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जानिये, क्‍यों सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आयुर्वेद और ऐलोपैथिक डॉक्‍टर का वेतन एकसमान नहीं हो सकता

-गुजरात हाई कोर्ट के वर्ष 2012 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पलटा

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के 11 साल पुराने उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि सरकारी अस्पतालों में कार्यरत आयुर्वेद चिकित्सकों के साथ एलोपैथी डॉक्टरों के समान व्यवहार होना चाहिए, तथा उनका वेतनमान भी बराबर होना चाहिए। इसके कारणों के बारे में  अदालत ने कहा है कि एलोपैथी डॉक्टर जिस तरह से इमरजेंसी ड्यूटी और ट्रॉमा केयर में कुशल होते हैं, वह काम आयुर्वेद के डॉक्टर नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि आयुर्वेद के डॉक्टरों के लिए जटिल सर्जरी में मदद कर पाना संभव नहीं है, लेकिन एमबीबीएस डॉक्टर यह काम कर सकते हैं।

इसके अलावा दोनों विधाओं के डॉक्‍टरों के कार्यों में फर्क बताते हुए कोर्ट ने कहा कि पोस्टमॉटर्म या ऑटोप्सी में आयुर्वेद के डॉक्टरों की जरूरत नहीं होती जबकि शहरों और कस्बों में जनरल हॉस्पिटल के ओपीडी में एमबीबीएस डॉक्टर सैकड़ों मरीजों को देखते हैं, यह बात आयुर्वेद के डॉक्टरों के साथ नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलोपैथी डॉक्टर और आयुर्वेद के डॉक्टरों के काम को एक जैसा नहीं माना जा सकता,  इसीलिए इन दोनों विधाओं के डॉक्‍टरों के वेतन का वेतन एक जैसा किया जाना आवश्‍यक नहीं है।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट 2012 के गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि आयुर्वेद चिकित्सक भी उसी तरह के व्यवहार का हकदार हैं जैसा कि एमबीबीएस डिग्री वाले डॉक्टरों के साथ किया जाता है।

आयुर्वेद चिकित्सकों के महत्व और चिकित्सा की वैकल्पिक या स्वदेशी प्रणालियों को बढ़ावा देने की जरूरत को देखते हुए,  सुप्रीम कोर्ट  ने कहा कि यह इस तथ्य से अनजान नहीं हो सकता है कि दोनों श्रेणी के डॉक्टर निश्चित रूप से समान वेतन के हकदार होने के लिए समान कार्य नहीं कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि पोस्टमॉटर्म या ऑटोप्सी में आयुर्वेद के डॉक्टरों की जरूरत नहीं होती। शहरों और कस्बों में जनरल हॉस्पिटल के ओपीडी में एमबीबीएस डॉक्टर सैकड़ों मरीजों को देखते हैं, यह बात आयुर्वेद के डॉक्टरों के साथ नहीं है।  

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