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सफेद दाग को लेकर लोगों में अनेक भ्रांतियां, जानें क्‍या है सच्‍चाई

विटिलिगो या ल्‍यूकोडर्मा को लेकर महत्‍वपूर्ण जानकारी दी डॉ गौरांग गुप्‍ता ने  

डॉ गौरांग गुप्ता

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। सफेद दाग को लेकर लोगों में बहुत तरह की भ्रांतियां हैं। भ्रांति नम्‍बर 1 –लोग समझते हैं कि सफेद दाग हो गया है तो यह विटिलिगो या ल्‍यूकोडर्मा ही है। भ्रांति नम्‍बर 2- शरीर में किसी एक जगह होने पर यह पूरे शरीर में फैलता है। भ्रांति नम्‍बर 3- विटिलिगो जिसे हो जाता है तो आगे चलकर उसके बच्‍चों में भी जरूर होता है। भ्रांति नम्‍बर 4- विटिलिगो से ग्रस्‍त व्‍यक्ति को सफेद और खट्टी चीजें नहीं खानी चाहिये भ्रांति नम्‍बर 5- शरीर पर इसके बढ़ने की रफ्तार बहुत ज्‍यादा है। भ्रांति नम्‍बर 6- यह संक्रामक रोग है आदि-आदि। इन सभी भ्रांतियों को दिमाग से निकाल देना चाहिये क्‍योंकि ये सब तथ्‍यहीन हैं, गलत हैं। इसका कोई प्रमाण नहीं है।

बड़ी राहत देने वाली यह बेबाक टिप्‍पणी है गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के कंसल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता की। सफेद दाग को लेकर लोगों में फैले भ्रम पर डॉ गौरांग गुप्ता ने ‘सेहत टाइम्‍स‘ से विस्‍तार से बात की और इन भ्रांतियों के पीछे की सच्चाई बतायी। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम तो यह समझ लेना चाहिये कि हर सफेद दाग विटिलिगो या ल्‍यूकोडर्मा नहीं होता है, सफेद दाग होने के बहुत से कारण हैं उनमें से एक विटिलिगो भी है। चलिये अगर मान लीजिए कि विटिलिगो हो भी गया तो यह ठीक भी हो सकता है।

उन्होंने बताया कि हमारे पास जब मरीज पहुंचता है तो हम सबसे पहले सफेद दाग को देखते हैं उसे देखने पर यह समझ आ जाता है कि यह विटिलिगो है अथवा नहीं। इसके लिए मरीज की हिस्‍ट्री ली जाती है तथा देखा जाता है कि दाग कितने साइज का है, कितने समय से है, और क्‍या यह दाग आता-जाता रहता है। उन्‍होंने बताया कि बहुत से सफेद दाग ऐसे होते हैं जिनका अगर कोई इलाज न किया जाए तो स्वत: ठीक हो जाते हैं।

डॉ गौरांग ने बताया कि अनेक माता-पिता अपने बच्‍चों को लेकर क्‍लीनिक पर हल्‍के सफेद दाग होने की शिकायत लेकर चिंतित होकर आते हैं। जबकि वह दाग विटिलिगो नहीं होते हैं। उन्‍होंने बताया कि कई बच्चों में इम्युनिटी कमजोर होने पर चेहरे पर हल्‍के सफेद दाग पड़ जाते हैं, बरसाती मौसम में, या मौसम बदलने पर तथा पेट में कीड़े होने पर भी ऐसा हो सकता है लेकिन लोग घबरा कर उसे विटिलिगो समझने लगते हैं, जबकि वह सफेद दाग pityriasis alba या mycosis (fungal infection) अथवा pityriasis versicolor की वजह से होता है।

अनुवांशिक होने की संभावना न के बराबर

उन्होंने कहा इसी प्रकार लोगों में यह धारणा बैठी हुई है कि विटिलिगो अनुवांशिक बीमारी है, और अगर किसी को हो गई तो उसके बच्चों को भी होगी, इस डर के चलते ऐसे परिवार में शादी विवाह तय करने में भी कतराने लगते हैं, तय की हुई शादी तोड़ देते हैं। डॉ गौरांग ने कहा कि इस बात को समझने की जरूरत है कि अगर किसी को विटिलिगो हो गया है तो वह अनुवांशिक ही होगा यह आवश्यक नहीं है इसकी संभावना न के बराबर है। जिन लोगों को विटिलिगो होता है उनमें सैकड़ों लोगों में किसी एक में यह अनुवांशिक होता है। उन्होंने बताया की अनुवांशिक का अर्थ सामान्यत: यह होता है कि किसी बीमारी का हर पीढ़ी में पाया जाना, यानी जिस व्‍यक्ति को विटिलिगो है, उसके माता-पिता की पीढ़ी या बाद की पीढ़ी में अगर विटिलिगो नहीं है तो इसका अर्थ है यह अनुवांशिक नहीं है।

विटिलिगो : इलाज से पूर्व एवं इलाज के बाद की फोटो
 

खाने-पीने में कोई परहेज आवश्‍यक नहीं

उन्होंने बताया कि इसी प्रकार लोगों में भ्रम है कि खाने-पीने की चीजें सफेद दाग को बढ़ाती हैं या इलाज में बाधा डालती हैं। लोगों में यह भी धारणा है कि खट्टी और सफेद चीजें जैसे नींबू, अचार, संतरा, कैरी, कमरख, दूध, नमक, पनीर, छेना, चावल, दही जैसी चीजें नहीं खानी चाहिए, लेकिन यह भ्रांति है, ये चीजें विटिलिगो पर कोई असर नहीं डालती हैं। उन्होंने कहा कि इसके पीछे का मेरा तर्क यह है कि अगर इन चीजों का परहेज करने से दाग घटने लगे या बढ़ना रुक जाये अथवा इन चीजों को खाने से दाग बढ़ने लगे तो इस बात के बारे में सोचा जा सकता है लेकिन हम लोगों ने देखा है कि दोनों ही स्थितियों में कोई फर्क नहीं पड़ता है बल्कि परहेज करने से न्‍यूट्रीशन की कमी हो जाती है जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जो रोग ठीक होने में बाधा उत्‍पन्‍न करती है, साथ ही इन चीजों पर रोक लगाने से मरीज का मन और उदास हो जाता है, उन्‍होंने बताया कि ऐसे-ऐसे मरीज आते हैं जो कहते हैं कि उन्‍होंने एक साल से ये सभी चीजें नहीं खायीं, हम लोग जब इलाज करते हैं तो इन चीजों को खाने से नहीं रोकते हैं, इसके बावजूद मरीज ठीक होते हैं।

पूरे शरीर में फैलने का डर बना रहता है लोगों के मन में

उन्‍होंने बताया कि मोटे तौर पर विटिलिगो vitiligo दो प्रकार का होता है। पहला focal या segmental यानि शरीर के किसी एक हिस्से में होना। दूसरा प्रकार generalized या universal जो पूरे शरीर में फैलता है। लोगों में भ्रांति है कि अगर शरीर के एक हिस्से में विटिलिगो है तो पूरे शरीर में न फैल जाए। उन्होने स्पष्ट किया कि focal/segmental विटिलिगो generalized/universal में परिवर्तित नहीं होता है। इसलिए जिन लोगों को  शरीर के एक हिस्से में विटिलिगो है उन्हें यह समझना चाहिए की उनका विटिलिगो फैलने वाला नहीं है। 

विटिलिगो के तेजी से बढ़ने के डर से चिंतित रहते हैं लोग

लोगों में यह भी भय है कि सफ़ेद दाग तेजी से न बढ़ जाए। इस पर डॉ॰ गौरांग ने कहा कि विटिलिगो के घटने या बढ़ने की गति लगभग समान रहती है। अगर यह किसी व्‍यक्ति में तेजी से फैलता है तो दवाओं से उतनी ही तेजी से घटता भी है, इसी प्रकार जिन लोगों में यह धीमे बढ़ता है उनमें उपचार से यह घटता भी धीरे-धीरे ही है। डॉ गौरांग ने बताया कि इसी प्रकार बहुत से लोगों को लगता है कि विटिलिगो छुआछूत या संक्रमण की बीमारी है, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। 

होम्‍योपैथिक दवाओं से हो सकता है ठीक

विटिलिगो होने के कारणों के बारे में डॉ गौरांग ने बताया कि शरीर में जो सेल्स पिगमेंट बनाते हैं, उनमें जब गड़बड़ हो जाती है तो सफेद दाग होते हैं। डॉ गौरांग ने बताया कि उनके सेंटर जीसीसीएचआर पर विटिलिगो वाले मरीजों पर स्टडी की गयी थी, जो कि जर्नल में भी छप चुकी है, स्‍टडी के अनुसार 1995 से 2016 तक विटिलिगो के कुल 817 मरीजों का इलाज किया गया जिनमें 94 लोग पूरी तरह से ठीक हो गये, जबकि 303 लोगों में काफी हद तक सुधार हुआ (इनमें वे लोग भी हैं जिनमें एक छोटी सी बिंदी जैसी भी रह गयी थी)। इसी प्रकार 305 लोगों को दवाओं से कोई फर्क नहीं पड़ा, यानी कि न तो उनके दाग घटे और न ही बढ़े। जबकि 115 लोग ऐसे थे जिन्‍हें दवा से लाभ नहीं हुआ। इस तरह अगर पूरी तरह से ठीक और काफी हद तक ठीक श्रेणी को जोड़ लिया जाये तो करीब 50 प्रतिशत रोगियों को होम्‍योपैथिक दवाओं से लाभ होना देखा गया है।

डॉ गौरांग ने की अपील

डॉ गौरांग ने विटिलिगो का इलाज करने वाले डॉक्‍टरों सहित सभी से अपील की है कि लोगों के मन में विटिलिगो को लेकर फैले डर और भ्रांतियां दूर करने में मदद करें। लोगों को जागरूक करें कि पहली बात तो यह है कि विटिलिगो होना बहुत आम नहीं है, सभी सफेद दाग विटिलिगो नहीं होते हैं। मान लिया कि विटिलिगो अगर हो भी गया है तो इसके ठीक होने के की संभावना लगभग 50% है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद एक महत्‍वपूर्ण बात यह है कि बचे हुए 50 प्रतिशत की श्रेणी वाले जिन लोगों में यह ठीक नहीं भी हुआ है तो भी इसकी वजह से उनके स्‍वास्‍थ्‍य को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है, यह उसी तरह है कि कोई गोरा है, कोई काला है, कोई सांवला है। उन्‍होंने कहा कि मेरा व्‍यक्तिगत मानना है कि विटिलिगो से ग्रस्‍त व्‍यक्ति के साथ-साथ दूसरों को इस स्थिति को स्‍वीकार कर सामान्‍य रूप से रहना चाहिये। किसी भी व्‍यक्ति का रंगरूप उतना महत्‍वपूर्ण नहीं है, जितने कि उसके गुण। उन्‍होंने कहा कि आप सबने देखा होगा कि गुण के आगे सभी नतमस्‍तक होते हैं, बाकी चीजें गौण हो जाती हैं।  

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