-नयी दिल्ली में आयोजित 22वीं ऑल इंडिया होम्योपैथिक कॉन्ग्रेस में डॉ गिरीश गुप्ता का सीकेडी पर व्याख्यान
सेहत टाइम्स
लखनऊ। यहां अलीगंज स्थित गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक व चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा है कि रिसर्च के परिणाम बताते हैं कि क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के रोगियों को होम्योपैथिक दवाओं से 1 वर्ष से 15 वर्षों तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मैं यह दावा नहीं कर रहा हूं कि किडनी रोगों को पूर्ण रूप से उपचारित किया जा सकता है। हां यह जरूर है कि होम्योपैथिक दवाओं से लम्बे समय तक किडनी को और ज्यादा खराब होने से रोका जा सकता है क्योंकि रिसर्च बताती है कि जिन रोगियों का इलाज किया गया उनमें कुछ को एक साल तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ी कुछ को दो साल, कुछ को तीन से पांच साल, कुछ को पांच से 15 साल तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट से दूर रखा जा सका।
डॉ गिरीश गुप्ता ने यह बात नयी दिल्ली के होटल हयात सेंट्रिक में 16 व 17 दिसम्बर को आयोजित 22वीं ऑल इंडिया होम्योपैथिक कॉन्ग्रेस के प्रथम दिन सीकेडी रोगियों के होम्योपैथिक उपचार पर किये गये अपने शोध के प्रेजेन्टेशन में कही। दो दिवसीय इस कॉन्ग्रेस का आयोजन दि होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की दिल्ली शाखा द्वारा किया गया, इसमें देश भर के सैकड़ों होम्योपैथिक चिकित्सक शामिल हुुए। डॉ गुप्ता ने कहा कि यद्यपि मैं अधिकतर क्लासिकल होम्योपैथी (जिसमें रोग के कारण का उपचार कर रोग को ठीक किया जा सकता है) का उपयोग करता हूं लेकिन सीकेडी के मरीजों का उपचार क्लासिकल होम्योपैथी (रोग की उत्पत्ति का कारण का इलाज कर रोग को समाप्त करना) की अवधारणा से नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सीकेडी के रोगी को कई तरह की दिक्कतें होती हैं जिन्हें एक दवा से नहीं ठीक किया जा सकता है, साथ में दूसरी एलोपैथिक दवाओं को देकर उन्हें कंट्रोल करना पड़ता है।
होम्योपैथिक उपचार बेहतर क्यों
डॉ गिरीश ने कहा कि अब सवाल यह उठता है कि दूसरी विधाओं विशेषकर ऐलोपैथी की तरह जब होम्योपैथिक में भी सीकेडी का स्थायी उपचार नहीं है तो आखिर होम्योपैथिक दवा करने का लाभ क्या है। इस बारे में डॉ गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथिक दवाओं का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे रोगी को एक वर्ष से 15 वर्षों तक डायलिसिस और ट्रांसप्लांट जैसी अत्यधिक खर्चीली व कष्टप्रद प्रक्रियाओं से दूर रखा जा सकता है, क्योंकि होम्योपैथिक दवाएं ऐलोपैथिक दवाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं और इन दवाओं से साइड इफेक्ट का डर भी नहीं रहता है।
रिसर्च के ये रहे हैं परिणाम
सीकेडी के मरीजों पर किये अपने शोध को प्रस्तुत करते हुए डॉ गिरीश ने स्लाइड के माध्यम से बताया कि जीसीसीएचआर में हुई रिसर्च बताती है कि होम्योपैथिक इलाज से एक से 15 साल तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट से दूर रखने में सफलता मिली है। डॉ गुप्ता ने बताया कि इस रिसर्च का प्रकाशन नेशनल जर्नल ऑफ होम्योपैथी में वर्ष 2015 वॉल्यूम 17, संख्या 6 के 189वें अंक में हो चुका है। उन्होंने बताया कि इलाज से पूर्व मरीज के रोग की स्थिति का आकलन उसकी सीरम यूरिया, सीरम क्रिएटिनिन और ईजीएफआर की रिपोर्ट को आधार मानते हुए किया गया साथ ही किडनी का साइज देखने के लिए अल्ट्रासाउंड भी कराया गया।
डॉ गिरीश ने बताया कि जिन 160 मरीजों पर शोध किया गया इनमें किसी भी रोगी की डायलिसिस नहीं हो रही थी, इन मरीजों में 109 रोगी 31 वर्ष से 60 वर्ष की आयु के थे, जबकि 30 वर्ष की आयु तक के 24 तथा 61 वर्ष की आयु से ऊपर वाले 27 मरीज थे। होम्योपैथिक उपचार के परिणामस्वरूप इनमें 151 मरीजों को एक से पांच साल तक तथा 9 मरीजों को पांच वर्ष से 15 वर्ष तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट से दूर रखना संभव हो सका।
समारोह में ऐसा भी क्षण आया
जब डॉ गिरीश गुप्ता ने अपना प्रेजेन्टेशन समाप्त कर दिया तो उसके बाद अचानक प्रयागराज में होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज संचालित करने वाले वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ एसएम सिंह ने विशेष अनुमति लेकर मंच पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि डॉ गिरीश गुप्ता के शोध कार्यों को मैंने इनके लखनऊ स्थित सेंटर पर देखा है, ये पूरी तरह वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर एक-एक दस्तावेज के साथ मरीजों का रिकॉर्ड रखते हैें, इनके सफल शोध कार्यों के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं। आपको बता दें कि डॉ गिरीश गुप्ता ने अपनी पीएचडी डॉ एसएम सिंह की गाइडेंस में ही की है, इस प्रकार डॉ एसएम सिंह डॉ गिरीश गुप्ता के गुरू हैं। डॉ गिरीश ने डॉ सिंह के इन आशीर्वचनों के लिए उनका हृदय से आभार जताया।