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एक ब्रेन डेड व्यक्ति दे सकता है आठ लोगों को जिन्दगी और कई अन्य को बेहतर जीवन : प्रो नारायण प्रसाद

-15वें भारतीय अंगदान दिवस के अवसर पर सेण्टर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च ने आयोजित किया व्याख्यान

-प्रो आलोक धवन के आह्वान पर कार्यक्रम में 35 लोगों ने NOTTO के पोर्टल पर दर्ज करायी अंगदान की प्रतिज्ञा

प्रो आलोक धावन
प्रो नारायण प्रसाद

सेहत टाइम्स

लखनऊ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGIMS) के नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नारायण प्रसाद ने कहा है कि देश में प्रत्यारोपण के लिए अंगों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मृत व्यक्तियों के अंगदान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ब्रेन डेड व्यक्तियों से अंगदान सर्वोत्तम होता है, क्योंकि ब्रेन डेड की स्थिति में 2 गुर्दे, 2 फेफड़े, यकृत (लिवर), हृदय, आंत और अग्नाशय दान किये जा सकते हैं, जिससे संभावित रुप से 8 लोगों की जान बच सकती है, इसके अलावा कॉर्निया, त्वचा, हड्डी, हृदय वॉल्व आदि जैसे ऊतक भी दान किये जा सकते हैं, जिससे कई अन्य लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

प्रो प्रसाद ने यह बात आज 1 अगस्त को यहां सेण्टर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सी.बी.एम.आर.), लखनऊ द्वारा 15वें भारतीय अंगदान दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात कार्यक्रम में अंगदान की प्रेरणा से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के “अंगदान जीवन संजीवनी अभियान” एवं उत्तर प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा किये गये आह्वान पर आयोजित किये गये “Organ Donation : Need of the Hour” विषय पर एक विशिष्ट व्याख्यान में कही। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सीबीएमआर के निदेशक प्रो आलोक धावन ने की। उनके द्वारा किये गये आह्वान पर कार्यक्रम में 35 लोगों ने अंगदान की प्रतिज्ञा की।

प्रो. प्रसाद ने बताया कि भारत में प्रत्येक वर्ष लाखों रोगियों को प्रत्यारोपण के लिए अंगों की समय पर उपलब्धता न होने के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। विशेषकर End-Stage Kidney Disease के रोगियों को यदि समय पर प्रत्यारोपण न मिले तो डायलिसिस (Dialysis) पर उनकी औसत आयु 4–5 वर्ष रह जाती है।

उन्होंने बताया कि भारत में 2024 तक कुल 1130 मृतक अंगदाता और 3152 अंग प्रत्यारोपण दर्ज किए गए। इस कारण से मृतक अंगदान दर के मामले में भारत 94 देशों में 68वें स्थान पर है। NOTTO में पंजीकृत कुल 941 केंद्र पंजीकृत हैं, जिनमें 688 अंग प्रत्यारोपण केंद्र हैं। राज्यवार आकलन में उत्तर प्रदेश सातवें स्थान पर है। भारत सरकार ने “वन नेशन, वन पॉलिसी” लागू की है जिससे राज्य में निवास की बाध्यता समाप्त हो गई है और सभी आयु वर्ग के मरीज बिना शुल्क के पंजीकरण कर सकते हैं।

प्रोफेसर नारायण प्रसाद ने अंगदान के नेक काम के लिए अधिक से अधिक लोगों को जागरूक किये जाने का आह्वान किया। उन्होंने सभागार में उपस्थित समस्त लोगों को पोर्टल पर अपनी-अपनी प्रतिज्ञा दर्ज कराने की जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के उच्च चिकित्सा संस्थानों तथा निजी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध है। उत्तर प्रदेश सरकार इस क्षेत्र में तेजी से कार्य करते हुए अंग प्रत्यारोपण केंद्रों को बढ़ाने के लिये तत्परता से कार्य कर रही है। उन्होंने बताया​ कि आधार सत्यापित डिजिटल प्रतिज्ञा रजिस्ट्री शुरू की गई (notto.abdm.gov.in), जिस पर 2.16 लाख से अधिक लोगों ने अंगदान की प्रतिज्ञा की है। ऑर्गन ट्रांसपोर्ट SOP लागू की गई है, जिसमें 7 मंत्रालयों का समन्वय शामिल है।

प्रो प्रसाद ने बताया कि विभिन्न अंगों एवं हाथ के प्रत्यारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब तक भारत में 68 हाथों के प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किए जा चुके हैं। जिनसे प्रत्यारोपित व्यक्ति के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ। प्रोफेसर नारायण ने बताया कि इस संबंध में कई सामाजिक भ्रांतियों को दूर करने के लिए चिकित्सक एवं उत्तर प्रदेश सरकार कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही है।

प्रोफेसर प्रसाद ने कार्यक्रम का समापन “Donate Organs, Save Lives” की प्रेरक अपील के साथ किया गया। उन्होंने कहा कि अंगदान एक संवेदनशील लेकिन आवश्यक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से हम अनेक ज़िंदगियों को नई आशा दे सकते हैं। प्रो आलोक धावन ने प्रो नारायण को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए पूरे वर्ष इस प्रकार के कार्यक्रम एवं जागरूकता अभियान समय-समय पर संस्थान द्वारा आयोजित किये जाने की प्रतिबद्धता दोहराई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपने उद्बोधन में प्रोफेसर धावन ने कार्यक्रम का महत्व बताते हुए सभी कर्मचारियों एवं शोधार्थियों से आह्वान किया कि इस नेक कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हुए अपने अंगदान द्वारा रोगियों के जीवन के बचाव में अपना योगदान दें। उन्होंने राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के वेब पोर्टल के माध्यम से अपनी अंग और ऊतक दान की प्रतिज्ञा दर्ज किये जाने के लिए प्रेरित किया।

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