जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 14
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 14वीं कहानी – रटने से जरूरी समझना
एक सन्त के आश्रम में एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया और उसे पिंजरे में रख लिया। सन्त ने कई बार शिष्य से कहा कि “इसे यों कैद न करो। परतन्त्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है।”
किन्तु शिष्य अपने बालसुलभ कौतूहल को न रोक सका और उसे अर्थात् तोते को पिंजरे में बन्द किये रहा।
तब सन्त ने सोचा कि “तोता को ही स्वतंत्र होने का पाठ पढ़ाना चाहिए”
उन्होंने पिंजरा अपनी कुटी में मंगवा लिया और तोते को नित्य ही सिखाने लगे- ‘पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ।’
कुछ दिन में तोते को वाक्य भली-भांति रट गया। तब एक दिन सफाई करते समय भूल से पिंजरा खुला रह गया। सन्त कुटी में आये तो देखा कि तोता बाहर निकल आया है और बड़े आराम से घूम रहा है साथ ही ऊंचे स्वर में कह भी रहा है- “पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ।”
सन्त को आता देख वह पुनः पिंजरे के अन्दर चला गया और अपना पाठ बड़े जोर-जोर से दोहराने लगा। सन्त को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ, साथ ही दुःख भी।
वे सोचने लगे कि “इसने केवल शब्द को ही याद किया। यदि यह इसका अर्थ भी जानता होता- तो यह इस समय इस पिंजरे से स्वतंत्र हो गया होता।
मित्रों ऐसा हमारे साथ भी कई बार होता है, स्कूल में लिखाये गये नोट्स बच्चों को याद करने के लिए कहा जाता है, अच्छा होगा कि हम उस नोट्स में लिखी बात को बच्चे को समझायें जिससे कि अगर उस विषय में प्रश्न घुमा-फिराकर भी पूछ लिया जाये तो हमारा बच्चा उसका उत्तर लिख सके। अपने बच्चों को रटने वाला तोता नहीं बल्कि समझने वाला इंसान बनायें…