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क्रोध के दो मिनट

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 48 

डॉ भूपेन्द्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 48वीं कहानी –  क्रोध के दो मिनट

एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही ।

पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती पत्नी को मां-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया।

परदेस में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया।

सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई।

पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया।

उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था।

सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नहीं है।

मैं यहां ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है।

सेठ ने सोचा ‘इस देश में मैने बहुत धन कमाया है,

और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए।’

उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई।

उस व्यक्ति ने कहा-मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं हैं।

सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था..

लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दीं।

व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया-

कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रुककर सोच लेना। सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया।

कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय सेठ अपने नगर को पहुंचा।

उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूं तो क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुंच कर उसे सरप्राईज (आश्चर्य उपहार) दूं।

घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया तो वहां का नजारा देखकर…

उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई।

पलंग पर उसकी पत्नी के साथ एक युवक सोया हुआ था।

अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ…

दोनों को जिन्दा नहीं छोड़ूंगा।

क्रोध में तलवार निकाल ली।

वार करने ही जा रहा था कि इतने में ही उसे 500 स्वर्ण मुद्राओं से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आ गया कि कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना…सोचने के लिए रुका।

तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई।

बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई।

जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह ख़ुश हो गई और कहा-आपके बिना जीवन सूना-सूना था।

इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूं।

सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को देखकर क्रोधित था।

पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा उठ जाग, तेरे पिता आए हैं।

युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी पैरों में गिर गई।

उसके लम्बे बाल बिखर गए। सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है। पिता के बिना इसके मान को कोई आंच न आए इसलिए मैंने इसे बचपन से पुत्र के समान ही पालन पोषण और संस्कार दिए हैं।

यह सुनकर सेठ की आंखों से अश्रुधारा बह निकली।

पत्नी और बेटी को गले लगाकर सोचने लगा कि यदि आज मैंने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता।

मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता।

ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे बेहद महंगा लग रहा था लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो 500 स्वर्ण मुद्राएं बहुत कम हैं।

‘ज्ञान तो अनमोल है ‘

इस कहानी का सार यह है कि जीवन में जो दुःखों से बचाकर सुख की बरसात कर सकते हैं। वे हैं क्रोध के दो मिनट।

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