-विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर केजीएमयू में वर्चुअली आयोजित की गयी संगोष्ठी
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। कोविड-19 काल का असर एचआईवी/एड्स को समाप्त करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए किये जा रहे कार्यों पर भी पड़ा है, ऐसे में आवश्यकता है कि अब लॉकडाउन के बाद से धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही गतिविधियों के बीच कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए हम एक बार फिर से युद्ध स्तर पर एचआईवी उन्मूलन के लिए किये जा रहे प्रयासों को गति प्रदान करें जिससे वर्ष 2030 तक एचआईवी उन्मूलन के लिए निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति कर सकें।
यह संदेश विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर केजीएमयू में आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी में दिया गया। इस संगोष्ठी का आयोजन फैकल्टी ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज के तत्वावधान में किया गया। संगोष्ठी में कुलपति ले.ज.(डा.) बिपिन पुरी ने अपने संदेश में कहा कि कोरोना काल में एचआईवी मरीजों को बहुत बच कर रहने की जरूरत है, क्योंकि एचआईवी मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है, और कोविड-19 संक्रमण कमजोर प्रतिरोधक क्षमता को शीघ्र पकड़ लेता है।
केजीएमयू के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और पैरामेडिकल साइंसेज के डीन डॉ विनोद जैन ने कहा कि कोविड काल में एचआईवी उन्मूलन के प्रयासों के लिए की जाने वाली नियमित गतिविधियों में बाधा पहुंची जिसकी वजह से 2020 का लक्ष्य हासिल नहीं कर सके ऐसे में अब आवश्यकता है कि अपने प्रयासों को और गति दी जाये। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वर्ष 2025 तक एचआईवी उन्मूलन के लक्ष्य की समय सीमा अब बढ़ाकर सन 2030 कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि कोविड काल के चलते एचआईवी मरीजों का उपचार प्रभावित न हो इसके लिए सलाह दी गयी है कि दवा के लिए मरीजों को केंद्र पर बार-बार बुलाने के बजाय उन्हें कई महीनों की दवा उपलब्ध करा दी जाये जिससे दवा समाप्त होने पर उनकी दवा ब्रेक न हो।
डॉ विनोद जैन ने कहा कि अब तक पूरे विश्व में 3.3 करोड़ लोगों की एड्स से मृत्यु हो चुकी है। उन्होंने एड्स का खतरा आपस में यौन संबंध बनाने वाले पुरुषों, नशे के इंजेक्शन लेने वालों, सेक्स वर्कर्स, ट्रांसजेंडर्स और कैदियों में ज्यादा देखा गया है। उन्होंने कहा कि जिस जनसंख्या में एड्स का जोखिम ज्यादा है उन पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाए। अस्पतालों में नर्सेज, मिडवाइव्स और पैरामेडिक्स को इससे बचाया जाये। डॉ जैन ने बताया कि एड्स का अब तक कोई उपचार नहीं खोजा गया है लेकिन दवाओं से पूरी जिंदगी एड्स को बढ़ने से रोका जा सकता है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2000 से 2019 की अवधि में एचआईवी संक्रमण की दर 39% तथा इससे होने वाली मृत्यु की दर 51% कम हुई है। वर्ष 2019 में पूरे विश्व में 3.8 करोड़ लोग एचआईवी/एड्स से ग्रस्त होकर जीवन जी रहे थे। इस एक साल में 17 लाख नये केस आये जबकि 6.9 लाख की मृत्यु हुई।
पहली बार अमेरिका में गे समुदाय में पाया गया था एड्स
संगोष्ठी में गेस्ट स्पीकर वरिष्ठ परामर्शदाता स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मोनिका मिश्रा ने कहा कि हमें एचआईवी से भयभीत नहीं होना है, इसका प्रबंधन सम्भव है, उन्होंने कहा कि हमें सतर्क रहना है और आजकर के कोरोना काल में बचाव पर अधिक ध्यान देना है। उन्होंने कहा कि एचआईवी हमारे शरीर की सीडी सेल्स को प्रभावित करता है और यदि इनकी संख्या 200 प्रति माइक्रोलीटर से कम होती है तो यह घातक स्थिति होती है। एड्स का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले 1982 में अमेरिका में गे कम्युनिटी में यह पाया गया था।
उन्होंने कहा कि भारत में यह तीसरी बड़ी महामारी है। वर्ष 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 31.4 लाख लोग एचआईवी/एड्स से पीड़ित थे, इनमें सबसे अधिक महाराष्ट्र में और दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश में लोग प्रभावित थे। डॉ मोनिका ने इसके प्रभाव के बारे में बताया कि यह व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर डालता है। इसका संक्रमण गर्भावस्था में, जन्म देने पर तथा स्तनपान कराने पर मां से बच्चे में हो सकता है। उन्होंने कहा कि एड्स रोगी की लार, आंसू और उल्टी में एचआईवी वायरस नहीं होता।
डॉ मोनिका ने इससे बचाव के लिए उन्होंने बताया की रक्त की जांच नियमित रूप से कराते रहना चाहिए, सुरक्षित यौन संबंध बनायें, इस्तेमाल की हुई सुई को दूसरे मरीज को न लगाएं। एक व्यक्ति के टूथ ब्रश का इस्तेमाल दूसरा व्यक्ति न करे, सड़क के किनारे बैठने वाले नाई से हेयर कटिंग या शेव न करवायें, न ही ऐसे लोगों से मालिश करायें। कार्यक्रम का संचालन विवेक गुप्ता ने तथा अन्त में धन्यवाद भाषण मंजरी शुक्ला ने दिया।