-होम्योपैथिक दवाओं से किडनी रोगों के उपचार पर डॉ गिरीश गुप्ता की स्टडी छप चुकी है नेशनल जर्नल ऑफ होम्योपैथी में
-विश्व गुर्दा दिवस (9 मार्च) पर ‘सेहत टाइम्स’ की विशेष पेशकश
सेहत टाइम्स
लखनऊ। गुर्दा खराब होने की स्थिति में अगर गुर्दे को होने वाली आगे की खराबी रुक जाये, गुर्दा प्रत्यारोपण की नौबत न आये यहां तक कि डायलिसिस भी न करानी पड़े, तो यह लाभ भी किसी बड़ी राहत से कम नहीं है। जी हां, 2015 में हुई स्टडी में यह बात सामने आयी है, इस स्टडी का प्रकाशन प्रतिष्ठित नेशनल जर्नल ऑफ होम्योपैथी के वॉल्यूम 17, नम्बर 6, 189वां अंक, जून 2015 में हो चुका है। यह स्टडी गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक डॉ गिरीश गुप्ता ने की थी।
विश्व गुर्दा दिवस पर ‘सेहत टाइम्स’ ने अब तक करीब 500 से ज्यादा किडनी रोगियों का उपचार कर चुके डॉ गिरीश गुप्ता और डॉ गौरांग गुप्ता से इस विषय में विशेष बात की। डॉ गुप्ता बताते हैं कि वर्ष 2015 में नेशनल जर्नल ऑफ होम्योपैथी में छपी उनकी स्टडी, उनका अनुभव बताता है कि होम्योपैथी किडनी के पहले से क्षतिग्रस्त भाग को ठीक नहीं कर सकती है लेकिन इतना जरूर है कि बची हुई किडनी डायलिसिस के बिना लंबे समय तक अपना काम कर सकती है, यानी निकट भविष्य में जिस रोगी को डायलिसिस कराने की आवश्यकता पड़ने वाली थी, वह नहीं पड़ी। डॉ गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथिक दवाओं से ब्लड यूरिया, क्रियेटिनिन नियंत्रित रहता है और कम भी हो जाता है, गुर्दे की कार्यक्षमता (जीएफआर) बढ़ती है। उन्होंने कहा कि यहां मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि उपचार में होम्योपैथिक दवा तभी सटीक काम करती हैं, जब दवा का चयन सही हुआ हो, क्योंकि होम्योपैथी से उपचार में एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें दवा का चयन रोगी के मन और शरीर के लक्षणों को केंद्र में रखकर ही किया जाता है, यही कारण है कि इस पैथी में एक दवा सभी रोगियों को लाभ नहीं देती है, बल्कि अलग-अलग रोगियों को अलग-अलग दवा फायदा करती है।
ज्ञात हो आम तौर पर ऐलोपैथी में कहा जाता है कि गुर्दा रोग progressive और irreversible है। गुर्दा खराब होने की स्थिति में प्रथम विकल्प जो सामने आता है वह है डायलिसिस, इसके पश्चात एक सीमा के बाद चिकित्सक रोगी के गुर्दा प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं, ऐसे में प्रत्यारोपण के लिए कोई न कोई परिजन को अपना गुर्दा दान करना पड़ता है। भारी भरकम खर्च के बाद हुए प्रत्यारोपण के पश्चात मरीज को जीवन पर्यन्त दवाओं का सेवन तो बताया ही जाता है इसके साथ ही संक्रमण से बचाने के लिए मरीज पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं। मरीज जिन दवाओं को खाता है उनमें कुछ ऐसी दवाएं भी होती हैं जो इम्यून सिस्टम को भी प्रभावित करती हैं, नतीजा यह होता है कि दूसरे रोगों के हावी होने का खतरा भी मंडराया करता है। डायलिसिस से लेकर प्रत्यारोपण और बाद की मेन्टेनेंस में लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं।
होम्योपैथिक दवाओं से उपचार में खर्च को लेकर पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में डॉ गुप्ता कहते हैं कि आज के समय में मानकर चलिये कि दवाओं पर अधिक से अधिक एक हजार रुपये माह से ज्यादा खर्च नहीं होता है। इस प्रकार कुल मिलाकर देखा जाये तो किडनी रोगों में होम्योपैथिक इलाज सेहत और जेब दोनों दृष्टिकोण से अधिक लाभप्रद नजर आता है, इसलिए ऐसे मरीजों को निराश होने की आवश्यकता नहीं है, होम्योपैथी में एक अच्छा विकल्प मौजूद है।