-दूरदराज इलाकों में चिकित्सकों की गैर उपस्थिति में होने वाले प्रसवों में यह समस्या गंभीर

सेहत टाइम्स
लखनऊ। कुछ शिशुओं में जन्मजात शारीरिक विकृति या कमी पायी जाती है, इन कमियों को साधारणत: बच्चे के जन्म के समय ही चिकित्सक देख लेती हैं और पीडियाट्रिक सर्जन के पास बच्चे को रेफर कर देती हैं लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब बच्चे के जन्म के समय चिकित्सक की मौजूदगी नहीं होती है, ऐसे में जब शिशु दो-दो दिन पॉटी नहीं करता, उसकी सांस फूलने लगती है, उल्टी होती रहती है, तब ऐसे बच्चों को रेफर किया जाता है, वास्तव में कुछ बच्चों के जन्म से ही मलद्वार नहीं बना होता है, या नाक के छेद में अवरोध होता है। ये वे ही बच्चे होते हैं, चूंकि तब तक काफी समय बीत चुका होता है ऐसे में बच्चे की स्थिति खराब होती जाती है, वह संक्रमण का शिकार हो जाता है, ऐसे बच्चों को बचाने में बहुत दिक्कत आती है।
यह जानकारी केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जन व आईएमए के प्रेसीडेंट इलेक्ट डॉ जेडी रावत ने अपने व्याख्यान में दी। व्याख्यान का विषय मैनेजमेंट ऑफ कॉमन पीडियाट्रिक सर्जिकल कंडीशन था। ज्ञात हो इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा द्वारा यहां आईएमए भवन में आज आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एवं एक वृहद सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम में लगभग 27 विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुतिकरण दिया गया।
डॉ रावत ने कहा कि दूरदराज इलाकों में चिकित्सक की गैर उपस्थित में पैदा होने वाले शिशुओं में पायी जाने वाली जन्मजात दिक्कतों को किस तरह से शीघ्र पहचाना जाये और साथ ही उसे रेफर करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाये, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे बच्चे न तो ज्यादा सर्दी झेल पाते हैं और न ही ज्यादा गर्मी। उन्हें प्लास्टिक में रैप करके या कॉटन की शीट में गर्दन तक बांध कर या कस्टम मेड कपड़े में रखकर अस्पताल रेफर करना चाहिये।
डॉ रावत ने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि किसी भी चिकित्सक की देखरेख में बच्चों की डिलीवरी होनी चाहिये क्योंकि साधारणत: चिकित्सक शिशु के पैदा होते ही उसकी नाक और पाखाने के रास्ते में ट्यूब डालकर चेक कर लेता है कि सब कुछ नॉर्मल है अथवा नहीं, अगर नॉर्मल नहीं होता है तो सर्जन के पास सावधानी बरतते हुए जल्दी से जल्दी रेफर कर देता है ताकि बच्चे की जान को खतरा न हो। उन्होंने कहा कि उनके पास ऐसे केस आते हैं जिनकी डिलीवरी चिकित्सक की उपस्थिति में होती है या फिर उनका अल्ट्रासाउंड हो चुका होता है, तो उन बच्चों के बारे में जल्दी पता चल जाता है लेकिन जिन बच्चों की पैदाइश चिकित्सकों की मौजूदगी में नहीं होती है उन्हें उनके पास पहुंचने में काफी देर हो जाती है।

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