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संजय गांधी पीजीआई में अनोखी घुटना सर्जरी से कार्टिलेज समस्या व वेरस विकृति का उपचार

-यूपी में पहली बार हुई ऐसी अत्याधुनिक घुटना सर्जरी, एक्टिव मरीजों के लिए नी ट्रांसप्लांट का अच्छा विकल्प

सेहत टाइम्स

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पहली बार, संजय गांधी पीजीआई लखनऊ के आर्थोपेडिक विभाग ने एक अत्याधुनिक संयुक्त घुटना सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। इस अभिनव प्रक्रिया में आर्थ्रोस्कोपिक माइक्रोफ्रैक्चर और हाइब्रिड हाई टिबियल ऑस्टियोटॉमी (HTO) को एक ही ऑपरेशन में किया गया। यह सर्जरी 46 वर्षीय महिला मरीज पर की गई, जो गंभीर ऑस्टियोआर्थराइटिस और अधिक वेरस विकृति से वर्षों से पीड़ित थीं।

मरीज को लंबे समय से लगातार घुटने में दर्द और चलने-फिरने में कठिनाई थी। “बो-लेग्ड” (वेरस) स्थिति के कारण उनके घुटने के अंदरूनी हिस्से पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा था, जिससे कार्टिलेज का गंभीर क्षरण हो गया था। पारंपरिक उपचार विफल होने पर सर्जरी ही अंतिम विकल्प बचा था।
सर्जरी का नेतृत्व डॉ. अमित कुमार, एडिशनल प्रोफेसर, आर्थोपेडिक्स, एपेक्स ट्रॉमा सेंटर ने किया। टीम ने एक अनोखी दो-स्तरीय शल्य-पद्धति अपनाई, जिसमें कार्टिलेज की समस्या और यांत्रिक विकृति दोनों को एक साथ ठीक किया गया।

सर्जरी के पहले चरण में आर्थ्रोस्कोपिक माइक्रोफ्रैक्चर किया गया। इस कम इनवेसिव तकनीक में आर्थ्रोस्कोप की सहायता से घुटने में छोटे-छोटे छिद्र बनाए गए, जो हड्डी के नीचे नए फाइब्रोकार्टिलेज बनने को उत्तेजित करते हैं। इससे जोड़ों में कुशनिंग बढ़ती है और दर्द में राहत मिलती है।
दूसरा और अधिक जटिल चरण था हाइब्रिड हाई टिबियल ऑस्टियोटॉमी (HTO)। इसमें टिबिया (पिंडली की हड्डी) को सटीक रूप से काटकर पुनः संरेखित किया गया, ताकि वजन का भार घुटने के क्षतिग्रस्त आंतरिक हिस्से से हटकर स्वस्थ बाहरी हिस्से पर शिफ्ट हो सके। इस सुधार से वेरस विकृति ठीक होती है और घुटने के प्राकृतिक जोड़ की आयु में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।

डॉ अमित ने बताया कि “इन दोनों प्रक्रियाओं को एक साथ करने से हम न केवल कार्टिलेज की समस्या का समाधान करते हैं, बल्कि उस मूल कारण को भी ठीक करते हैं जो जोड़ के तेजी से खराब होने का कारण बन रहा था। यह तकनीक अपेक्षाकृत युवा और सक्रिय मरीजों के लिए घुटना प्रत्यारोपण का एक बेहतर विकल्प है।”
संस्थान के निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर आर के धीमन ने इस उपलब्धि पर टीम को बधाई दी और कहा,” यह उपलब्धि हमारे राज्य में आर्थोपेडिक देखभाल के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और हमारे संस्थान की उन्नत सर्जिकल क्षमता को दर्शाती है।”
मरीज अब अच्छी तरह से स्वस्थ हो रही हैं और चलने-फिरने में सुधार दिख रहा है। उन्होंने कहा,“मुझे लगा था कि अब केवल घुटना प्रत्यारोपण ही विकल्प है, लेकिन इस सर्जरी ने मुझे दर्द-मुक्त जीवन की नई उम्मीद दी है।”

इस सफलता से एसजीपीजीआईएमएस ने उन्नत आर्थोपेडिक उपचारों के क्षेत्र में अपनी अग्रणी स्थिति को और मजबूत किया है। यह उपलब्धि भविष्य में ऐसे और जटिल मामलों के उपचार का मार्ग प्रशस्त करेगी और राज्य के अनगिनत मरीजों के लिए नई आशा बनकर उभरेगी।

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