-गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथी रिसर्च को मिली सफलता
-होम्योपैथी में है बहुत दम, जरूरत है सही दवा के चुनाव की
-नामचीन होम्योपैथी चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्त से विशेष बातचीत
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। होम्योपैथी की मीठी गोलियां जिन्दगी के कड़वे से कड़वे दर्द को किस तरह बेदर्द बना देती हैं यह अपने अनुसंधान से दिखाया है राजधानी लखनऊ के गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथी रिसर्च के नामचीन होम्योपैथी चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्त ने। 37 वर्ष से प्रैक्टिस कर रहे डॉ गिरीश गुप्त ने ऐसे-ऐसे रोगों को होम्योपैथी दवाओं से मात दी है जिसका इलाज आधुनिक चिकित्सा विधि में सिर्फ सर्जरी है। ऐसे रोगों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है इन्हीं में से एक यूटेराइन फाइब्रॉइड यानी बच्चेदानी की गांठ रोग है। डॉ गुप्त ने अपने अनुसंधान से बच्चेदानी की गांठ का सफल उपचार करने में सफलता पायी है। इस सम्बन्ध में स्त्री रोगों के उपचार में सफल अनुसंधानों के बारे में प्रकाशित किताब Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology में विस्तार से जानकारी दी गयी है।
इस अनुसंधान के बारे में जानने के लिए ‘सेहत टाइम्स’ ने डॉ गिरीश गुप्ता से बातचीत की। डॉ गिरीश ने बताया कि 2 अक्टूबर, 1982 से मैंने प्रैक्टिस शुरू की थी तथा 1995 में अनुसंधान के लिए गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथी रिसर्च की स्थापना की। इसकी स्थापना का उद्देश्य ही यही था कि जटिल से जटिल रोगों को होम्योपैथी दवाओं से ही ठीक किया जाये। उन्होंने बताया कि दरअसल मानसिक दिक्कतों के कारण अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं, बच्चेदानी की गांठ की बात करें तो तनाव, चिंता, घबराहट, सदमा, डरावना सपना, अत्यधिक चिंता, मानसिक आघात, लगातार तनाव जैसी चीजों से जब मस्तिष्क जूझ रहा होता तो शरीर के हार्मोन्स डिस्टर्ब होते हैं। ये हार्मोन्स महिलाओं की बच्चेदानी, अंडाशय और स्तनों पर अपना असर डालते हैं, जिसके फलस्वरूप ट्यूमर/कैंसर जैसे रोगों का उदय होता है।
बच्चेदानी की गांठ के सफल इलाज के लिए की गयी अपनी रिसर्च के बारे में उन्होंने बताया कि 1995 से अक्टूबर 2011 तक इस शिकायत वाली 630 महिलाओं का पंजीकरण किया गया। अल्ट्रासोनोग्राफी में इन सभी महिलाओं की बच्चेदानी में एक या एक से ज्यादा गांठ होने की पुष्टि हुई। उन्होंने बताया कि इसके बाद इन महिलाओं से जानने की कोशिश की गयी कि उन्हें किन-किन प्रकार की चिंतायें हैं, लक्षणों और व्यवहार के हिसाब जब इनका उपचार किया गया तो उनमें आश्चर्यजक सुधार दिखना शुरू हो गया।
इस अनुसंधान के परिणाम के बारे में डॉ गिरीश ने बताया कि 214 महिलाओं में ये गांठ बिल्कुल समाप्त हो गयी जबकि 201 में सुधार जारी दिखा लेकिन इसकी गति धीमी थी, इसके अलावा 82 महिलाओं में गांठ न बढ़ी, न घटी तथा 133 महिलाओं में गांठ का साइज बढ़ा दिखा। डॉ गुप्ता ने कहा कि मरीजों के व्यवहार, मन:स्थिति के बारे में सारी जानकारी जुटा कर ही उपचार की दिशा तय कर हम लगातार अनुसंधान कार्य में लगे हुए हैं। डॉ गु्प्ता ने कहा कि 630 में से 214 महिलाओं को पूरा लाभ मिलना भी कम उपलब्धि की बात नहीं है लेकिन उससे भी ज्यादा चुनौती हमारे लिए बचे हुए वे केस हैं जिनकी गांठ कम गली, या वैसी ही रही अथवा बढ़ गयी, इस पर कार्य जारी है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस दिशा में भी सफलता हमें दिखेगी।
डॉ गुप्त ने बताया कि अनुसंधान में पाया गया कि अविवाहित की अपेक्षा विवाहित महिलाओं में बच्चेदानी की गांठ होने के केस ज्यादा पाये गये हैं, इन 630 महिलाओं में 92.38 प्रतिशत यानी 582 विवाहित तथा 7.62 फीसदी यानी 48 अविवाहित थीं। आयु की बात करें तो इनमें सबसे ज्यादा 521 महिलाओं की उम्र 21 से 50 वर्ष की आयु के बीच थी, जबकि 50 वर्ष से ऊपर की 32 व 20 वर्ष तक की 9 लड़कियां शामिल थीं। डॉ गिरीश ने बताया कि सभी मरीजों की डायग्नोसिस रिपोर्ट्स जाने-माने सेंटर्स पर करायी गयी हैं, जिससे जांच के परिणाम की गुणवत्ता न प्रभावित हो।
यह पूछने पर कि आम तौर पर माना जाता है कि होम्योपैथी दवायें बड़े रोगों के उपचार में कारगर नहीं है, इस पर डॉ गुप्ता का कहना है कि ऐसा नहीं है, होम्योपैथी में दवायें तो हैं लेकिन उन दवाओं में किस रोगी को कौन सी दवा देनी है, यह रोगी विशेष को होने वाले लक्षणों पर निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि दरअसल ऐसा है कि होम्योपैथी में इलाज रोग का नहीं रोगी का किया जाता है, इसलिए इसमें कोई दवा ऐसी नहीं होती है जिसे कहा जा सके कि यह फलां रोग के लिए है, हमारे अनुसंधान केंद्र में रोगी के छोटे-छोट लक्षणों को हमारी टीम पहले समझती है उसके बाद ही इलाज शुरू किया जाता है। उन्होंने कहा कि उदाहरण स्वरूप यह समझिये कि ब्रेस्ट में, गर्भाशय में, अंडाशय में गांठ का कारण मरीज का किसी चीज से डरना, मन में कोई डर का बैठ जाना, चिंताग्रस्त होना, तनाव रहना, सदमा, फोबिया आदि भी होता है। जरूरत होती है इन लक्षणों को समझकर दवा का चुनाव करने की।