जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 67
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 67वीं कहानी – ईश्वर की पूजा
मन को वश करके प्रभु चरणों मे लगाना बड़ा ही कठिन है। शुरुआत में तो यह इसके लिए तैयार ही नहीं होता है, लेकिन इसे मनाएं कैसे?
एक शिष्य थे किन्तु उनका मन किसी भी भगवान की साधना में नहीं लगता था और साधना करने की इच्छा भी मन में थी।
वे गुरु के पास गये और कहा कि गुरुदेव मन लगता नहीं और साधना करने का मन होता है। कोई ऐसी साधना बताए जो मन भी लगे और साधना भी हो जाये।
गुरु ने कहा तुम कल आना। दूसरे दिन वह गुरु के पास पहुंचा तो गुरु ने कहा सामने रास्ते मे कुत्ते के छोटे बच्चे हैं उसमे से दो बच्चे उठा ले आओ और उनकी हफ्ताभर देखभाल करो।
गुरु के इस अजीब आदेश को सुनकर वह भक्त चकरा गया लेकिन क्या करे, गुरु का आदेश जो था।
वह दो पिल्लों को पकड़ कर लाया लेकिन जैसे ही छोड़ा वे भाग गये। वह फिरसे पकड़ लाया लेकिन वे फिर भागे।
अब उसने उन्हें पकड़ लिया और दूध-रोटी खिलायी। अब वे पिल्ले उसके पास रमने लगे।
हप्ताभर उन पिल्लों की ऐसी सेवा यत्नपूर्वक की कि अब वे उसका साथ छोड़ नहीं रहे थे। वह जहां भी जाता पिल्ले उसके पीछे-पीछे भागते, यह देख गुरु ने दूसरा आदेश दिया कि इन पिल्लों को भगा दो।
भक्त के लाख प्रयास के बाद भी वह पिल्ले नहीं भागे तब गुरु ने कहा देखो बेटा शुरुआत मे ये बच्चे तुम्हारे पास रुकते नहीं थे लेकिन जैसे ही तुमने उनके पास ज्यादा समय बिताया ये तुम्हारे बिना रहने को तैयार नहीं हैं।
ठीक इसी प्रकार खुद जितना ज्यादा वक्त भगवान के पास बैठोगे, मन धीरे-धीरे भगवान की सुगन्ध, आनन्द से उनमें रमता जायेगा।
हम अक्सर चलती-फिरती पूजा करते हैं तो भगवान में मन कैसे लगेगा?
जितनी ज्यादा देर ईश्वर के पास बैठोगे उतना ही मन ईश्वर रस का मधुपान करेगा और एक दिन ऐसा आएगा कि उनके बिना आप रह नहीं पाओगे।
शिष्य को अपने मन को वश में करने का मर्म समझ में आ गया और वह गुरु आज्ञा से भजन सुमिरन करने चल दिया।
बिन गुरु ज्ञान कहां से पाऊं