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बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही है थैलेसीमिया का स्थायी उपचार : डॉ गौरव खरया

-लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में दो दिवसीय निःशुल्क एचएलए जांच एवं परामर्श शिविर का आयोजन

सेहत टाइम्स

लखनऊ। थैलेसीमिया बीमारी की जानकारी से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि थैलेसीमिया बीमारी को खत्म करने के लिए की जाने वाली पहल, और लोहिया संस्थान इस बात का उत्तम उदाहरण है कि उन्होंने आज निःशुल्क एचएलए स्क्रीनिंग जांच का आयोजन किया। हर प्रकार के रक्त विकार के इलाज के दो तरीके होते हैः केयर एण्ड क्योर और लोहिया संस्थान के थैलेसीमिया डे केयर सेंटर में निःसंदेह मरीजों की उत्तम देखभाल (Care) होती है। बोनमैरो ट्रांसप्लांट थैलेसीमिया का स्थायी समाधान (Cure) है।

यह बात डॉ गौरव खरया, वरिष्ट परामर्शदाता सेंटर फॉर बोनमैरो ट्रांसप्लान्ट एण्ड सेल्युलर थेरेपी, पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी एवं इम्यूनोलाजी ने ”क्युरिंग थैलेसीमिया यूसिंग अनरीलेटेड एंड हैप्लोआईडेंटिकल डोनर” (Curing Thalassemia using unrelated and heploidentical donor) विषय पर यहां डॉ0 राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में आयोजित अपने व्याख्यान में दी। निदेशक प्रो0( डॉ0) सी0एम0 सिंह के मार्गदर्शन में लोहिया संस्थान और अपोलो सेंटर फॉर बोनमैरो ट्रांसप्लांट, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय निःशुल्क एचएलए जांच एवं परामर्श शिविर का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य थैलेसीमिया, जो एक अनुवांशिक रक्त रोग है, के बारे में जागरूकता फैलाना और निःशुल्क एचएलए स्क्रीनिंग प्रदान करना था।

डॉ0 गौरव ने थैलेसीमीया उपचार में होने वाले व्यय के लिए किस प्रकार सरकारी तंत्र समाजसेवी संस्थाओं से सहायता प्राप्त की जा सकती है, पर भी प्रकाश डाला। सरकारी संस्था कोल इंडिया सीएसआर गतिविधियों के अन्तर्गत रक्त विकार से पीड़ितों के लिए सहायता प्रदान करती है। तत्पश्चात प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन किया गया जिसमें थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों के अभिवावकों एवं तीमारदारों द्वारा प्रश्न किये गये साथ ही अभिवावक अखिलेश, जिनके परिवार में दो बच्चों का बोनमैरो ट्रासंप्लाट हो चुका है, ने अपने अनुभवों को साझा किया।

निदेशक ने कहा, ऐसे होगा थैलेसीमिया मुक्त भारत

संस्थान के निदेशक प्रो0 सीएम सिंह ने अपने सम्बोधन में इस बात पर बल दिया कि बीमारी से पहले ही उसकी जांच करा ली जाये जिसके लिए उपयुक्त होगा कि होने वाले दम्पति शादी से पूर्व थैलेसीमिया बीमारी की जीन टेस्टिंग (Gene testing) करा लें। इससे होने वाले बच्चों में थैलेसीमिया बीमारी होने की सम्भावना शून्य हो जायेगी। इस प्रकार हम थैलेसीमिया मुक्त भारत की स्थापना कर सकते हैं।

डॉ0 सुब्रत चन्द्रा, विभागाध्यक्ष, ट्रान्सफ्यूजन मेडिसिन द्वारा बताया गया कि लगभग भारत में हर वर्ष 7 से 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया से ग्रसित हैं। लोहिया संस्थान के थैलेसीमिया डे केयर सेंटर एक वर्ष से सुचारु रूप से संचालित है, जिसमें लगभग 200 बच्चे पंजीकृत हैं। जल्द ही लोहिया संस्थान देश का पहला ऐसा संस्थान हो जायेगा जहॉ थैलेसीमिया के बच्चों को मॉलीक्यूलर जाचें भी उपलब्ध कराई जायेंगी। संस्थान द्वारा बायोऐरे मशीन का क्रय कर लिया गया है और संस्थान प्रदेश ही नहीं अपितु देश भर के संस्थानों के साथ मिलकर इसकी जाचं करने के लिए प्रतिबद्ध है।

कार्यक्रम के दौरान प्रो0 नुज़हत हुसैन विभागाध्यक्ष, पैथोलॉजी, प्रो0 रितु करोली, विभागाध्यक्ष, क्लीनिकल हेमेटोलॉजी, प्रवीर आर्या, अध्यक्ष थैलेसीमिया सोसाइटी, डॉ0 वीके शर्मा, नोडल इंर्चाज, ब्लड बैंक, संकाय सदस्य, रेजीडेन्ट एवं थैलेसीमिया मरीजों के परिवारजन उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में थैलेसीमिया एवं अन्य रक्त विकार से संबंधित प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करने वाले कार्मिक एवं स्वयंसेवकों को प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। जिसमें डॉ0 ऐबी पी, सीनियर कंसलटेंट, अपोलो, डॉ0 नम्रता पी0 अवस्थी, पैथोलॉजी विभाग, डॉ0 नितिन चौधरी, असिस्टेंट प्रोफेसर, क्लीनिकल हेमेटोलॉजी विभाग, डॉ0 शिल्पी मिश्रा, सौरभ वर्मा, को-आडिनेट, अखिलेश मिश्रा, थैलेसीमीया सोसाइटी, पुष्पेन्द्र वर्मा, एम0एस0डब्लू एवं मनीष, स्वयंसेवक शामिल थे।

आज के कार्यक्रम में लगभग 200 बच्चों की अपोलो सेंटर फॉर बोनमैरो ट्रांसप्लांट, नई दिल्ली द्वारा निःशुल्क एचएलए जांच की गयी। एचएलए की एक जांच में लगभग 15,000 रुपये का खर्च आता है। कार्यक्रम का समापन डॉ0 अनुभा श्रीवास्तव द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से किया गया। कार्यक्रम का संचालन निमिषा सोनकर, जे0आ0रो0 द्वारा किया गया।

क्या है थैलेसीमिया ?

थैलेसीमिया इस रोग में हमारे शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया बाधित होती है। जिससे रोगी में स्वस्थ्य रक्त कोशिकायें नहीं बन पातीं जिसके कारण रोगी को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। भारत में हर वर्ष 7 से 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित पैदा होते हैं। यह रोग न केवल रोगी के लिए कष्टदायक होता है बल्कि सम्पूर्ण परिवार के आर्थिक शारीरिक व मानसिक तनाव का कारण बन जाता है। यह रोग अनुवांशिक होने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में चलता रहता है। इस रोग में शरीर में लाल रक्त कणिका, रेड ब्लड सेल (आरबीसी) सही नहीं बन पाते हैं। और केवल अल्प काल तक ही रहते हैं। थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है और ऐसा न करने पर बच्चा जीवित नहीं रह सकता है। इस बीमारी की सम्पूर्ण जानकारी और विवाह के पहले विशेष जॉच कराकर आनेवाले पीढ़ी को थैलेसीमिया होने से रोक सकते हैं। थैलेसीमिया रोग को पूर्ण उपचार केवल बोन मैरो (अस्थि मज्जा) ट्रांस्पलाट द्वारा ही सम्भव है ।

लोहिया संस्थान के डे केयर सेंटर में डेढ़ वर्ष से हो रहा थैलेसीमिया प्रबंधन

थैलेसीमिया प्रबन्धन के लिए संस्थान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा वित्त पोषित थैलेसीमिया डे केयर सेंटर जुलाई 2023 से क्रियान्वित है, जो कि प्रदेश का पहला केन्द्र है। थैलेसीमिया रोगी के लिए ओपीडी, आयरन किलेशन एवं अन्य दवाओं के साथ बिना प्रतिस्थापित के निःशुल्क रक्त उपलब्ध कराया जाता है मरीजों को उनकी ब्लड ट्रान्सफ्यूजन की तिथियों के बारे में पहले से ही सूचित कर दिया जाता है ताकि वे बिना किसी प्रतीक्षा समय के साथ ब्लड ट्रान्सफ्यूजन की सुविधा प्राप्त कर सके। थैलेसीमिया सोसाइटी लखनऊ ने बच्चों के लिए एक प्ले रूम डे केयर सेन्टर में स्थापित किया है। हमारे केन्द्र द्वारा प्रदान की गई इन सुविधाओं के कारण आज तक ब्लड ट्रांस्फ्यूजन कराने वाले रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही रही है, थैलेसीमिया डे केयर सेंटर में 195 थैलेसीमिया रोगियों को पंजीकृत किया जा चुका है और रोगी हर 15 से 30 दिनों में ब्लड ट्रांस्फ्यूजन कराते है। अब तक संस्थान के डे केयर सेन्टर में 2700 ब्लड ट्रांस्फ्यूजन हो चुके हैं।

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