-होम्योपैथी की अवधारणा में मानसिक स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका
-स्वास्थ्य के आध्यात्मिक पहलू की पूर्ति करती है हमारी भारतीय सोच
-विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) के मौके पर डॉ गिरीश गुप्ता से वार्ता
सेहत टाइम्स
लखनऊ। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 7 अप्रैल को घोषित विश्व स्वास्थ्य दिवस का होम्योपैथी और भारतीय परिप्रेक्ष्य में विशेष महत्व है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो स्वास्थ्य की परिभाषा बतायी है उसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिकता और आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से स्वस्थ व्यक्ति ही पूर्ण स्वस्थ माना गया है। होम्योपैथी से उपचार की अवधारणा में मन:स्थिति की भूमिका (मानसिक स्वास्थ्य) अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी गयी है और स्प्रिचुअलटी को शामिल करने से भारतीय सोच पर मुहर लगती है, क्योंकि भारत में अध्यात्म का बोलबाला है।
यह बात विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) के अवसर पर यहां राजधानी लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने एक मुलाकात में कही। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने सबसे पहले स्वास्थ्य की परिभाषा बतायी कि absence of disease is health, लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि सिर्फ शरीर के स्वस्थ रहने से काम नहीं चलेगा तो उसमें मानसिक स्वास्थ्य को जोड़ कर नयी परिभाषा बतायी कि absence of physical and mental disease is health. हालांकि बाद में इसमें सोशल और स्प्रिचुअल और जोड़ा गया है इस तरह से वर्तमान में इसकी परिभाषा है physical, mental, social and spritual welbeing is health.
डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा कि मनुष्य के सम्पूर्ण स्वास्थ्य में मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है, मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अनेक प्रकार के शारीरिक रोगों का कारण व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, परिस्थितियों के चलते उसके अंदर पैदा हुए विचार होते हैं। यही वजह है कि लोगों में आत्महत्या के लिए उठने वाले आवेग को समाप्त करने में भी होम्योपैथिक दवाएं कारगर हैं।
डॉ गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथी में एक रोग की सैकड़ों दवाएं हैं, किस व्यक्ति को कौन सी दवा ज्यादा और सटीक तरीके से लाभ पहुंचायेगी यह उस व्यक्ति विशेष की प्रकृति, उसकी पसंद-नापसंद, उसके पूर्व के जीवनकाल और वर्तमान में उसकी मन:स्थिति की हिस्ट्री पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि क्लासिकल होम्योपैथी, जो होम्योपैथी के जनक डॉ हैनिमैन द्वारा प्रतिपादित है, में छोटे-छोटे लक्षणों को सही दवा के चुनाव के लिए आवश्यक माना गया है। इसीलिए होम्योपैथी में किसी रोग की एक दवा सभी को बराबर फायदा करे यह आवश्यक नहीं है, रोगी विशेष की हिस्ट्री के अनुसार चुनी गयी दवा सटीक फायदा करती है। उन्होंने कहा कि हमारे अनुसंधान केंद्र में रोगी के छोटे-छोटे लक्षणों को हमारी टीम पहले समझती है उसके बाद ही रोगी का इलाज शुरू किया जाता है।
डॉ गिरीश गुप्ता बताते हैं कि ऐसे-ऐसे रोगों को होम्योपैथी दवाओं से मात दी गयी है जिसका इलाज आधुनिक चिकित्सा विधि में सिर्फ सर्जरी है। स्त्रियों में होने वाले यूटेराइन फाइब्रॉयड (बच्चेदानी की गांठ), ओवेरियन सिस्ट (अंडाशय की रसौली), पीसीओडी, स्तन में गांठ जैसे रोगों के कारण महिलाओं की मानसिक स्थिति से जुड़े थे। इसके अतिरिक्त ल्यूकोडर्मा, सोरियासिस जैसे अनेक प्रकार के त्वचा रोगों के होने के कारणों में भी मानसिक स्थितियों की अहम भूमिका है। उन्होंने बताया कि आपको जानकर यह हैरानी होगी कि कई बार ऐसा होता है जब मरीज की हिस्ट्री ली जाती है तो कुछ कारण इस प्रकार के होते हैं जिन्हें मरीज या उनके घरवाले जाने-अनजाने बताते ही नहीं हैं, बाद में काफी पूछने पर ही वे खुलकर बताते हैं। उन्होंने बतायाकि होम्योपैथिक से इलाज करने के लिए जब तक होलिस्टिक एप्रोच यानी शरीर और मन को एक मानते हुए मनोदैहिक (psychosomatic) लक्षणों को नहीं जाना जायेगा, तब तक रोग होने के कारण तक नहीं पहुंच पायेंगे, और जब कारण ही नहीं जानेंगे तो दवा का चुनाव कैसे करेंगे।
डॉ गुप्ता ने शारीरिक रोगों के मानसिक कारणों के बारे में स्पष्ट करते हुए बतायाकि अपने दुर्भाग्य का डर, लाइलाज बीमारी का डर, कैंसर का डर, संकीर्ण जगह का डर, किसी न किसी के साथ रहने की इच्छा, जल्द नाराजगी, चिड़चिड़ापन, नीरसता, सोच की भिन्नता, संदेह, चिंता, घबराहट, सदमा, डरावना सपना, मानसिक आघात, तनाव जैसी चीजों से जब मस्तिष्क जूझ रहा होता है तो शरीर के हार्मोन्स डिस्टर्ब होते हैं। ये हार्मोन्स महिलाओं की बच्चेदानी, अंडाशय और स्तनों पर अपना असर डालते हैं, जिसके फलस्वरूप ट्यूमर/कैंसर जैसे रोगों का उदय होता है। इसी प्रकार त्वचा रोगों का कारण इम्यूनिटी सिस्टम का कमजोर होना पाया गया है।
ज्ञात हो स्त्री रोगों और त्वचा रोगों पर डॉ गिरीश गुप्ता द्वारा किये गये शोध विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नर्ल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। स्त्रियों के इन रोगों पर साक्ष्य आधारित शोधों के बारे में डॉ गुप्ता की लिखी पुस्तकों Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology और त्वचा रोगों के उपचार की रिसर्च के बारे में उनकी पुस्तक Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology में विस्तार से जानकारी दी गयी है।