-शारीरिक-मानसिक के साथ ही इस रोग का एक बड़ा कारण बन कर उभर रही है यह सामाजिक समस्या
-पीसीओएस जागरूकता माह में एक संवेदनशील कारण पर विशेष जानकारी दी डॉ गिरीश गुप्ता ने

(धर्मेन्द्र सक्सेना/सेहत टाइम्स)
लखनऊ। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (polycystic ovary syndrome) पीसीओएस की समस्या तेजी से बढ़ रही है। सितम्बर माह को पीसीओएस जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य पीसीओएस से प्रभावित लोगों के जीवन में जागरूकता बढ़ाना और उन्हें बेहतर बनाना, साथ ही लक्षणों पर काबू पाने में मदद करना और जीवनशैली में ऐसे बदलावों को प्रोत्साहित करना है भी है, जिनसे पीसीओएस का बेहतर प्रबंधन हो सके। भारत में पीसीओएस (PCOS) की व्यापकता 3.7% से 22.5% के बीच बताई गई है।
पीसीओएस के होम्योपैथिक दवाओं से उपचार पर आयुष मंत्रालय द्वारा दी गयी वित्तीय मदद से शोध कर चुके गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के चीफ कन्सल्टेंट वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता से इस विषय पर सेहत टाइम्स ने विस्तृत वार्ता की। डॉ गुप्ता ने कहा कि आज पीसीओएस की समस्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है, इसके लिए सबसे पहले यह समझना होगा कि पीसीओएस है क्या।

उन्होंने कहा कि माहवारी के दौरान ओवरी से अंडे निकलते हैं, ये अंडे परिपक्व होकर या तो पुरुष के शुक्राणु के सम्पर्क में आकर भ्रूण का निर्माण करते हैं या जब शुक्राणु के सम्पर्क नहीं होता है तो ये अपने आप नष्ट हो जाते हैं। हमारी मन:स्थिति का असर मस्तिष्क पर पड़ता है जिसके अनुसार अच्छे-बुरे हार्मोन्स पीयूषग्रंथि (pituitary gland) में बनते हैं। जब इन हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ जाता है तो इसका प्रभाव अंडाशय पर पड़ता है और प्रति माह मासिक चक्र के समय निकलने वाले अंडे परिपक्व (mature) नहीं हो पाते हैं जिससे वे न तो शुक्राणु के सम्पर्क में आ पाते हैं और न ही नष्ट हो पाते हैं, वे रैप्चर होकर ओवरी के चारों ओर चिपकने लगते हैं, यह जमाव एक रिंग के आकार का हो जाता है, जिसे रिंग ऑफ पर्ल भी कहते हैं। इसी स्थिति को पीसीओएस कहते हैं।
हावी हो जाता है पुरुष हार्मोन
पीसीओएस के कारणों की बात करें तो इस बीमारी के कारण शारीरिक और मानसिक दोनों हैं। मोटापा, फास्ट फूड का अत्यधिक सेवन, व्यायाम न करना, करियर ओरिएंटेड होना। जिसके चलते घर और बाहर दोनों में सामंजस्य बैठाने के लिए अत्यधिक तनाव झेलना, (यही वजह है गांव में पीसीओएस कम होता है क्योंकि वहां लड़कियां जॉब ओरिएंटेड नहीं हैं) इन सबके अलावा एक बड़ा कारण है लड़कियों का लड़कों से बराबरी करते हुए उसके जैसे काम करना। दरअसल प्रत्येक लड़के और लड़की दोनों के शरीर में पुरुष और महिला दोनों के हार्मोन होते हैं। आजकल ज्यादातर लड़कियां वे सब कार्य करती हैं जो लड़के करते हैं, चाहें माता-पिता उनसे करवाते हैं अथवा वे स्वयं करती हैं, जैसे पहनावा हो या हेयर स्टाइल या कुछ और, लड़कियां लड़कों द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य कर उनकी बराबरी कर रही हैं, इसका नतीजा यह होता है कि उनके अंदर पुरुषों वाली सोच डेवलप होने लगती है, जिससे उनके अंदर मौजूद पुरुषों वाला हार्मोन टेस्टोस्टोरोन अपना वर्चस्व बढ़ाने लगता है। इसके विपरीत महिलाओं वाले हार्मोन्स स्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन की कार्यक्षमता दब जाती है, जिससे माहवारी के समय अंडे ओवरी से निकलकर मैच्योर नहीं हो पाते हैं और गर्भाशय में नहीं पहुंच पाते हैं, परिणामस्वरूप बांझपन की स्थिति पैदा हो जाती है या पीरियड में भारी अनियमितता पैदा हो जाती है, जिससे साल में छह से सात पीरियड होते हैं, जबकि सामान्य रूप से प्रतिमाह यानी 12 होने चाहिये।
लड़कों की तरह मोटापा, लड़कों की तरह बाल झड़ना
डॉ गुप्ता ने बताया कि इसके अतिरिक्त पुरुष हार्मोन की सक्रियता बढ़ने से दाढ़ी-मूंछ वाले स्थान पर बाल उगना, लड़कों की तरह बाल झड़ना, लड़कों की तरह का मोटापा (पेट पर चर्बी) आ जाता है। ज्ञात हो लड़कों के बाल अंग्रेजी के अक्षर M की तरह झड़ते हैं, जबकि लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हैं। इसी प्रकार लड़कों में मोटापा होने पर चर्बी पेट पर जम जाती है, जबकि लड़कियों के मोटे होने पर चर्बी उनकी कमर और हिप पर बढ़ जाती है।
डॉ गुप्ता ने कहा अपनी पीएचडी और पीसीओएस उपचार पर शोध के दौरान मरीजों से जब उनकी हिस्ट्री पूछता था तो जो बातें सामने आयीं, और जो बाद में पीसीओएस के लिए जिम्मेदार सिद्ध हुईं, इसके आधार पर मैं यह कह सकता हूं प्रकृति ने हमें जो गुण प्रदान किये हैं, हमें उसी को स्वीकार करते हुए रहना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैं कभी नहीं कहता हूं कि लड़का-लड़की में भेदभाव करना चाहिये लेकिन यह जरूर है कि प्राकृतिक रूप से प्रदत्त पुरुष और महिलाओं के गुणों के साथ सामंजस्य तो बैठाना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आज कुछ माता-पिता भी लड़कियों को लड़कों की तरह रखते हैं, जो कि गलत है। एक-दूसरे की देखादेखी बढ़ रही इस सामाजिक समस्या को समाप्त करने के लिए समाज के जिम्मेदार लोगों के साथ ही खुद लड़कियों को भी समझना होगा कि वे प्रकृति की ममतामयी संरचना हैं और सृष्टि के निर्माण में उनकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आदरयोग्य है, उनका पुरुष के साथ कम्प्टीशन नहीं है, सहभागिता है, जिसमें दोनों को अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहन करना है।
…क्रमश:
(इसके आगे के शेष भाग में …when your eyes do not weep, then internal organ will weep यानी जब आपकी आंख नहीं रोती है तो दूसरे अंगों को रोना पड़ता है…पीसीओएस से जुड़ी कुछ और खास बातें, इलाज, शोध की जानकारी बहुत जल्द)


