बच्चों की 40 प्रतिशत चोटों का नहीं हो पाता है समय से इलाज
लखनऊ. हमारे देश में ट्रामा यानी एक्सीडेंट के दौरान विशेषकर बच्चों को लगने वाली चोटों की आकस्मिक चिकित्सा के प्रबंधन की स्थिति बहुत ख़राब है. हालत यह है कि प्रति वर्ष 14 वर्ष से कम आयु वाले 22000 बच्चों की मौत एक्सीडेंट में हो जाती हैं, वहीँ लगभग 8 लाख 80 हजार बच्चों के कोई न कोई अंग हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त हो जाते हैं.
यह महत्वपूर्ण जानकारी आज विश्व ट्रामा दिवस पर केजीएमयू के पीडियाट्रिक ओर्थोपेडिक विभाग के हेड डॉ. अजय सिंह ने दी. उन्होंने बताया कि यह आंकड़े नेशनल क्राइम ब्यूरो द्वारा 2016 में जारी किये गए हैं. उन्होंने बताया कि 10 वर्षों में देश में ट्रामा केसेस की संख्या जबरदस्त तरीके से 64 प्रतिशत बढ़ गयी है.
डॉ.अजय सिंह ने बताया कि शोचनीय विषय यह है देश में बच्चों के ट्रामा के इलाज के लिए कोई विशेष ट्रेनिंग की व्यवस्था नहीं है. यहाँ बच्चों का एक्सीडेंट होने पर भी वही डॉक्टर इलाज करते हैं जो बड़ों का इलाज करते हैं. जबकि विदेशों में बच्चों के ट्रामा में इलाज करने वाले चिकित्सक अलग होते हैं. उन्होंने बताया कि यह जानकर आश्चर्य होगा कि अपने देश में बच्चों और बड़ो के ट्रामा के इलाज की अलग व्यवस्था न होने से करीब 40 प्रतिशत चोटों का इलाज समय से नहीं हो पाता है. उन्होंने बताया कि दरअसल बड़ों और बच्चों का इलाज एक ही डॉक्टर करता है तो अनेक बार मिस इंजरी यानी चोटों का इलाज छूट जाना हो जाता है. उन्होंने बताया कि दरअसल होता यह है कि बच्चों की बहुत सी चोटों के बारे में बच्चे खुद तो बता नहीं पाते हैं और एक ही डॉक्टर बड़ों और बच्चों की चिकित्सा करते-करते अपने आप समझ नहीं पाता है. जबकि यदि बच्चों के ट्रामा में इलाज करने के सर्जन अलग होंगे तो उन्हें इन चोटों को पहचानने की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे उन चोटों का समय से इलाज हो जाता है.
डॉ. अजय सिंह ने बताया कि वह कोलम्बो में 13 से 15 अक्टूबर में हुई वर्ल्ड एकेडमिक कांग्रेस में भारत का प्रतिनिधित्व करने गए थे. इसमें यूएसए, श्रीलंका, घाना, यूएई, जापान, टर्की, क़तर, सिंगापुर, मलेशिया और स्वीडन के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया था. उन्होंने बताया कि इस सम्मलेन में विकासशील देशों में बढ़ते ट्रामा पर चिंता जताई गयी तथा कहा गया कि इन देशों को ऐसी योजनायें बनानी चाहिए जिससे ट्रामा की दर में कमी आये.
उन्होंने बताया कि देश में इस तरह के सुधार के लिए मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया की ओर से मेडिकल कॉलेजों में ट्रामा के स्पेशलिस्ट डॉक्टर को तैयार करने के लिए ऐसे कोर्स शुरू करने की इजाजत देनी होगी. इसका पूरा खाका तैयार करना होगा.