा वही समय आने पर विनाश भी करते हैं। ऐसे में इस विपत्ति काल में सभी को सुरक्षित रखने के लिए शिव की आराधना विशेष महत्‍व है।

ऊषा त्रिपाठी का कहना है कि‍ इस कोरोना काल में अपने घर में बने पूजा घर में बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें, इससे घर में कोई अकाल मृत्यु नहीं होगी। इसका जाप सभी कर सकते हैं।

ऊषा त्रिपाठी ने कहा कि इसके अतिरिक्‍त इस श्रावण माह में भगवान शंकर को शीघ्र प्रसन्‍न करने के लिए श्री शिव रुद्राष्‍टक स्‍तोत्र का पाठ भी अत्‍यन्‍त फलदायी है। यह पाठ इस प्रकार है-

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
 
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
 
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
 
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
 
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
 
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
 
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
 
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
 
रुद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 


 इस स्‍त्रोत का हिन्‍दी में अर्थ इस प्रकार है


हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेश्‍वर को मैं नमस्कार करता हूं।

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।

जिनके कानों में कुंडल शोभा पा रहे हैं। सुंदर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकंठ और दयालु हैं। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।

प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।

कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।

जब तक मनुष्य श्री पार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में, न ही परलोक में सुख-शांति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।

मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दुख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिए। हे शंभो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

जो भी मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर भोलेनाथ विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।

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