-त्वचा रोगों को बिना किसी साइड इफेक्ट, जड़ से समाप्त करने की क्षमता है होम्योपैथी में : डॉ गिरीश गुप्ता
सेहत टाइम्स
लखनऊ। हरपीज (Herpes) का नाम आते ही मन में सिहरन सी दौड़ जाती है, क्योंकि यह इस बीमारी में मरीज को तीखा दर्द होने के कारण बहुत तकलीफ होती है। हरपीज एक सामान्य वायरल संक्रमण है जो हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस (HSV) के कारण होता है। यह वायरस मुंह, जननांगों या शरीर के अन्य हिस्सों की त्वचा को प्रभावित कर सकता है। हरपीज हो या बरसात में होने वाले अन्य प्रकार के त्वचा रोग इनमें होम्योपैथिक इलाज की भूमिका को लेकर ‘सेहत टाइम्स’ ने गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च जीसीसीएचआर के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने बात की।

डॉ गुप्ता ने बताया कि आजकल बरसात का मौसम चल रहा है, इन दिनों वायरल का संक्रमण बढ़ जाता है तथा हरपीज, दाद जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि हर्पीज़ वायरस संवेदी तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और त्वचा पर छाले पैदा करता है। यह आमतौर पर शरीर के एक तरफ दिखाई देता है और लंबे समय तक post herpetic neuralgia पोस्ट हर्पेटिक न्यूराल्जिया (पीएचएन) के रूप में परेशान करता रहता है। उन्होंने बताया कि पोस्ट हर्पेटिक न्यूराल्जिया हरपीज संक्रमण के बाद होने वाला एक न्यूरोपैथिक दर्द है, जो तंत्रिका क्षति के कारण होता है और दाने चले जाने के बाद भी लंबे समय तक दर्दनाक जलन, चुभन या तेज़ दर्द के रूप में बना रहता है।
उन्होंने कहा कि होम्योपैथी से इलाज की बात करें तो हरपीज सहित त्वचा के अन्य रोगों में होम्योपैथिक दवा अत्यन्त प्रभावी हैं। उन्होंने कहा कि होम्योपैथिक दवाओं में किसी प्रकार का साइड इफेक्ट न होने के कारण इससे दूसरी तरह की दिक्कतें होने की संभावना नहीं रहती है।
उन्होंने कहा कि जैसा कि मैं हमेशा से कहता हूं कि होम्योपैथिक की एक दवा किसी एक रोग में सभी को लाभ नहीं देती है, किन लोगों को यह लाभ देगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी के शरीर और मन की प्रकृति और स्थिति क्या है, इसीलिए होम्योपैथी में मरीज की हिस्ट्री लेने की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है, शरीर और मन को केंद्र में रखकर दवा का चुनाव करने पर मरीज को सटीक लाभ होता है। उन्होंने कहा कि हालांकि मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि हरपीस जैसे त्वचा रोगों में मन की स्थिति की विशेष भूमिका नहीं है, इसमें रोगी की शारीरिक स्थितियों और रोगी की प्रकृति के बारे में हिस्ट्री लेकर दवा का चुनाव किया जाता है। उन्होंने बताया कि हरपीस की भी अनेक दवायें होम्योपैथी में उपलब्ध हैं, लेकिन एक दवा सभी को लाभ पहुंचाये, ऐसा नहीं है, दवा का चुनाव रोगी की शारीरिक स्थितियों और प्रकृति के अनुसार किया जाता है।
ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्ता ने त्वचा रोगों पर एक किताब एविडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्मेटोलॉजी Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology भी लिखी है। इस पुस्तक में चर्म रोगों के होम्योपैथिक इलाज के बारे में वैज्ञानिक सबूतों सहित पूर्ण विवरण दिया गया है। पुस्तक में वायरल संक्रमण वाले रोग वार्ट और मोलस्कम कॉन्टेजियोसम के साथ ही विटिलिगो यानी ल्यूकोडर्मा, सोरियासिस, एलोपीशिया एरियटा, लाइकिन प्लेनस तथा माइकोसेस ऑफ नेल के मरीजों पर की गयी रिसर्च उसके परिणाम और कुछ मॉडल केस के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है।
संक्रमण ऐसे रोकें
हरपीज संक्रामक रोग है इसलिए संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने जैसे किस करना, यौन संबंध बनाना या संक्रमित व्यक्ति की वस्तुओं का उपयोग करने से बचना चाहिये। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के घावों या बिना घाव वाले क्षेत्रों के संपर्क में आने से भी फैल सकता है।



