-केजीएमयू में वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, फेफड़ो के स्वास्थ्य पर हुई एक संगोष्ठी का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। अमेज़ॅन के जंगल अब अवशोषित करने के बजाय उत्सर्जित कर रहे हैं। इसका कारण जंगल की आग और पेड़ों का गिरना एवं कटना है।
यह बात जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचालिका एवं सीनियर मीडिया ऑफिसर, ग्रीन पीस, डा0 सीमा जावेद ने मंगलवार को श्वसन चिकित्सा विभाग, केजीएमयू लखनऊ में जलवायु परिवर्तन पर रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, केजीएमयू में आयोजित विशेष चर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में कही। ज्ञात रहें कि किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग अपना 75 वाँ स्थापना वर्ष (प्लेटिनम जुबली स्थापना वर्ष) मना रहा है। 75 वीं वर्षगांठ में विभाग विभिन्न प्रकार के 75 आयोजन कर रहा है।
डा0 सूर्यकांत, विभागाध्यक्ष, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, केजीएमयू के नेतृत्व में धन्वंतरि दिवस के उपलक्ष्य में यह आयोजन किया गया। डा0 सीमा जावेद ने बताया कि जलवायु परिवर्तन एक ज्वलन्त मुददा बना हुआ है, आज सारी दुनिया इसकी बात कर रही है। उन्होनें कहा कि ’’शून्य कार्बन उत्सर्जन’’ आज की जरूरत है, जिससे हम आने वाली पीड़ियों को एक अच्छा एवं स्वस्थ्य वातावरण दे सकेगें। डा0 सीमा जावेद ने जलवायु परिवर्तन और जलवायु कार्रवाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य की भूमिका और प्रासंगिकता के बारे में व्यावहारिक बात की।
उन्होनें आगे बताया कि लैंसेट कांउटडाउन की रिपोर्ट के अनुसार आने वाला वक्त आजमाइशों से भरा होगा। पिछले 30 वर्षों में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लोगों की मौतों में इजाफा हुआ है। इन देशों में 29500 करोड़ काम के घन्टे खोये है। मलेरिया जैसी बीमारी के केसों में लगभग 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। भारत उन पांच देशों में से एक है, जहां पिछले 5 वर्षों में अति संवेदनशील आबादी (एक साल से कम आयु के बच्चे एवं 65 साल से अधिक उम्र के बूढ़े लोगों की आबादी) सबसे अधिक खतरे में है। आंकड़े बताते हैं कि भारत ने सन् 2020 में 11300 करोड़ घन्टें से अधिक श्रम खोया है। इन 91 प्रभावित देशों में से भारत सहित कुल 47 देशों (52 प्रतिशत) ने स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन योजना बनाई है। भारत इसमें एक अहम भूमिका निभा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ’’नेशनल सोलर एलायन्स’’ का गठन किया गया है और भारत ग्रीन च्वाइस की ओर अग्रसर है।
उन्होंने लोगों को जलवायु प्रभावों को कम करने में चिकित्सकों सहित सभी की भूमिका के बारे में याद दिलाया। उन्होनें कहा कि ’’हम एक जलवायु आपदा के बीच में हैं।’’ बहुत कुछ करने की जरूरत है, खासकर गरीब और विकासशील देशों के लिए। अमीर देशों से विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर देने की उम्मीद है, लेकिन वे ऐसा नहीं करते हैं। जलवायु कार्रवाई में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, यूके में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ने को हतोत्साहित करने की योजना बना रही है जो कार्बन तटस्थ नहीं हैं। उन्होंने तब भारत के रुख के बारे में बात करते हुए कहा, भारत सरकार इस मुद्दे के प्रति बेहद संवेदनशील है और हम सभी को व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर इस मुद्दे को आगे बढ़ाने में सरकार का समर्थन करने के लिए एक साथ आना चाहिए।
इससे पहले, डा0 सूर्यकांत ने संस्थान के इतिहास के बारे में विस्तार से पर्यावरण के संरक्षण और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए स्वदेशी तरीकों और सरल प्रयासों के बारे में बताया। डा0 सूर्यकान्त जो कि ’’डाक्टर्स फॉर क्लीन एयर’’ संस्था के उ0प्र0 के प्रभारी हैं, ने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण हमारे देश में 17 लाख लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष हो जाती है तथा पिछले वर्षों में रेस्पिरेटरी मेडिसिन कि विभाग में प्रदूषण के कारण होने वाले प्रमुख बीमारियां जैसे- अस्थमा, ब्रान्काइटिस, टी.बी., निमोनिया, फेफडे़ का कैंसर व एलर्जी के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक करने के लिए विभाग में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के बारे में रेस्पिरेटरी मेडिसिन ओपीडी में लिखित जानकारी फ्लैक्स के रूप में लगाई गयी है। विभाग में तीन पार्क एवं एक आरोग्य वाटिका का भी निर्माण किया गया है। धन्वन्तरि दिवस के उपलक्ष्य में डा0 सीमा जावेद को एक धन्वन्तरि जी की प्रतिमा स्मृति चिन्ह के रूप में प्रदान की गयी। संगोष्ठी की समाप्ति डा0 आर.ए.एस. कुशवाहा के धन्यवाद ज्ञापन से हुयी। यह एक बहुत ही संवादात्मक सत्र था, जिसमें रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक- डा0 संतोष कुमार, डा0 अजय कुमार वर्मा, डा0 आनन्द कुमार श्रीवास्तव, डा0 दर्शन कुमार बजाज, डा0 अंकित कुमार और रेजीडेंट डाक्टर्स ने सक्रिय रूप से भाग लिया और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में जानकारी प्राप्त की।