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बिछड़ा कुछ इस अदा से कि ऋतु ही बदल गई, इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया…

-साथी डॉक्‍टर की अचानक मौत से शोकाकुल एसजीपीजीआई के रेजीडेंट्स ने आयोजित की श्रद्धांजलि सभा

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। यहां स्थित संजय गांधी पीजीआई में बीते सितम्‍बर में डीएम गैस्‍ट्रोएन्‍टरोलॉजी की परीक्षा में टॉप करने वाले डॉ कौस्तुभ मुंदड़ा की अचानक हार्ट फेल होने से मृत्‍यु से संस्‍थान के रेजीडेंट डॉक्‍टर सदमे में हैं, उनमें शोक की लहर व्‍याप्‍त है, इन रेजीडेंट डॉक्‍टरों ने आज शाम को अपने साथी डॉ कौस्‍तुभ की मौत पर कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। यह विडम्‍बना ही है कि सहपाठी के रूप में डीएम करने वाले डॉ कौस्‍तुभ के जाने के दुख के बीच ही डॉ आकाश माथुर को सीनियर रेजीडेंट के रूप में चुने जाने को लेकर आज ही संस्‍थान के स्‍थापना दिवस समारोह में सम्‍मानित होना था।

डॉ आकाश माथुर से जब ‘सेहत टाइम्‍स‘ ने बात की तो उन्‍होंने अपने दुख को एक शेर के जरिये व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि बिछड़ा कुछ इस अदा से कि ऋतु ही बदल गई, इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया…

रेजीडेंट्स डॉक्‍टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के अध्‍यक्ष डॉ आकाश माथुर व महामंत्री डॉ अनिल गंगवार ने बताया कि डॉ कौस्तुभ ने सितंबर 2020 में डीएम गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की परीक्षा पास की थी और वर्तमान में कोरॉना वारियर्स के रूम में अपनी सेवाएं एसजीपीजीआई में दे रहे थे, दो सप्ताह पहले उन्होंने कॉरोना आइसीयू में ड्यूटी भी की थी।

उन्‍होंने बताया कि वह 11 दिसंबर की रात अचानक हृदयाघात होने के कारण 32 वर्ष की अल्पायु में ही संसार से अलविदा हो गए, ईश्वर ने इतना भी समय नहीं दिया की डॉक्टर्स कुछ कर पाते, उन्‍हें अस्पताल पहुंचने पर ही मृत घोषित कर दिया गया। वह अपने पीछे अपनी पत्नी डॉ अपूर्वा, जो वर्तमान में डीएम ऑन्‍कोपैथ कर रही हैं, और एक वर्ष के बेटे को छोड़ गये।

उन्‍होंने बताया कि डॉ  कौस्तुभ बहुत ही मेहनती, मृदुभाषी, ईमानदार, सरल और हंसमुख व्यक्ति थे, जटिल से जटिल व्यकितगत या प्रोफेशनल समस्याओं का निदान वह बड़ी सरलता पूर्वक कर देते थे, इसी कारण हम सभी जूनियर क्या सीनियर डॉक्टर भी प्यार से उन्हें “Sir Kaustubh”  की उपाधि से बुलाते थे।

उन्‍होंने बताया कि डीएम की पढ़ाई में व्यस्तता, कोरोना के कारण लॉकडाउन और कॉरोना में ड्यूटी होने के कारण मुश्किल से ही कभी बच्चे को समय दे पाए हों, जिसका उन्हें हमेशा ही मलाल रहा। जब भी वह कभी राउंड्स पर मिलते थे तो कहते थे कि जल्द यह कोरॉना ख़त्म किया जाए, और बाबू( लाडला एक साल के बेटा) के साथ कुछ पल व्यतीत करने का मौका मिले, लेकिन यह ईश्वर को मंजूर नहीं था। उन्‍होंने बताया कि डॉ कौस्‍तुभ शुरू से ही मेधावी थे, उन्होंने हाल ही में दिए गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग की परीक्षा में भी टॉप किया था।